(तस्वीरों के साथ) … अमित आनंद…
नयी दिल्ली, 18 जनवरी (भाषा) पेरिस पैरालंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले राकेश कुमार का हौसला अर्जुन पुरस्कार मिलने के बाद सातवें आसमान पर है लेकिन खेलों से देश का नाम रोशन करने वाला यह पैरा तीरंदाज जम्मू कश्मीर सरकार से किसी तरह की मदद नहीं मिलने से निराश है। राकेश कुमार और शीतल देवी की जोड़ी ने पेरिस 2024 पैरालंपिक में मिश्रित कंपाउंड ओपन तीरंदाजी स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था। भारतीय जोड़ी ने इटली के एलोनोरा सार्टी और माटेओ बोनासिना के खिलाफ रोमांचक मैच में 156-155 के स्कोर के साथ एक अंक से जीत हासिल की थी। पेरिस ओलंपिक की सफलता के बाद जम्मू कश्मीर के इस 40 साल के तीरंदाज को शुक्रवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया। साल 2013 में एक दुर्घटना के बाद राकेश के शरीर का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया था और तब से व्हीलचेयर पर आ गये। राकेश ने ‘भाषा’ को दिये साक्षात्कार में अर्जुन पुरस्कार मिलने पर खुशी जताई हुए कहा कि उनकी मेहनत रंग लायी। जम्मू में ‘श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड’ की खेल सुविधा में प्रशिक्षण लेने वाले राकेश ने कहा, ‘‘ देश में खेलों से जुड़े सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों में से एक हासिल करने की काफी खुशी है। इस पुरस्कार और पहचान से लगता है कि हमने पिछले सात साल में जो मेहनत की है वह सफल रही।’’ राकेश के कहा कि अर्जुन पुरस्कार पाने वाला अपने राज्य का पहला पुरुष होने के बावजूद उन्हें राज्य सरकार से कोई भी मदद नहीं मिली है। राकेश ने कहा, ‘‘ जब से अर्जुन पुरस्कार की घोषणा हुई है मेरे पास बधाई संदेशों का तांता लगा हुआ है लेकिन राज्य सरकार के लिए शायद मेरी उपलब्धि का कोई मतलब नहीं। मैं पिछले सात साल से देश के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक जीत रहा हूं लेकिन अभी तक मुझे राज्य सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है।’’ पैरा एशियाई खेलों (चीन 2022) में एक स्वर्ण और दो रजत पदक जीतने वाले इस तीरंदाज ने कहा, ‘‘ नौकरी या वित्तीय सहायता की बात तो छोड़िए जम्मू कश्मीर सरकार या यहां के खेल परिषद से जुड़े किसी अधिकारी का हमें बधाई संदेश भी नहीं आता है। वे अपने सोशल मीडिया पर भी हमारी उपलब्धियों का जिक्र नहीं करते हैं।’’ राकेश को हालांकि उम्मीद है कि राज्य सरकार से उन्हें और जम्मू कश्मीर के अन्य खिलाड़ियों को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘‘ 2017 में जब से श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड तीरंदाजी अकादमी शुरू हुई थी मैं तभी से वहीं हूं और अभ्यास कर रहा हूं। श्राइन बोर्ड खिलाड़ी का खर्च तो देता है लेकिन पैरा तीरंदाजी जैसे खेल के साथ अगर सरकार की मदद ना हो तो परिवार चलाना मुश्किल होता है।’’ राकेश अपने खेल को 2028 में लॉस एंजिल्स में होने वाले ओलंपिक तक जारी रखना चाहते। वह अपनी आजीविका चलाने के लिए श्राइन बोर्ड की तीरंदाजी अकादमी में कोच का काम भी कर रहे हैं। सड़क दुर्घटना का शिकार होने के बाद राकेश ने कई बार आत्महत्या की कोशिश की लेकिन परिवार की मदद और फिर श्राइन बोर्ड की तीरंदाजी अकादमी से जुड़ने के बाद उनमें सकारात्मक बदलाव आया। राकेश ने कहा, ‘‘ दुर्घटना के बाद मेरे शरीर का निचला हिस्सा निष्क्रिय हो गया था। मैं किसी भी काम के लिए पूरी तरह से परिवार के सदस्यों पर निर्भर था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और मुझे लगता था कि मैं उन पर बोझ बन गया हूं। मैं अवसाद में चला गया था और इस दौरान मैंने तीन बार आत्महत्या की कोशिश भी की।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ मैंने किसी तरह मोबाइल रिचार्ज करने की दुकान शुरू की और वहीं पर श्राइन बोर्ड के खेल परिसर के तीरंदाजी अकादमी के कोच कुलदीप वेदवान की नजर मुझ पर पड़ी और उन्होंने मुझे तीरंदाजी से जुड़ने की सलाह दी।’’ राकेश ने कहा, ‘‘ तीर-कमान हाथ में लेने के बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और देश के लिए अब तब 12 अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में से 18 पदक जीत चुका हूं। इसमें 10 स्वर्ण, तीन रजत और पांच कांस्य पदक है।’’ राकेश की अगली चुनौती पांच फरवरी से थाईलैंड में आयोजित होने वाली एशिया पैरा कप विश्व रैंकिंग स्पर्धा है। उन्होंने कहा, ‘‘ मैंने दो फरवरी को एशिया पैरा कप के लिए थाईलैंड जा रहा हूं। मैंने दिल्ली में हुए ट्रायल को जीतकर इसमें अपनी जगह पक्की की है।’’ भाषा आनन्द पंतपंत