कृषक सीख रहे मधुमक्खी पालन के गुर, प्रशिक्षण केंद्र में लोगों को दी गई ट्रेनिंग

कृषक सीख रहे मधुमक्खी पालन के गुर, प्रशिक्षण केंद्र में लोगों को दी गई ट्रेनिंग

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  • Publish Date - February 21, 2021 / 01:45 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:51 PM IST

सुकमा, छत्तीसगढ़। ग्रामीण अब धान की फसल लेने के अलावा अन्य फसलों के माध्यम से भी आय अर्जित कर आर्थिक समृद्धि की ओर अग्रसर हैं। जिले के कृषकों को मधुमक्खी पालन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी अनुक्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र एवं वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा ग्राम पंचायत सोनाकुकानार में एक दिवीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें मधुमक्खी पालन के इच्छुक 27 किसान तथा स्व-सहायता समूह के महिलाओं ने भाग लिया।

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प्रशिक्षण कार्यक्रम में वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅ. मनीष चौरसिया, कृषि विज्ञान केन्द्र सुकमा एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डाॅ. नारायण साहू, दन्तेवाड़ा द्वारा उपस्थित समूह के सदस्यों और किसानों को बताया गया कि मधुमक्खी पालन व्यवसाय बहुत कम लागत में शुरू की जा सकती है। इस व्यवसाय को बहुत कम जमीन पर भी अच्छी तरह पालन कर अधिक मात्रा में शहद प्राप्त किया जा सकता हैं, जिससे अच्छी आमदनी अर्जित होगी।

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मधुमक्खी पालन हेतु फूलों की खेती आवश्यक

मधुमक्खी पालन व्यवसाय से मोम, पराग का उत्पादन कर कृषकों द्वारा अतिरिक्त आय भी अर्जित किया जा सकता है। प्रशिक्षण में मधुमक्खी पालन से होने वाले स्वास्थ्य लाभ की जानकारी विस्तृत रूप से दी गई। इस अवसर पर कृषि विज्ञान अधिकारी राजेन्द्र प्रसाद कश्यप ने किसानों को शहद के विपणन तथा पैकेजिंग के संबंध में भी विस्तृत जानकारी दी। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि मधुमक्खी पालन के लिए फूलों की खेती करना आवश्यक है जिससे मधुमक्खियों को पर्याप्त मात्रा में पराग उपलब्ध हो और अधिक मात्रा में शहद का उत्पादन किया जा सके।

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उल्लेखनीय है कि मधुमक्खी पालन व्यवसाय को बहुत कम लागत में शुरू किया जा सकता है। वन परिक्षेत्र होने के कारण सुकमा में वृक्षों की बहुतायत है, जो मधुमक्खी पालन के लिए उपयुक्त है। ग्रामीण बड़ी आसानी से कम जमीन पर भी मधुमक्खी पालन का व्यवसाय कर आय का स्त्रोत के रुप में अपना सकते हैं। इस व्यवसाय से कृषकों द्वारा शहद के अलावा भी अतिरिक्त आय अर्जित किया जा सकता है। शहद में खनिज और विटामिन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जिससे यह दवाई के साथ-साथ पोषण का भी काम करता है। कार्यक्रम में वन विभाग के कर्मचारी, कृषक एवं परदेशीन माता स्व-सहायता समूह की महिलाएं उपस्थित थीं।