नयी दिल्ली, 23 दिसंबर (भाषा) बहुत कम ऐसे खेल हैं जिन्हें किसी एक खिलाड़ी से जोड़कर देखा जाता है लेकिन भारतीय भारोत्तोलन में मीराबाई चानू एक ऐसा नाम है जो पिछले कई वर्षों से भारत में इस खेल की पर्याय बनी हुई है और वर्ष 2024 भी कोई अपवाद नहीं रहा।
तोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीतने वाली मीराबाई पेरिस ओलंपिक में यह कारनामा नहीं दोहरा पाई जो भारत के लिए सबसे बड़ा झटका था। भारतीय भारोत्तोलन के लिए यह इसलिए भी निराशाजनक साल रहा क्योंकि वह इस वर्ष भी मीराबाई का उत्तराधिकारी ढूंढने में नाकाम रहा।
मीराबाई ने तोक्यो ओलंपिक में रजत पदक जीत कर इस खेल में भारत का 21 साल से चला आ रहा सूखा खत्म किया था। जहां तक पेरिस ओलंपिक की बात है तो मीराबाई एकमात्र भारोत्तोलक थी जिन्होंने इन खेलों के लिए क्वालीफाई किया था।
इस 29 वर्षीय खिलाड़ी को ओलंपिक से पहले कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा। चोटिल होने के कारण वह कुछ प्रमुख प्रतियोगिताओं में भाग नहीं ले पाई जिसका मतलब था कि वह ओलंपिक के लिए अपेक्षित तैयारी नहीं कर सकी थी।
मीराबाई ने इसके बावजूद अपनी अदम्य इच्छा शक्ति के दम पर पेरिस ओलंपिक में भाग लिया। तब भी उनकी फिटनेस को लेकर कानाफूसी चल रही थी। मीराबाई ने हालांकि अपना सर्वश्रेष्ठ देने की पूरी कोशिश की लेकिन आखिर में उन्हें चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा।
यह खिलाड़ी और देश के लिए निराशाजनक परिणाम था क्योंकि मीराबाई को शुरू से ही पदक का प्रबल दावेदार माना जा रहा था।
मीराबाई लगातार यह कहती रही हैं कि उनकी खेल यात्रा अभी समाप्त नहीं हुई है और एशियाई खेलों में पदक जीतना उनका अगला लक्ष्य है लेकिन लगातार चोटिल होने के कारण उनके आगे खेलने को लेकर आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही हैं।
जापान में 2026 में होने वाले एशियाई खेलों तक मीराबाई की उम्र 31 साल की हो जाएगी और इस उम्र में भारोत्तोलन जैसे खेल में बने रहना आसान नहीं होता जबकि यह भारतीय खिलाड़ी चोटों से भी जूझती रही है।
मीराबाई से इतर भारतीय भारोत्तोलन का भविष्य अनिश्चित नजर आता है। इस खेल में भारत राष्ट्रमंडल खेलों में अच्छा प्रदर्शन करता रहा है लेकिन 2022 के राष्ट्रमंडल खेलों में चमक बिखेरने वाले खिलाड़ी इसके बाद गुमनामी के अंधेरे में चले गए।
इसका उदाहरण जेरेमी लालरिननुंगा है, जो चोट और अनुशासनात्मक मुद्दों के कारण गुमनामी में जाने से पहले जूनियर, युवा और राष्ट्रमंडल स्तर पर ठोस प्रदर्शन के साथ प्रमुखता से उभरे थे।
उम्मीद की एक किरण 21 वर्षीय ज्ञानेश्वरी यादव है, जिन्होंने मीराबाई की अनुपस्थिति में विश्व चैंपियनशिप में 49 किग्रा वर्ग में पांचवा स्थान हासिल किया था।
भाषा पंत सुधीर
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