भोपाल : Sign Board Politics in MP: अभी ज्यादा वक्त नहीं बीता जब यूपी और उत्तराखंड में कांवड यात्रा को लेकर नेमप्लेट के विवाद ने तूल पकड़ा था। मध्यप्रदेश के इंदौर में भी कुछ ऐसा ही होते दिख रहा है। इंदौर नगर निगम ने दुकानों के नाम हिंदी में लिखे जाने के अभियान की शुरुआत की है, ताकि शहर सुंदर बने और सभी दुकानों के बोर्ड एक साइज में दिखे। खास बात ये है कि इंदौर महापौर की इस पहल को जबलपुर और देवास नगर निगम ने भी आगे बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई है। कहीं इसका स्वागत हो रहा है तो कहीं विरोध भी।. सियासत भी अपना रंग दिखा रही है।
Sign Board Politics in MP: देश के सबसे साफ शहरों में शुमार इंदौर को अब सबसे सुंदर बनाने की कवायद भी शुरू हो गई है। इंदौर नगर निगम का मानना है कि शहर की दुकानों पर लगे अंग्रेजी के साइन बोर्ड और इनके अलग-अलग डिजाइन शहर की खूबसूरती को कम कर रहे हैं और अंग्रेजी साइन बोर्ड से हिंदी को भी समान महत्व नहीं मिल रहा इसी के चलते शहर के MG रोड से एक नई पहल शुरू की जा रही है। जिसके तहत यहां दुकानों के बोर्ड सिर्फ हिंदी में और एक ही साइज में होंगे।इंदौर नगर निगम की इस पहल का विरोध भी शुरू हो गया है कांग्रेस ने इसे बीजेपी का पब्लिसिटी स्टंट करार दिया है।
इंदौर में अभी इसकी बस शुरूआत ही हुई थी कि उसका असर मध्यप्रदेश के बाकी नगर निगमों पर भी दिखने लगा। जबलपुर के महापौर जगत बहादुर सिंह ने इंदौर की राह पर चलने की बात कही तो देवास और छिंदवाड़ा महापौर ने व्यापारियों से इसकी अपील कर दी। हालांकि जबलपुर महापौर के फैसले पर नेता प्रतिपक्ष अमरीश मिश्रा ने सवाल खड़े किए।
Sign Board Politics in MP: हिंदी में साइन बोर्ड के पक्ष और विपक्ष में कई आवाजें उठ रही हैं। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग ने भी हिंदी के इस्तेमाल पर जोर दिए जाने पर सवाल उठाए और विरोध की बात कही।
इंदौर नगर निगम मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा नगर निगम है और स्वच्छता के शानदार रिकॉर्ड के चलते बाकी नगर निगमों के लिए आदर्श। यही वजह है कि पेयजल, सफाई और ट्रैफिक जैसी बुनियादी जरुरतों पर ध्यान देने की बजाय बाकी नगर निगम आंखें मूंदकर इंदौर को फॉलो करने पर जोर दे रहे हैं। बीजेपी जहां इसका समर्थन कर रही है तो विपक्ष इस पर सवाल खड़े कर रहा है। क्या इसके पीछे सच में हिंदी को बढ़ावा देने की मंशा है या फिर कोई सियासत।