नई दिल्ली : Politics on Bharat Bandh : जब-जब देश में आरक्षण में परिवर्तन को लेकर कोई भी बात उठी है उस पर सवाल उठे हैं, बवाल मचा है। इस बार भी देश की सुप्रीम अदालत ने ST-SC आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर और कोटे के भीतर कोटे को लागू करने बावत एक फैसला सुनाया। जिसके खिलाफ अनुसूचित जनजाति और दलित संगठनों ने भारत बंद बुलाया जिसका पूरे देश में अलग-अलग असर रहा। बंद के दौरान देश में कुछ जगहों पर हिंसा, संघर्ष, उपद्रव, लूटपाट, लाठीचार्ज जैसे हालात बने तो प्रदेश में लॉ-एंड-आर्डर की कोई सिचुएशन तो नहीं बनी लेकिन पक्ष-विपक्ष में इस पर बहस जरूर छिड़ गई की आखिर इस बंद की जरूरत क्या है।
Politics on Bharat Bandh : देश में जाति और आरक्षण पर जारी सियासी घमासान के बीच देश के दलित संगठनों ने बुधवार को सरकार को अपनी ताकत दिखाई। आरक्षण बचाओ संघर्ष समिति ने SC/ST आरक्षण पर 1 अगस्त को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ भारत बंद का आव्हान किया। कांग्रेस, बसपा, भीम आर्मी, RJD और लोक जनशक्ति पार्टी समेत कई राजनीतिक दलों ने बंद का समर्थन किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया.. इस पर सियासी बयानबाजी भी खूब हुई।
Politics on Bharat Bandh : आरक्षण पर बयानबाजी अपनी जगह है। दरअसल हर पार्टी अपने सियासी नफे-नुकसान को ध्यान में रखकर आरक्षण पर अपना पक्ष रख रही है। लेकिन ये भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च अदालत है जो गहरे मंथन और विचार-विमर्श के बाद किसी नतीजे पर पहुंचती है। आरक्षण भारत की राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था में एक बेहद जटिल मुद्दा है। इस पर सभी पक्षों की एक राय हो ये जरूरी नहीं है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले आमतौर पर देश के सभी वर्गों की हितों और कानून की कसौटी पर खरे उतरने पर ही जारी किए जाते हैं। जरुरत इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट के SC/ST आरक्षण पर फैसले को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा, समझा और परखा जाए।