#SarkarOnIBC24 : दिल्ली की मुख्यमंत्री Atishi Marlena का भरत राग, चापलूसी का नया अंदाज!

Delhi Politics News : दिल्ली में अब से खड़ाऊ राज चलेगा। जैसे राम के 14 साल के वनवास के दौरान भरत ने उनकी खडाऊ रखकर शासन चलाया।

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  • Publish Date - September 23, 2024 / 11:38 PM IST,
    Updated On - September 23, 2024 / 11:38 PM IST

नई दिल्ली : Delhi Politics News : दिल्ली में अब से खड़ाऊ राज चलेगा। जैसे राम के 14 साल के वनवास के दौरान भरत ने उनकी खडाऊ रखकर शासन चलाया। अब दिल्ली में बनी आतिशी सरकार भी उसी राह पर चलने का फैसला लिया है। जाहिर है इस कदम से सियासी गहमागहमी बढ़ गई है। बीजेपी का कहना है कि इस हरकत से आतिशी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की गरिमा के साथ ही दिल्ली की जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। भाजपा ने तो इसे चापलूसी तक करार दे दिया है।

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Delhi Politics News : रामायण में भरत ने श्री राम के प्रति अपने भ्रातत्व प्रेम और शासन पर उनका अधिकार सुनिश्चित करने के लिए सिंहासन पर उनकी खड़ाऊं को रखकर अपना राजपाट चलाया था। प्रतीकात्मक संदेश यही था कि राजा भले भरत को मनोनीत किया गया है, लेकिन उसके वास्तविक अधिकारी श्री राम ही है। ये तो खैर राजतंत्र काल की बात थी, भरत के देश भारत में एक बार फिर उसी खडाऊं राज की वापसी हुई है। इस लोकतांत्रिक राजतंत्र में भरत की भूमिका निभाई है दिल्ली की नवमनोनीत मुखमंत्री आतिशी ने और राजा राम बने हैं अरविंद केजरीवाल।

ये दो तस्वीरें इस बात की गवाही देती हैं कि शासन व्यवस्था भले लोकतांत्रिक हो लेकिन राजनीति का मिजाज अब भी राजतांत्रिक है। तब श्री राम को वनयात्रा पर जाना पड़ा था और अब केजरीवाल को जेलयात्रा पर। तब श्री राम को अपनी सौतेली मां कैकयी की जिद के चलते राजमहल त्यागना पड़ा था और अब कथित शराब घोटाले के चलते केजरीवाल को अपना शीशमहल त्यागना पड़ रहा है। तब श्री राम की सत्ता उनकी खड़ाऊं के प्रतीक के तौर पर कुर्सी पर विराजमान थी और अब केजरीवाल की सत्ता उनकी खाली कुर्सी के तौर पर विद्यमान है।

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Delhi Politics News : आतिशी भले खुद को भरत साबित कर रही हों लेकिन विरोधी उनके राम पर सवाल खड़े करने से नहीं चूक रहे हैं। कोई इसे नौटंकी बता रहा है तो कोई मजबूरी।

कुल मिलाकर भारत में अब भले लोकतंत्र स्थापित हो गया है लेकिन उसका चरित्र मूलतः राजतांत्रिक ही है। ये लोकतांत्रिक राजतंत्र नहीं तो और क्या है जहां पार्टियों के अध्यक्ष से लेकर संवैधानिक पदों तक की नियुक्ति में मनोनयनवाद हावी है। इस मनोनयनवाद को आप सर्वसम्मति से लिया गया लोकतांत्रिक फैसला माने या फिर राजनीति का राजतांत्रिक स्वरूप आपकी मर्जी।

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