(फिलेम दीपक सिंह)
भुवनेश्वर, 23 जनवरी (भाषा) मुख्य कोच ग्राहम रीड ने एफआईएच पुरुष विश्व कप में भारत के निराशाजनक अभियान के दौरान लगातार कहा कि टीम के प्रदर्शन में निरंतरता की कमी है और वे मौकों को भुनाने में विफल हो रहे हैं।
इस अनुभवी कोच और ऑस्ट्रेलिया के पूर्व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रीड के ये शब्द मौजूदा विश्व कप में उनके खिलाड़ियों के जूझने की ओर इशारा करते हैं। ऐसा हाल तब है जबकि इस टीम के 12 सदस्य तोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचने वाली टीम का हिस्सा थे।
एक टीम जो 1975 में स्वर्ण पदक के बाद पहली बार पोडियम पर जगह बनाने के लक्ष्य के साथ उतरी थी उसके लिए क्वार्टर फाइनल से पहले ही टूर्नामेंट से बाहर होना जाना लचर प्रदर्शन ही है।
टीम सेमीफाइनल नहीं तो कम से कम क्वार्टर फाइनल में जगह बनाने की हकदार थी। लेकिन किसने सोचा होगा कि दुनिया की छठे नंबर की टीम को क्रॉसओवर मुकाबले दो मौकों पर दो गोल की बढ़त बनाने के बावजूद दुनिया की 12वें नंबर की टीम न्यूजीलैंड के खिलाफ पेनल्टी शूट आउट में हार का सामना करना पड़ेगा।
टीम की ट्रेनिंग, अनुभव दौरों और सहयोगी स्टाफ के वेतन पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए और इसे देखते हुए टीम से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद थी।
विश्व कप के इतिहास में यह भारत का चौथा सबसे खराब प्रदर्शन है। मेजबान टीम अब टूर्नामेंट में नौवें स्थान से बेहतर हासिल नहीं कर सकती है। टीम को 26 जनवरी को राउरकेला में क्लासिफिकेशन मैच में जापान से भिड़ना है।
भारत उन चार टीम में शामिल है जिन्होंने अब तक सभी 15 विश्व कप में हिस्सा लिया है। टीम ने चार मौकों पर नौवें स्थान से भी खराब प्रदर्शन किया है। भारत 1986 में 12वें और फिर 1990, 2002 और 2006 में 10वें स्थान पर रहा। टीम इसके अलावा 1998 और 2014 में नौवां स्थान हासिल किया।
पिछले टूर्नामेंट में क्वार्टर फाइनल में नीदरलैंड के खिलाफ शिकस्त के बाद भारतीय टीम छठे स्थान पर रही थी।
रीड ने रविवार को प्रेस कांफ्रेंस में स्वयं कहा कि टूर्नामेंट से जल्द बाहर होने के कई कारण हैं। इनमें दो मुख्य कारण पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलने में अधिक सफलता नहीं मिलना और अग्रिम पंक्ति द्वारा फिनिशिंग की कमी है। इसके अलावा रक्षा पंक्ति के प्रदर्शन में भी निरंतरता की कमी दिखी।
पेनल्टी कॉर्नर में भारत की नाकामी का अंदाजा इस बात से लगता है कि टीम चार मैच में 26 पेनल्टी कॉर्नर पर सिर्फ पांच गोल कर सकी। इतना ही नहीं इनमें से सिर्फ दो गोल सीधे ड्रैग फ्लिक पर हुए जो वेल्स के खिलाफ कप्तान हरमनप्रीत सिंह और न्यूजीलैंड के खिलाफ वरूण कुमार ने किए। तीन अन्य गोल अमित रोहिदास, शमशेर सिंह और सुखजीत सिंह ने रिबाउंड पर किए।
भारत की ओर से पेनल्टी कॉर्नर पर सबसे अधिक प्रयास हरमनप्रीत ने किए लेकिन सिर्फ दो गोल कर पाए। पेनल्टी कॉर्नर पर वैरिएशन की कमी और हरमनप्रीत पर अतिनिर्भरता का भारत को नुकसान हुआ।
इसके अलावा आक्रमण और रक्षण दोनों में निरंतरता की कमी भी दिखी जिस ओर रीड ने भी इशारा किया।
भारत की रक्षा पंक्ति ने स्पेन और इंग्लैंड के खिलाफ शुरुआती दो मैच में अच्छा प्रदर्शन किया और टीम के खिलाफ इन दो मैच में कोई गोल नहीं हुए।
भारत ने हालांकि टूर्नामेंट में पदार्पण कर रही दुनिया की 14वें नंबर की टीम वेल्स के खिलाफ दो गोल गंवाए और फिर न्यूजीलैंड को तीन गोल करने का मौका दिया।
न्यूजीलैंड के खिलाफ भारत 2-0 और फिर 3-1 से आगे था लेकिन नियमित समय के बाद मुकाबला 3-3 से बराबर रहा। न्यूजीलैंड ने इसके बाद सडन डेथ में 5-4 से जीत दर्ज की।
तोक्यो के बाद रूपिंदर पाल सिंह और बीरेंद्र लाकड़ा ने भी संन्यास लिया और विश्व कप टीम में उनकी जगह अनुभवहीन जरमनप्रीत सिंह और नीलम संजीप सेस ने ली।
जून में 31 बरस के होने वाले पूर्व कप्तान मनप्रीत सिंह भी लय में नहीं दिखे।
रीड से जब पूछा गया कि क्या यह सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध टीम थी तो उन्होंने प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए कहा कि वह इस बारे में कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि अभी दो क्लासीफिकेशन मैच बाकी हैं।
इसके अलावा भारत को फिनिशिंग में कमी का भी खामियाजा भुगतना पड़ा। टीम कई बार अच्छे मूव को गोल में बदलने में नाकाम रही।
न्यूजीलैंड के खिलाफ भी भारत ने दबदबा बनाया लेकिन कई मूव बनाने के बावजूद टीम अधिक गोल करने में नाकाम रही।
पिछले दो मैच में मिडफील्डर हार्दिक सिंह भी पैर की मांसपेशियों में खिंचाव के कारण नहीं खेल पाए जिसका खामियाजा टीम को उठाना पड़ा। वह इंग्लैंड के खिलाफ दूसरे पूल मैच में चोटिल हो गए थे।
भाषा सुधीर मोना
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