पेरिस के रजत पदक को लॉस एंजिलिस में स्वर्ण में बदलने का लक्ष्य: क्लब थ्रो खिलाड़ी प्रणव

पेरिस के रजत पदक को लॉस एंजिलिस में स्वर्ण में बदलने का लक्ष्य: क्लब थ्रो खिलाड़ी प्रणव

  •  
  • Publish Date - September 7, 2024 / 07:30 PM IST,
    Updated On - September 7, 2024 / 07:30 PM IST

… अजय मसंद ….

नयी दिल्ली, सात सितंबर (भाषा) पेरिस पैरालंपिक के पुरुषों की क्लब थ्रो एफ51 स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाले प्रणव सूरमा ने शनिवार को यहां कहा कि वह चार साल के बाद लॉस एंजिलिस पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। प्रणव ने पेरिस में 34.59 मीटर के प्रयास के साथ रजत पदक जीता जबकि इसका स्वर्ण पदक भी भारत के धर्मवीर ने जीता। धर्मबीर ने 34.92 मीटर के थ्रो के साथ एशियाई रिकॉर्ड भी कायम किया। प्रणव ने पेरिस पैरालंपिक खिलाड़ियों को पुरस्कृत और सम्मानित करने के लिए खेल मंत्री मनसुख मांडविया द्वारा आयोजित एक समारोह से इतर कहा, ‘‘यह मेरा पहला पैरालंपिक था और मुझे लगता है कि किसी भी एथलीट के लिए ओलंपिक या पैरालंपिक का हिस्सा बनना एक सपना है। इन उच्च स्तरीय खेलों में भाग लेना अपने आप में बहुत बड़ी बात है और पदक जीतना उससे भी बड़ी बात है।’’ प्रतिष्ठित दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कॉमर्स से पढाई करने के बाद  एक राष्ट्रीयकृत बैंक में सहायक प्रबंधक के तौर पर काम करने वाले प्रणव ने कहा, ‘‘ मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूं कि मैंने इतने सालों तक कड़ी मेहनत की और आखिरकार उसका फल मिला। हम उन गलतियों पर काम कर रहे हैं जो हमने पेरिस में की होंगी या कुछ चीजें जो पीछे रह गईं।’’ प्रणव के लिए पिछले साल हांगझोऊ में एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण के बाद यह दूसरा बड़ा पदक है।उन्होंने कहा, ‘‘हम इस पर काम करेंगे और हम इसमें सुधार करना पसंद करेंगे।’’ प्रणव यहां अपने पिता संजीव सूरमा के साथ पहुंचे थे। पिता-पुत्र की यह जोड़ी बिल्कुल एक जैसी ढ़ाडी और हेयरस्टाइल के साथ पहुंची थी। इस 29 साल के खिलाड़ी की सफलता में माता – पिता का काफी योगदान है। प्रणव जब सिर्फ 16 साल के थे तब सीमेंट की शीट उनके ऊपर गिर गई जिससे उनकी रीढ़ की हड्डी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई और उनके पैर और हाथ हिलना बंद हो गए। यहां तक कि लकड़ी के डंडे को पकड़ना भी उनके लिए बहुत मुश्किल काम है और उन्हें इसे पकड़ने और प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए गोंद का इस्तेमाल करना पड़ता है। संजीव ने प्रणव की देखभाल के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी क्योंकि परिवार के पास किसी व्यक्ति को इस काम पर रखने के लिए पैसा नहीं था। संजीव ने कहा कि प्रणव को प्रेरित करने के लिए उन्होंने उनकी तरह का लुक रखने का फैसला किया। उन्होंने कहा, ‘‘पहले हेयरस्टाइल और दाढ़ी ऐसी नहीं थी, लेकिन पिछले तीन-चार साल से मैं इसी लुक के साथ हूं। जब मैं अपने बेटे के साथ होता हूं तो इससे उसे प्रेरणा मिलती है और मुझे गर्व है कि मेरा बेटा इस स्तर पर पहुंच गया है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘जब भी हम साथ होते हैं तो लोगों को पता चल जाता है कि हम पिता-पुत्र हैं (दाढ़ी और पोनीटेल हेयरस्टाइल के कारण)। हम दोनों को काफी तारीफें भी मिलती हैं और लोग हमारे साथ तस्वीरें खिंचवाना भी पसंद करते हैं।’’ संजीव ने कहा, ‘‘मुझे एक निजी कंपनी में अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी क्योंकि मुझे हर समय प्रणव के साथ रहना पड़ता था, उसे अभ्यास के लिए ले जाना पड़ता था। हम कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में गए हैं और मैं हमेशा प्रणव के साथ रहता हूं।’’ इस दौरान प्रणव की मां दीपिका ने परिवार की जिम्मेदारी उठाई। दीपिका कहा कि बेटे की सफलता से उनकी सारी मेहनत सफल हो गई है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं उस समय काम कर रही थी, जब मेरे पति ने अपनी नौकरी छोड़ दी। हमने यह फैसला किया था कि मेरे पति प्रणव की देखभाल करेंगे और मैं काम करती रहूंगी। मैं इसे प्रबंधित कर रही हूं और प्रणव के दादा भी हैं और वह एक पेंशनभोगी हैं। इसलिए, हम दोनों ने फैसला किया कि हम घर का खर्च उठाएंगे।’’ भाषा आनन्द नमितानमिता