Tokyo Olympics satish kumar
नई दिल्ली, एक अगस्त । भारतीय मुक्केबाज सतीश कुमार चेहरे पर 13 टांकों के साथ टोक्यो ओलंपिक के क्वार्टरफाइनल में खेले थे और उनके परिवार में सभी उनसे मुकाबले से हटने को कह रहे थे लेकिन वह इसमें खेलना चाहते थे क्योंकि खिलाड़ी कभी हार नहीं मानता। सेना के 32 साल के जवान सतीश ने बताया, ‘‘मेरा फोन बंद नहीं हो रहा, लोग बधाई दे रहे हैं जैसे मैंने जीत हासिल की हो। मेरा इलाज चल रहा है लेकिन मैं ही जानता हूं कि मेरे चेहरे पर कितने घाव हैं। ’’
Tokyo Olympics satish kumar : सतीश को प्री क्वार्टरफाइनल के दौरान माथे और ठोड़ी पर दो गहरे कट लगे थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उज्बेकिस्तान के सुपरस्टार बखोदिर जालोलोव के खिलाफ रिंग में उतरने का फैसला किया। उन्होंने कहा, ‘‘मेरी ठोड़ी में सात टांके और माथे पर छह टांके लगे हैं। पर मरता क्या न करता, मैं जानता था कि मैं लड़ना चाहता था। वर्ना मैं पछतावे में ही जीता रहता कि अगर खेलता तो क्या होता। अब मैं शांत हूं और खुद से संतुष्ट भी हूं कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। ’’
दो बच्चों के पिता सतीश ने कहा, ‘‘मेरी पत्नी ने मुझे नहीं लड़ने को कहा था। मेरे पिता ने भी कहा कि ऐसे लड़ते हुए देखना दर्दनाक है। परिवार आपको दर्द में नहीं देख सकता। लेकिन वे यह भी जानते हैं कि मैं ऐसा करना चाहता था। ’’ तो क्या उनके बच्चे मुकाबला देख रहे थे, उन्होंने कहा, ‘‘हां, मेरा एक बेटा है और एक बेटी जो पहली और दूसरी कक्षा में हैं। दोनों देख रहे थे। मुझे उम्मीद है कि उन्हें गर्व महसूस हुआ होगा। ’’
वह दो बार एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीत चुके हैं। राष्ट्रमंडल खेलों के रजत पदक विजेता और कई बार के राष्ट्रीय चैम्पियन हैं। वह भारत की ओर से ओलंपिक में क्वालीफाई करने वाले पहले सुपर हेवीवेट मुक्केबाज भी बने। बुलंदशहर के सतीश ने कहा, ‘‘जोलोलोव मुकाबले के बाद मेरे पास आये, उन्होंने कहा, ‘अच्छा मुकाबला था।’ यह सुनकर अच्छा लगा। मेरे कोचों ने भी कहा कि उन्हें मुझ पर गर्व है, किसी ने भी मेरे यहां तक पहुंचने की उम्मीद नहीं की थी। ’’पूर्व बड्डी खिलाड़ी सतीश सेना के कोचों के जोर देने पर मुक्केबाजी में आये। उन्होंने कहा कि वह भविष्य में भी इस तरह की चोट के बावजूद रिंग में उतरने में हिचकिचायेंगे नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘खिलाड़ी होने का मतलब ही यही है कि आप हार नहीं मानते, कभी हार नहीं मानते। ’’