मुंबई, 21 जून (भाषा) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय को बताया कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ जांच में एजेंसी के साथ “सहयोग नहीं’ कर रही है। देशमुख भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं।
सीबीआई की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि उच्च न्यायालय के पिछले आदेश के बाद शुरू की गई जांच, ‘पूरे राज्य प्रशासन की सफाई करने’ का मौका थी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार केंद्रीय एजेंसी के साथ सहयोग करने से इनकार कर रही है।
मेहता ने राज्य सरकार द्वारा लगाए गए इन आरोपों से इनकार किया कि सीबीआई जांच में पूर्व सहायक पुलिस निरीक्षक सचिन वाजे की बहाली और मुंबई पुलिस अधिकारियों के स्थानांतरण और तैनाती में देशमुख के अनुचित हस्तक्षेप के मुद्दों को शामिल करके उच्च न्यायालय के आदेश से बाहर जा रही है।
उन्होंने राज्य के वकील, वरिष्ठ अधिवक्ता रफीक दादा द्वारा लगाए गए आरोपों का खंडन किया कि सीबीआई अवैध फोन टैपिंग और पुलिस तैनाती से संबंधित संवेदनशील दस्तावेजों को कथित तौर पर लीक करने के मामले में आईपीएस अधिकारी रश्मि शुक्ला के खिलाफ जांच में पिछले दरवाजे से प्रवेश पाने के लिए देशमुख के खिलाफ चल रही तहकीकात का इस्तेमाल कर रही है।
सॉलिसिटर जनरल ने न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और न्यायमूर्ति एनजे जामदार की पीठ के समक्ष अभिवेदन दिया, जो इस साल की शुरुआत में देशमुख के खिलाफ सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी से दो पैराग्राफ को हटाने का आग्रह करने वाली महाराष्ट्र सरकार की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है।
सीबीआई देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार और कदाचार के आरोपों की जांच कर रही है। यह आरोप मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने लगाए हैं।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता की अगुवाई वाली पीठ ने अप्रैल में सीबीआई को निर्देश दिया था कि वह मुंबई के एक थाने में वकील जयश्री पाटिल की ओर से दर्ज कराई गई एक आपराधिक शिकायत के आधार पर देशमुख के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू करे।
बता दें कि अदालत के आदेश के बाद देशमुख ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। पाटिल ने उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर उनकी ओर से दर्ज कराई गई शिकायत पर कार्रवाई की गुजारिश की थी।
उन्होंने अपनी याचिका में देशमुख के खिलाफ सिंह द्वारा लगाए गए आरोपों का उल्लेख किया है और सिंह द्वारा महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे गए एक पत्र की एक प्रति भी संलग्न की है जिसमें मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त ने देशमुख के खिलाफ आरोप लगाए हैं।
मेहता ने उच्च न्यायालय को बताया कि सिंह का पत्र पाटिल की शिकायत का एक हिस्सा है जिस पर सीबीआई की जांच आधारित है और चूंकि पत्र में वाजे की बहाली और तबादलों व तैनाती में देशमुख के हस्तक्षेप की बात की गई है, इसलिए सीबीआई इन मुद्दों (जो राज्य सरकार प्राथमिकी में से हटवाना चाहती है) को देखने के दौरान उच्च न्यायालय के आदेश के अंतर्गत ही काम कर रही है।
मेहता ने कहा, “वाजे की बहाली और तबादलों व तैनाती के मुद्दे, अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़े हुए हैं।”
उन्होंने कहा, “ अगर अवैध तैनाती और तबादलों का गिरोह मौजूद है, तो सीबीआई को इसकी जांच करनी चाहिए। फिर राज्य सरकार कैसे कह सकती है कि इन हिस्सों को प्राथमिकी से हटा दिया जाए?”
मेहता ने कहा, “ वाजे सिर्फ एक एपीआई (सहायक पुलिस निरीक्षक) था लेकिन गृह मंत्री के आवास तक उसकी सीधी पहुंच थी। उसका अतीत संदेहपूर्ण था, फिर भी उसे 15 साल बाद (2020 में) बल में बहाल कर दिया गया था जब राज्य में एक खास शख्स गृह मंत्री था।” वाजे को अब बर्खास्त किया जा चुका है।
इस पर अदालत ने पूछा कि क्या सीबीआई तीन सदस्यीय समिति के खिलाफ भी जांच कर रही है जिसने वाजे की बहाली को मंजूरी दी थी? तो मेहता ने कहा कि वह तफ्तीश करना तो चाहती है कि लेकिन महाराष्ट्र सरकार सीबीआई को वाजे की बहाली से संबंधित दस्तावेज नहीं दे रही है।
राज्य सरकार के वकील दादा ने कहा कि उच्च न्यायालय यह अनुमान नहीं लगा सकता कि प्रारंभिक जांच का निर्देश देने वाले अदालत के आदेश के तहत राज्य सरकार के लिए जरूरी है कि वह सीबीआई को वे दस्तावेज दे जो उसने मांगे हैं।
उच्च न्यायालय बुधवार को मामले की सुनवाई करेगा।
भाषा
नोमान नरेश
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