रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा में आज अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मोतीलाल वोरा को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। विधानसभा उपाध्यक्ष मनोज सिंह मंडावी ने मोतीलाल वोरा के निधन की सदन में सूचना दी। उन्होंने कहा कि मोतीलाल वोरा अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक, दो बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने केन्द्रीय मंत्री और संगठन में भी विभिन्न पदों की जिम्मेदारी संभाली। उनका पूरा जीवन आदर्शाें और सिद्धांतों के प्रति समर्पित रहा। उनके निधन से न केवल छत्तीसगढ़ को बल्कि देश को बड़ी क्षति हुई है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, नेताप्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक, संसदीय कार्यमंत्री रविन्द्र चौबे सहित मंत्रिपरिषद के सदस्यों, सदन के सदस्यों ने मोतीलाल वोरा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डाला। सदन में उनके सम्मान में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा कि स्वर्गीय मोतीलाल वोरा अजातशत्रु थे। उनकी लगन, परिश्रम, निष्ठा और नेतृत्व के प्रति समर्पण अद्वितीय था। बघेल ने कहा कि एक दिन पहले ही उन्होंने वोरा को जन्म दिन की बधाई दी थी। तब सोचा भी नहीं था कि वे इतनी जल्दी हमसे विदा हो जाएंगे। दिल्ली प्रवास के समय भी उनसे मुलाकात हुई थी। वे कोरोना से लड़ाई जीतकर आ गए थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब से हमने होश संभाला उन्हें काम करते देखा। उनकी सहजता, सरलता और मिलनसारता जो प्रारंभ में थी, वैसी ही अंतिम समय तक रही।
उन्होंने पत्रकारिता से शुरूआत कर पार्षद, विधायक, मध्यप्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री, उत्तरप्रदेश के राज्यपाल, सांसद और केन्द्रीय मंत्री पद का दायित्व संभाला। वे सुबह से देर रात तक ताजगी के साथ कार्य करते थे। सभी से सहजता से मिलते थे। उनका निधन पार्टी के लिए ही नहीं पूरे देश के लिए अपूरणीय क्षति है। उनके निधन से पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई है। मुख्यमंत्री ने स्वर्गीय वोरा के परिवारजनों के प्रति संवेदना प्रकट करते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने कहा कि वोरा जी दिल्ली मंे छत्तीसगढ़ की पहचान थे। एक सामान्य परिवार से निकलकर उन्होंने राष्ट्रीय क्षितिज पर कार्य किया। अनेक महत्वपूर्ण पदों के दायित्वों का निर्वहन किया। वे निर्विवाद रहे। कांग्रेस के वे अभिभावक तो थे ही उनका पक्ष-विपक्ष में भी बड़ा सम्मान था।
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संसदीय कार्य मंत्री रविन्द्र चौबे ने कहा कि स्वर्गीय वोरा समाजवादी चिंतक थे। उनका जाना राजनीतिक क्षेत्र के लिए बड़ा नुकसान है। गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू ने कहा कि वोरा सार्वजनिक जीवन के मूल्यों को सीखने की पाठशाला जैसे थे। मैंने भी उनसे बहुत सी बातें सीखने की कोशिश की। पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री टी.एस. सिंह देव ने कहा कि मोतीलाल वोरा के निधन से हमने एक बहुत बड़े व्यक्तित्व को खो दिया है। वन मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि हमारे वरिष्ठ नेता हमारे बीच नहीं रहे, यह हम सबके लिए दुख की घड़ी है।
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स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने कहा कि वोरा जी का निधन हमारे लिए अपूरणीय क्षति है। वे हमारे मार्गदर्शक और अभिभावक रहे। खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने कहा कि उनका साथ और मार्गदर्शन हमेशा याद आएगा। उन्हांेने पार्षद से लेकर सर्वाेच्च शिखर तक की यात्रा की। वे सादगी की प्रतिमूर्ति थे। उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने कहा कि उनके निधन से पूरा छत्तीसगढ़, पूरा बस्तर और देश दुखी है। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि विपक्षी दलों के सर्वाेच्च नेता भी वोरा जी का बड़ा सम्मान करते थे। वे सभी दलों में लोकप्रिय थे। वे हम सबके के लिए अभिभावक और पितातुल्य थे।
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धरमजीत सिंह ने कहा कि सभी दलों के लोग वोरा जी का आदर करते थे। वे पूरी ईमानदारी, निष्पक्षता और निष्ठा के साथ काम करने वाले व्यक्ति थे। विधायक और सांसद के रूप में उन्होंने छत्तीसगढ़ की समस्याओं को मुखरता से उठाया। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने छत्तीसगढ़ अंचल के विकास के लिए अनेक कार्य किए। बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि वोरा जी के निधन से जो क्षति हुई है, उसकी पूर्ति नहीं हो सकती। वे धीर गंभीर थे, तो उनमें दृढ़ता भी थी। हमारी इस पीढ़ी ने उनसे बहुत कुछ सीखा। सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि वोरा जी की सादगी और सरलता एक मिसाल है।
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धनेन्द्र साहू ने कहा कि वोरा जी ने लम्बे समय तक राजनीति की। यह मेरा सौभाग्य रहा कि उनका स्नेह और विश्वास मुझे हासिल हुआ। हमने एक महान व्यक्तित्व को खोया है। पुन्नू लाल मोहले ने कहा कि वे सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष के लोगों की सहायता करते थे। अजय चंद्राकर ने कहा कि वोरा जी ने जमीन से उठकर सर्वाेच्च नेताओं के साथ काम किया। वे आदर्श मूल्यों को जीवंत करने वाले अजातशत्रु थे। नारायण चंदेल ने कहा कि उनसे सहजता और सरलता जैसे गुणों को सीखने की आवश्यकता है। शिवरतन शर्मा ने कहा कि वे छत्तीसगढ़ के गौरव थे। अमितेश शुक्ला ने कहा कि उनका निधन एक युग का अंत है। वे सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे।