बीजापुर, छत्तीसगढ़। बीजापुर में ठीक बाइस बरस बाद नक्सलियों ने बड़ी वारदात को दोहराया है। 8 अक्टूबर 1998 को माओवादियों ने तर्रेम मार्ग पर पुलिस जवानों से भरी मिनी ट्रक और ठीक पीछे चल रही जीप को लैंड माइंस का इस्तेमाल कर उड़ा दिया था। इस हादसे में 18 जवान शहीद हुए थे। यह तत्कालीन राज्य मध्यप्रदेश के वक्त का बड़ा हमला था माओवादियों के भीषण हमलों की शुरुआत के रुप में दर्ज हुआ। बाइस बरस बाद शनिवार 4 अप्रैल 2021 को नक्सलियों ने बीजापुर के टेलकागुड़ा में फिर यहां की धरा को जवानों के लहू से लाल किया है।
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तर्रेम में 4 अप्रैल के इस हमले में ये भी पता चला है कि मुठभेड़ में 250 से 300 महिला और पुरुष नक्सली शामिल थे। हिड़मा की बटालियन के अलावा तेलंगाना डिवीजन कमेटी के नक्सली भी थे। मुठभेड़ में शामिल नक्सली कैडर में लड़ने की स्टाइल अत्याधुनिक थी। सिर्फ तेलंगाना के नक्सलियों के पास है अत्याधुनिक तकनीक और हथियार मौजूद हैं।
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टेलकागुड़ा मुठभेड़ में 22 जवान शहीद
बीजापुर के तर्रेम में नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हो गए। इस हमले के बाद शहीद जवान भोसाराम के चाचा का बड़ा बयान सामने आया है । तर्रेम हमले से पहले नक्सली हिड़मा पुलिस को फोन कर रहा था। हिड़मा ने अपने इलाके में आने के लिए पुलिस को चुनौती दी थी। शहीद जवान भोसाराम ने अपने चाचा को इसकी जानकारी दी थी।
बता दें नक्सली के इस खूनी खेल में 22 जवानों को शहादत मिली। वहीं एक जवान अब भी नक्सलियों के कब्जे में है। नक्सलियों ने खुद इसकी जानकारी दी है। जवान की पांच साल की बेटी अपने पिता का इंतजार कर रही है। परिजनों ने नक्सलियों से जवान की सकुशल रिहाई की मांग की है। बता दें नक्सलियों ने पहले भी तर्रेंम की धरा को जवानों के लहू से लाल कर चुके हैं। तर्रेम सड़क में 22 वर्ष पहले माओवादियों का वो पहला बड़ा हमला, जिसमें सत्रह जवान शहीद हो चुके हैं। बाइस बरस बाद भी कोई सबक़ नहीं।
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तर्रेम का वो इलाक़ा जहां शनिवार को माओवादियों के ट्रेप में फंसे 22 जवानों की शहादत हुई और तीस से अधिक घायल हुए जबकि एक जवान अब भी लापता है, बासागुड़ा थाना से महज 3 किलोमीटर दूर तर्रेम मार्ग पर बाइस वर्ष पांच महिने और 25 दिन पहले भी यहां की धरा जवानों के खून से लाल हो चुकी है। तारीख़ थी 8 अक्टूबर 1998 जबकि माओवादियों ने तर्रेम मार्ग पर पुलिस जवानों से भरी मिनी ट्रक और ठीक पीछे चल रही जीप को लैंड माइंस का इस्तेमाल कर उड़ा दिया था। इस हादसे में 18 जवान शहीद हुए थे। यह तत्कालीन राज्य मध्यप्रदेश के वक्त का बड़ा हमला था माओवादियों के भीषण हमलों की शुरुआत के रुप में दर्ज हुआ। उस वक्त ज़िला दंतेवाड़ा हुआ करता था पुलिस कप्तान टी लांगकुमेर थे, जिनकी इस घटना के बाद खासी आलोचना हुई थीं।
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घटना को लेकर जो ब्यौरा मिलता है उसके अनुसार टीम सर्चिंग पर थी। 7 अक्टूबर की रात क़रीब साढ़े बारह बजे रवाना हुई। पुलिस को सूचना थी कि, माओवादी उपर पहाड़ी पर कैंप किए हुए हैं। पुलिस की रणनीति थी कि दो टीमें होंगी एक जो उपर पहुंचेगी और हमला करेगी। अगर नक्सली नीचे भागे तो नीचे वाली टीम के शिकार बनेंगे। एक टीम उपर पहुंची तो माओवादियों के कैंप होने की केवल निशानें मिली। माओवादी नदारद थे।
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इधर वो टीम जो पहाड़ी से नीचे थी आख़िरकार वो लौटने के लिए लॉरी और कमांडर जीप पर सवार हो गई। आठ अक्टूबर 1998 को ठीक दस बजकर दस मिनट पर ब्लास्ट हुआ और जवानों से भरी मिनी ट्रक हवा में उड़ गई, क़रीब सौ मीटर पीछे चल रही पुलिस अधिकारियों की कमांडर जीप भी चपेट में आई। इसके ठीक बाद माओवादियों ने फ़ायरिंग शुरू कर दी, जवान करीब 90 मिनट तक पूरी बहादुरी से लड़ते रहे लेकिन 18 जवानों की शहादत के साथ यह घटना बस्तर के इतिहास में दर्ज होने से नहीं रोक सके।
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शनिवार को भी हुई घटना इस तर्रेम मार्ग की घटना को दोहराता है। बीजापुर ज़िले में अब तक मौओवादी का सबसे बड़ी घटनाओं में पहली घटना बासागुड़ा थाना के तर्रेम मार्ग पर गश्त से लौटती पार्टी पर बारूदी विस्फोट में 18 जवान शहीद, दूसरा घटना बीजापुर थाने के चेरपाल मार्ग पर एंटी लैंडमाइंस गाड़ी पर विस्फोट से 24 जवान शहीद। तीसरी घटना 2005 में मुरकीनार एसटीएफ बैस कैम्प पर अटेक हमला 22 जवान शहीद। चौथी घटना 14 मार्च 2007 की रात फ़रसेगढ़ थाना के रानिबोदली बैस कैम्प पर अटैक में 55 जवान शहीद। पांचवी घटना मद्देड थाना के कोंगुपल्ली में 2008 अक्टूबर चुनाव रोड ओपनिंग पार्टी पर नक्सली के एम्बुस से 16 जवान शहिद छटवी घटना 03 अप्रैल 2021 में गश्त से लौटते वक्त नक्सलियों के एम्बुस से तर्रेम के टेकलुगुडम में 22 जवान शहिद हुए।
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