लाहौर। अंतरारष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने जिम्बाब्वे क्रिकेट पर बैन लगाया है। जिम्बाब्वे सहित दुनिया भर आईसीसी के इस फैसले की आलोचना हो रही है। प्रतिबंध लगने के बाद अब जिम्बाब्वे क्रिकेट को आईसीसी से कोई फंड नहीं मिलेगा। जिम्बाब्वे की प्रतिनिधि टीमें आईसीसी टूर्नामेंट में भी हिस्सा नहीं ले सकेंगी। आईसीसी ने इसकी वजह जिम्बाब्वे क्रिकेट की लोकतांत्रिक तरीके से निष्पक्ष चुनाव कराने में नाकामी को बताया है। आईसीसी के मुताबिक जिम्बाब्वे क्रिकेट बोर्ड में सरकारी दखलअंदाजी भी है, जिस कारण बोर्ड पर यह कार्रवाई की गई है। यह बात उन देशों के लिए चिंता जनक हो सकती है जहां क्रिकेट बोर्ड में सरकारी दखल है। इसी वजह से अंदेशा जताया जा रहा है कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड पर भी आईसीसी प्रतिबंध लगा सकती है।
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पीसीबी में पाकिस्तान सरकार का सीधा दखल है। यहां का प्रधानमंत्री पीसीबी का पैट्रन होता है। पाकिस्तानी अखबार ‘द डॉन’ के मुताबिक, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के संविधान के मुताबिक उसमें कई ऐसे अनुच्छेद हैं जो सरकारी दखल की बात कहते हैं। साथ ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को पीसीबी के पैट्रन का दर्जा भी हासिल है। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के मौजूदा संविधान को 2014 में पूर्व अध्यक्ष नजम सेठी के रहते स्वीकृति मिल गई थी। सेठी से पहले पीसीबी अध्यक्ष जाका अशरफ के रहते भी संविधान में कुछ बदलाव किए गए थे और तब अशरफ ने कहा था कि आईसीसी ने संविधान को मान्यता दे दी है। इस संविधान में कई जगह सरकार के दखल का जिक्र है। जिम्बाब्वे के मसले के बाद पीसीबी को अगर प्रतिबंध से बचना है तो उसे उन अनुच्छेदों को संविधान से अलग करना पड़ सकता है।
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पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के मौजूदा संविधान में एक अनुच्छेद है नंबर-45. इसके मुताबिक, “अगर सरकार चाहे तो या उसे लगे तो वह बोर्ड के संविधान में बदलाव, परिवर्तन, कुछ हटाना, जोड़ना कर सकती है” एक और नियम के मुताबिक, “पैट्रन समय-समय पर बोर्ड की जनरल पॉलिसी में निर्देश दे सकता है और बोर्ड से उन्हें लागू करने को भी कह सकता है.” वहीं, पैट्रन को पीसीबी अध्यक्ष को हटाने और बोर्ड की सर्वोच्च परिषद-बोर्ड ऑफ गर्वनर्स को हटाने का अधिकार भी होता है. वहीं बोर्ड ऑफ गर्वनर्स के दो सदस्य पैट्रन द्वारा नामित किए जाते हैं और उनमें से एक पीसीबी चैयरमैन बनता है।
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दरअसल यह नियम इमरान के पाकिस्तानी पीएम बनने से पहले का है। वहीं दूसरी ओर इमरान खान पाकिस्तानी टीम के कप्तान रह चुके हैं। इस वजह से लगता है कि वे बतौर पैट्रन पीसीबी मामले में सीधा हस्तक्षेप कर सकते हैं। ऐसा खुले तौर पर अभी तक हुआ नहीं हैं, लेकिन ऐसी मांग उठे तो हैरानी नहीं होनी चाहिए। वहीं आईसीसी ने जिम्बाब्वे पर जो प्रतिबंध लगाया है वह सबकी सहमति से लगाया है। इसका सीधा अर्थ है कि पाकिस्तान को अपने संविधान में बदलाव करना ही पड़ेगा।
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जिम्बाब्वे से पहले भी आईसीसी ने सरकारी दखल के कारण श्रीलंका और नेपाल को प्रतिबंधित किया है। आईसीसी ने भारतीय क्रिकेट बोर्ड मामले में अलग रुख अख्तियार किया था। भारत की सर्वोच्च अदालत ने 2013 आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले के बाद बीसीसीआई का कामकाज देखने के लिए लोढ़ा समिति को नियुक्त किया था। तब हालांकि बोर्ड के तत्कालीन सचिव अजय शिर्के ने आईसीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डेव रिचर्डसन से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा था। तब रिचडर्सन ने यह कहा था कि पहले बीसीसीआई इस संबंध में न्यायालय के हस्तक्षेप को लेकर आईसीसी को लिखित जानकारी दे और अपनी आपत्ति जताए।
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शिर्के ने इसके बाद कहा था कि 2013 में शशांक मनोहर ने सर्वोच्च अदालत में शपथपत्र में यह कहा था कि वह इस मामले को लेकर आईसीसी, बीसीसीआई को प्रतिबंधित कर सकता है, लेकिन मनोहर इस समय आईसीसी चैयरमेन रहते बीसीसीआई के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठा रहे हैं। बीसीसीआई के कारण कहें या फिर आईसीसी प्रमुख भारतीय होने के कारण, वजह भले ही जो भी हो, साफ है कि उम्मीद यही होगी कि पाकिस्तान को संविधान में सुधार करने का मौका मिलेगा इसकी संभावना ज्यादा होगी ।
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