ताने को जीत में बदलने के बाद नवदीप ने कहा, हम भी सम्मान के हकदार

ताने को जीत में बदलने के बाद नवदीप ने कहा, हम भी सम्मान के हकदार

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  • Publish Date - September 8, 2024 / 03:39 PM IST,
    Updated On - September 8, 2024 / 03:39 PM IST

(तस्वीर के साथ)

पेरिस, आठ सितंबर (भाषा) छोटे कद से पीड़ित नवदीप सिंह को हरियाणा के पानीपत जिले में अपने गांव में प्रशिक्षण की सामान्य कठिनाइयों के साथ लोगों के क्रूर तानों का भी सामना करना पड़ता था।

नवदीप ने उन उपहासों को सफलता में बदलते हुए खेल के सबसे बड़े मंचों में से एक पैरालंपिक में स्वर्ण पदक हासिल किया। चार फीट चार इंच कद का 23 साल का यह खिलाड़ी भाला फेंक के एफ41 वर्ग में भारत का पहला स्वर्ण पदक विजेता बना।

उन्होंने अपने जैसे पैरा खिलाड़ियों के लिए उस तरह की सम्मान की मांग की जैसा की सामान्य खिलाड़ियों को मिलता है।

भारतीय पैरालंपिक समिति (पीसीआई) की ओर से साझा वीडियो में नवदीप ने अपने स्वर्ण पदक को दिखाते हुए कहा, ‘‘ हमें भी उतना दर्जा मिलना चाहिए, मैंने भी देश का नाम रोशन किया है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ मेरा उद्देश्य समाज को शिक्षित करना है कि हम भी इस दुनिया में मौजूद हैं और किसी को हमारा मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, जो अक्सर होता है। हम भी अपने देश को गौरवान्वित कर सकते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘शुरुआत में बहुत सारी बाधाएं थीं लेकिन मैंने अपने खेल को जारी रखने के साथ खुद को मजबूत बनाये रखा। मुझे इसका अच्छा परिणाम मिला। यह मेरे जीवन का सबसे बड़ा क्षण है, मुझे स्वर्ण पदक जीतने पर गर्व महसूस हो रहा है।’’

पेरिस खेलों में ट्रैक एवं फील्ड प्रतियोगिताएं समाप्त हो गयी और फाइनल में नवदीप के सुनहरे थ्रो ने स्टेड डी फ्रांस में भारतीय राष्ट्रगान के गूंजने को सुनिश्चित किया।

नवदीप 47.32 मीटर के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रयास के साथ दूसरे स्थान पर थे लेकिन ईरान के बेत सयाह सादेघ को अयोग्य घोषित किए जाने के बाद उनके रजत पदक को स्वर्ण में बदल दिया गया।

सयाह को बार-बार आपत्तिजनक झंडा प्रदर्शित करने के लिए अयोग्य घोषित किया गया। वह अपनी हरकतों से स्वर्ण पदक गवां बैठे।

नवदीप का जन्म साल 2000 में समय से पहले हो गया था।जब वह दो साल के थे तब उनके माता-पिता को एहसास नहीं हुआ कि उनके बेटे में बौनापन है।

उनके पिता, दलबीर सिंह राष्ट्रीय स्तर के पहलवान थे और उन्होंने खेलों में आगे बढ़ने के लिए अपने बेटे का पूरा समर्थन किया।

नवदीप ने 10 साल की उम्र में अपनी एथलेटिक यात्रा शुरू की, राष्ट्रीय नायक नीरज चोपड़ा से प्रेरित होने के बाद भाला फेंक में पहचान पाने से पहले उन्होंने कुश्ती और दौड़ में हाथ आजमाया।

नवदीप ने कहा, ‘‘पहली चीज जो मेरे दिमाग में आती है वह मेरे पिता (दलबीर सिंह) हैं। मुझे अब अपने परिवार की बहुत याद आती है। शुरू में, यह एक बोझ की तरह लगता था। मुझे आश्चर्य हुआ कि मैं दूसरों की तरह जीवन का आनंद क्यों नहीं ले सकता जैसा कि स्कूल जाना और पढ़ाई करना।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ मेरे पिता ने मुझे खेलों के लिए प्रेरित किया और ट्रैक पर बनाए रखा। इस यात्रा में मैं सिर्फ एक व्यक्ति को श्रेय नहीं दे सकता। चैंपियन समर्थन से बनते हैं, इसलिए मेरे कोच, मेरे परिवार, सरकार, इन सभी ने हमारी सफलता में योगदान दिया। हमने 25 पदकों की उम्मीद की थी लेकिन यह संख्या 29 तक पहुंच गयी।’’

नवदीप ने अपनी इस सफलता के लिए दिग्गज पैरा खिलाड़ी और भारतीय पैरालंपिक समिति के अध्यक्ष देवेंद्र झाझड़िया को भी श्रेय दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘ सर (झाझड़िया) के पास बहुत अनुभव है, और वो हमेशा फंसे हुए मैच निकालने में सफल रहे हैं, इसलिए मैंने उनसे अपनी समस्या साझा की।’’

नवदीप ने कहा, ‘‘ उन्होंने एक छोटी सी सलाह दी लेकिन अंत में पता चला सच में ये तो बहुत जरूरी पहलू है।’’

अपनी मांसपेशियों की प्रभावशाली शक्ति और गति के बावजूद नवदीप को तकनीक के साथ संघर्ष करना पड़ा। इस कमी के कारण वह तोक्यो पैरालंपिक में चौथे स्थान पर रहे।

 पैरालंपिक में दो बार स्वर्ण पदक विजेता झाझड़िया ने नवदीप को समझाया कि कई लोगों का मानना है कि भाला मुख्य रूप से हाथों से फेंका जाता है, लेकिन असली ताकत पैरों से आती है।

झाझड़िया ने कहा, ‘‘ मैंने उससे केवल एक ही बात कही, ‘याद रखें, लोग कहते हैं कि आप अपने हाथों से भाला फेंकते हैं लेकिन वास्तव में इसके लिए ताकत पैरों से मिलती है’।’’

झाझड़िया ने बाएं हाथ से थ्रो करने वाले नवदीप को सलाह दी थी की थ्रो करते समय दाहिने पैर का इस्तेमाल अच्छे से करे। इस तकनीक से अधिक ताकत मिलती है।

उन्होंने कहा, ‘‘ मैं नवदीप के बारे में जो कुछ भी कहुं, वह पर्याप्त नहीं है, इससे हमारे पदकों की संख्या 29 हो गई है। हम 2028 पैरालंपिक में 29 से अधिक पदकों का लक्ष्य रखेंगे।’’

भाषा आनन्द आनन्द पंत

पंत