(सुधीर उपाध्याय)
विजयनगर (कर्नाटक), 26 जनवरी (भाषा) जूडो में किसी भी आयु वर्ग में भारत की पहली विश्व चैंपियन लिंथोई चनामबाम ने पिछले साल अपने जीवन के सबसे बुरे दौर से गुजरने के बाद 2025 में अपने लिए कोई लक्ष्य निर्धारित नहीं किया है लेकिन वह अपने आयु वर्ग में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनना चाहती हैं।
मणिपुर के मयांग इम्फाल की रहने वाली 17 साल की लिंथोई ने 2022 में बोस्निया एवं हर्जेगोविना के साराजीवो में विश्व कैडेट जूडो चैंपियनशिप के 57 किग्रा वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने फाइनल में ब्राजील की बियांका रेइस को हराया। यह उभरती हुई खिलाड़ी हालांकि 2024 में घुटने की चोट से परेशानी रही जिसके लिए उन्हें कतर में सर्जरी करानी पड़ी और वह लंबे समय तक खेल से दूर रहीं।
यहां इंस्पायर इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट (आईएसएस) में ट्रेनिंग कर रहीं लिंथोई ने ‘भाषा’ को दिए विशेष साक्षात्कार में कहा, ‘‘मैंने इस साल के लिए कोई लक्ष्य नहीं बनाया है क्योंकि पिछला साल मेरे जीवन का सबसे बुरा साल रहा। मुझे सर्जरी करवानी पड़ी, मेरे घुटने की सर्जरी। और यह मेरे जीवन में कुछ बहुत बड़ी, सबसे बदतर चीज थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले साल मेरा एक बड़ा सपना था और मैं उस सपने को पूरा नहीं कर पाई इसलिए जब मैंने इस साल की शुरुआत की तो मेरे पास कोई लक्ष्य नहीं है, मुझे बस खेलते रहना है जो मैं अभी कर रही हूं। हां, यह मेरा लक्ष्य है।’’
लिंथोई ने कहा कि उनकी सर्जरी काफी अच्छी रही और वह अब भी रिहैबिलिटेशन के दौर से गुजर रही हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरी सर्जरी काफी अच्छी रही। मैंने भारत के बाहर कतर में सर्जरी करवाई। मेरा रिहैबिलिटेशन काफी अच्छा रहा और अब भी चल रहा है। मैं अब बेहतर स्थिति में हूं।’’
अगले साल एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन होना है लेकिन एशियाई कैडेट और जूनियर जूडो चैंपियनशिप 2022 की स्वर्ण पदक विजेता लिंथोई ने कहा कि वह अब भी जूनियर खिलाड़ी हैं और उनका लक्ष्य अपने आयु वर्ग में सर्वश्रेष्ठ बनना है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगले साल हां (एशियाई खेल और राष्ट्रमंडल खेल हैं) , लेकिन मैं अब भी जूनियर हूं। मैं अभी सीनियर नहीं हूं। मैं सिर्फ 18 साल (17) की हूं इसलिए मेरा लक्ष्य यह है कि मैं पहले अपने आयु वर्ग में सर्वश्रेष्ठ बनना चाहती हूं। मैं बहुत बड़े टूर्नामेंट में भाग नहीं लेना चाहती। मैं खुद पर दबाव नहीं डालना चाहती। मैं अभी अपने समूह में सर्वश्रेष्ठ बनना चाहता हूं।’’
लिंथोई ने कहा कि उनके परिवार वाले और कोच उनके प्रदर्शन से खुश हैं लेकिन वह संतुष्ट नहीं हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया है उससे मैं कभी संतुष्ट नहीं होती। मेरा मतलब है कि व्यक्तिगत रूप से मैं उस तरह की लड़की हूं जो कभी संतुष्ट नहीं होती। मैं अपने जीवन में जो कुछ भी करती हूं उससे कभी खुश नहीं होती। मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया उससे मेरे कोच खुश हैं, मेरे माता-पिता उससे खुश हैं, लेकिन मैं नहीं।’’
लिंथोई ने कहा कि विश्व कैडेट चैंपियनशिप का फाइनल उनके करियर का सबसे बड़ा मुकबला था लेकिन बियांका के खिलाफ मुकाबले से पहले उन पर कोई दबाव नहीं था और वह सिर्फ अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहती थी।
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे दिमाग में कुछ नहीं चल रहा था। हां, मेरे लिए यह अब तक एक बड़ी प्रतियोगिता थी लेकिन मुझे कुछ भी महसूस नहीं हुआ। मुझे लगा कि मैं सिर्फ एक प्रतियोगिता खेल रही हूं।’’
लिंथोई ने कहा, ‘‘मैं बस मैट पर उतरकर अपना सर्वश्रेष्ठ देना चाहती थी। मुझे बस ऐसा लगता है कि मुझे अपना सर्वश्रेष्ठ देना है और मुझे जीतना है। बस इतना ही। अन्य कुछ नहीं, कोई दबाव नहीं, कुछ भी नहीं।’’
भारत में जूडो काफी लोकप्रिय खेल नहीं हैं लेकिन लिंथोई ने कहा कि मणिपुर में उनके गांव मयांग इम्फाल में यह काफी लोक्रपिय है इसलिए इससे अपनाने का फैसला उनके लिए अधिक मुश्किल नहीं था।
उन्होंने कहा, ‘‘हा, जूडो भारत में इतना लोकप्रिय नहीं है लेकिन मणिपुर में मेरे गांव मयांग इम्फाल में जूडो बहुत लोकप्रिय है। मेरे गांव में बहुत सारे दिग्गज खिलाड़ी रहे हैं, मेरा मतलब है कि अर्जुन पुरस्कार विजेता और ओलंपियन भी।’’
लिंथोई ने कहा, ‘‘अकादमी मेरे घर के बहुत नजदीक थी। बचपन में मुझे खेल खेलना पसंद था, मुझे सक्रिय रहना पसंद था। और इसलिए मैंने जूडो सीखा। मेरे गांव में कोई अच्छी सुविधा नहीं थी। वहां सिर्फ जूडो हॉल और मैट था, बस इतना ही। तो हम बस मजे लेते और खेलते थे, किसी को पटकते हैं और खेलते। मैं अपने दोस्तों के साथ किकबॉक्सिंग, फुटबॉल और मिश्रित मार्शल आर्ट जैसे खेल भी खेली।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि 2017 में जब मैं यहां आईआईएस आई तो मैंने यहां इतने सारे बड़े खिलाड़ियों को देखा। सीनियर खिलाड़ियों और अच्छे खिलाड़ियों को देखा जो मेरे लिए बड़ी प्रेरणा की तरह हैं कि मैं उनके जैसी हूं। मैं उनके जैसी क्यों नहीं हो सकती?’’
भाषा
सुधीर पंत
पंत