(नचिकेता नारायण)
पटना, चार जुलाई (भाषा) लोजपा संस्थापक रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान और भाई पशुपति कुमार पारस के मध्य जारी विरासत की लड़ाई के बीच सोमवार को मनायी जाने जाने वाली दिवंगत नेता की जयंती को दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों के नेतृत्व द्वारा शक्ति प्रदर्शन के अवसर के तौर पर देखा जा रहा है।
चिराग अपने पिता की जयंती के अवसर पर सोमवार को हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र (जिसका उनके पिता ने कई दशकों तक प्रतिनिधित्व किया) से ‘आशीर्वाद यात्रा’ की शुरुआत करेंगे।
उनके इस निर्णय ने हाजीपुर का वर्तमान में प्रतिनिधित्व करने वाले पारस को नाराज कर दिया है जो लोजपा के अन्य सभी सांसदों के समर्थन से चिराग को हटाकर स्वयं लोकसभा में पार्टी के नेता के तौर पर आसीन होने के बाद अपने गुट द्वारा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनोनीत किए गए हैं।
पारस ने हाल ही में चिराग के कार्यक्रम को लेकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी और सवाल किया था कि क्या उनके पिता की जयंती श्रद्धांजलि देने या लोगों का आशीर्वाद लेने का अवसर है।
उन्होंने अपने भतीजे को अपने संसदीय क्षेत्र जमुई में अपना कार्यक्रम आयोजित करने की सलाह दी थी जहां से वह लोकसभा में लगातार दूसरी बार प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
लोजपा सांसदों के संख्या बल के अपने साथ होने की स्थिति में पटना स्थित पार्टी के राज्य मुख्यालय भवन पर काबिज होने में कामयाब रहे पारस लोजपा संस्थापक की जयंती के अवसर पर एक समारोह आयोजित कर रहे हैं।
पारस के समक्ष इस अवसर पर राज्य के पासवान समुदाय जो पूर्व केंद्रीय मंत्री को अपने प्रतीक के रूप में देखता था, को एकजुट रखने की एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि चिराग ने खुद को अपने पिता की विरासत के सही उत्तराधिकारी के रूप में पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
दोनों गुटों के बीच सड़कों पर तीखी नोकझोंक का ताजा उदाहरण शनिवार को चिराग समर्थकों द्वारा खगड़िया में स्थानीय पार्टी सांसद महबूब अली कैसर को काला झंडा दिखाया जाना है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे कैसर ने लोजपा में शामिल होने पर 2014 में खगड़िया से टिकट हासिल किया था और उस समय वह राजग से एकमात्र मुस्लिम सांसद बने थे।
रामविलास पासवान द्वारा उनपर फिर से भरोसा किया गया और पार्टी टिकट पर 2019 के लोकसभा चुनाव में वह फिर से विजयी रहे।
कैसर के पारस खेमे में जाने को चिराग समर्थकों द्वारा विश्वासघात के रूप में देखा जा रहा है।
बिहार में राजग के प्रमुख घटक दलों-भाजपा और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू द्वारा अपने पुराने गठबंधन के सहयोगी रहे रामविलास पासवान के जयंती समारोह के अवसर पर क्या रुख अपनाया जाता है, यह दिलचस्प होगा।
चिराग पासवान के समर्थक जदयू पर आरोप लगाते रहे हैं कि वह विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ चिराग के विद्रोह का बदला लेने के लिए लोजपा में फूट डालने का काम कर रहा है।
कई अवसरों पर चिराग द्वारा स्वयं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘‘हनुमान’’ कहे जाने के बावजूद उनको लेकर भाजपा की चुप्पी पर हालांकि विपक्ष लगातार प्रहार करता रहा है पर ऐसा कहा जाता है कि भगवा पार्टी ने चिराग को खुले तौर पर खारिज नहीं किया है। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा लोजपा के अलग हुए गुट को मान्यता दिए जाने को इस रूप में देखा जा रहा है कि भगवा पार्टी को प्रतिद्वंद्वी खेमे के साथ संबंध रखने में भी कोई गुरेज नहीं है।
प्रदेश की मुख्य विपक्षी पार्टी राजद का रजत जयंती समारोह भी सोमवार को ही मनाया जा रहा है और इसमें दिवगंत रामविलास पासवान के चित्र पर माल्यार्पण का विशेष उल्लेख किए जाने को एक सहज, पर अर्थपूर्ण कदम के तौर पर देखा जा रहा है।
भाषा अनवर
रंजन नेत्रपाल
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