पैरालंपिक तीरंदाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले हरविंदर की निगाहें अगली चुनौतियों पर

पैरालंपिक तीरंदाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले हरविंदर की निगाहें अगली चुनौतियों पर

  •  
  • Publish Date - September 6, 2024 / 06:26 PM IST,
    Updated On - September 6, 2024 / 06:26 PM IST

पेरिस, छह सितंबर (भाषा) तोक्यो पैरालंपिक के कांस्य पदक का रंग बदलकर पेरिस में स्वर्ण करने वाले स्टार पैरा तीरंदाज हरविंदर सिंह का अगला लक्ष्य अपनी इसी लय को जारी रखना और अपनी पीएचडी पूरी करना है।

तोक्यो में पैरालंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय पैरा तीरंदाज हरविंदर ने बृहस्पतिवार को पेरिस में पुरुषों की रिकर्व स्पर्धा में देश के लिए पहला स्वर्ण पदक जीतकर फिर से इतिहास रच दिया।

अपनी तैयारियों पर चर्चा करते हुए उन्होंने शुक्रवार को मीडिया से कहा, ‘‘भारत में साई सोनीपत में तैयारियां अच्छी चल रही थीं जहां मेरे दोनों कोच थे जिनसे काफी मदद मिली। हम स्पर्धा से 15 दिन पहले फ्रांस आए थे और मैं अच्छा निशाना लगा रहा था। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं कुछ तकनीकी पहलुओं पर काम कर रहा था। मैं कोरिया जाना चाहता था लेकिन कोच को सोनीपत बुलाया गया। ’’

हरविंदर को डेढ़ साल की उम्र में डेंगू होने के बाद एक स्थानीय डॉक्टर ने इंजेक्शन लगाया। लेकिन इसके बाद से वह अपने पैरों को हिला नहीं पाये।

तोक्यो में तीरंदाजी में पैरालंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय हरविंदर ने अपेक्षाओं के दबाव के बारे में बात करते हुए कहा, ‘‘जिस तरह से लोग शुभकामना देते थे तो यह एक तरह से मुझे संदेश देता था कि मुझे अब पदक का रंग बदलने की जरूरत है। ’’

हरविंदर 2012 ओलंपिक के बाद पैरा तीरंदाजी में शामिल हुए और अब उनका लक्ष्य अपनी पीएचडी पूरी करना है क्योंकि खेलों में करियर शुरू करने के कारण वह इसे पूरा नहीं कर सके।

उन्होंने कहा, ‘‘मैं 2018 तक पढ़ाई में सक्रिय था। 2012 से मैं सुबह पढ़ाई करता और शाम को अभ्यास करता और ऐसे दिन भी होते जब मैं दो सत्र करता।’’

हरविंदर ने कहा, ‘‘2018 में पदक (एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण) जीतने के बाद मैं खेलों में व्यस्त हो गया और इन सबकी वजह से मेरी पीएचडी पूरी नहीं हो सकी। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं पटियाला में पंजाब विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी कर रहा हूं। मुझे देश के लिए पदक जीतना था इसलिए बड़े टूर्नामेंटों की तैयारी भी बड़े स्तर पर हुई जिससे मुझे समय नहीं मिल पाया। लेकिन मुझे उम्मीद है कि मैं अगले कुछ महीनों में अपनी पीएचडी पूरी कर लूंगा। ’’

भाषा नमिता

नमिता