लैपटॉप और सेंसर पेंसिल से पढ़ रहे सरकारी स्कूल के छात्र, इस शिक्षक ने किया स्कूल का कायाकल्प, राज्यपाल से होगें सम्मानित

लैपटॉप और सेंसर पेंसिल से पढ़ रहे सरकारी स्कूल के छात्र, इस शिक्षक ने किया स्कूल का कायाकल्प, राज्यपाल से होगें सम्मानित

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  • Publish Date - August 29, 2019 / 11:24 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:12 PM IST

अंबिकापुर। सरकारी स्कूलों की बदहाली की तस्वीर तो आप अक्सर देखते और सुनते होंगे, मगर आज हम आपको एक ऐसे सरकारी स्कूल के विषय में बताने जा रहे हैं, जो निजी स्कूलों से भी बेहतर नज़र आता है। यहाँ बच्चे लैपटॉप और सेंसर पेन्सिल से न सिर्फ पढ़ाई करते हैं बल्कि सामान्य ज्ञान में भी बच्चे बड़े कान्वनेंट स्कूलों के बच्चों को टक्कर दे रहे हैं। ये तश्वीर बदली है एक शिक्षक के हौसले ने, जिसने अपने मेहनत और स्वयं के खर्चे से स्कूलों का कायाकल्प ही कर दिया। अब इस शिक्षका को राज्यपाल पुरस्कृत करने वाले हैं।

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सरगुजा के दूरस्थ अंचल और आदिवासी क्षेत्र जाम झरिया प्राथमिक स्कूल के बच्चे आज निजी स्कूलों के छात्रों को टक्कर दे रहे हैं। यह मझवार समुदाय के लोगों का एक गांव है जहां कुछ साल पहले तक लोग बच्चों को स्कूल तक नहीं भेजते थे। मगर आज यह बच्चे न सिर्फ पूरी तरीके से वेल ड्रेसअप करके आते हैं बल्कि इनकी पढ़ाई भी लैपटॉप और सेंसर पेंसिल के जरिए हो रही है। स्कूल में सामान्य ज्ञान के लिए दीवारों से लेकर तख्ती और बैनर पोस्टर का उपयोग किया गया है तो वहीं हर महत्वपूर्ण व्यक्ति के फोटो लगाकर उनके बारे में भी शिक्षा दी जा रही है।

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यह सब संभव हो सका यहां पदस्थ शिक्षक अरविंद गुप्ता की मेहनत और सोच की बदौलत। अरविंद गुप्ता जब 2008 में यहां पदस्थ हुए तब यहां बच्चों की संख्या 10 भी नहीं थी, उन्होने डोर टू डोर अभियान चलाकर शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक किया और अपने खर्चे से स्कूल में कई नवाचार भी किए। यही कारण है कि अरविंद गुप्ता अब तक छत्तीसगढ़ रत्न सहित दर्जनों अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं। इसके साथ ही देश के ‘द टीचर ऐप’ में छत्तीसगढ़ का एकमात्र स्कूल की दशा और दिशा में परिवर्तन की कहानी भी प्रकाशित हुई थी। अब अरविंद गुप्ता का चयन राज्यपाल अवार्ड के लिए हुआ है ‘शिक्षक दिवस’ के दिन अरविंद गुप्ता राज्यपाल के हाथों भी सम्मानित होंगे। अरविंद गुप्ता का कहना है कि उन्होंने भी शिक्षा के बदहाली के कारण कई परेशानियां झेली थी। यही कारण है कि वह बच्चों को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराना चाहते हैं और इसके लिए वह आजीवन जुटे रहेंगे।

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उन्होंने बच्चों के अभिभावकों को ही शिक्षा समिति से जोड़कर अनुपस्थित होने वाले बच्चों को स्कूल पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी लोग भी अरविंद गुप्ता के इस काम में जुड़ते गए और अब गांव का हर एक बच्चा स्कूल पहुंचता है, यहां दिव्यांगों के लिए अलग शौचालय बनाया गया है जहां स्वच्छता के साथ कई संदेश भी दी जाते हैं। बच्चों को योग शिक्षा खाने के पहले प्रार्थना, नवाचार की शिक्षा के साथ सामान्य ज्ञान की शिक्षा भी दी जाती है। जिससे अब बच्चे भी बेहतर शिक्षा पा रहे हैं बल्कि गांव की तस्वीर भी बदल रही है।

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जिला स्तर के अधिकारी भी अरविंद गुप्ता को रोल मॉडल मानते हैं जिले के कलेक्टर का भी कहना है कि दूसरे स्कूलों के शिक्षकों को इनसे सीख लेने की जरूरत है। जो संसाधनों का रोना रोकर शिक्षा के लिए बेहतर प्रयास नहीं कर पाते। इस स्कूल में पहुंचने के बाद स्कूल कैंपस से ही बाहरी आवरण में पर्यावरण के प्रति जागरूकता के साथ अंदर दीवारों में बेहतर संदेश बच्चों के लिए पानी की बेहतर व्यवस्था उनके रूप को देखने के लिए संसाधन और फर्स्ट ऐड जैसे सामान उपलब्ध कराए गए हैं। इनमें ज्यादातर खर्च स्कूल के शिक्षक के द्वारा ही किए गए हैं। अरविंद गुप्ता के राज्यपाल अवार्ड के लिए मनोनीत होने पर जिला प्रशासन भी बधाई और खुशी जाहिर कर रहा है।

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