नई दिल्ली : Why Conch shell is not blown in Badrinath temple : हिंदू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ के पहले और आखिरी में शंखनाद किया जाता है। पूजा-पाठ के साथ हर मांगलिक कार्यों के दौरान भी शंख बजाया जाता है। शंख को सुख-समृद्धि और शुभता का कारक माना गया है। कहते हैं कि शंख बजाए बिना पूजा अधूरी मानी जाता है। वहीं चारधामों में से एक बद्रीनाथ में शंख बजाने की मनाही है। बद्रीनाथ मंदिर में भगवान विष्णु के अवतार बद्रीनारायण की पूजा की जाती है। यहां उनकी 3.3 फीट ऊंची शालिग्राम की बनी मूर्ति है।
यह भी पढ़ें : भारत के मोस्ट वांटेड खालिस्तानी आतंकी की सड़क हादसे में मौत, समर्थकों ने लगाया बड़ा आरोप
Why Conch shell is not blown in Badrinath temple : माना जाता है कि इस मूर्ति की स्थापना शिव के अवतार माने जाने वाले आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में की थी। यह भी माना जाता है कि भगवान विष्णु की यह मूर्ति यहां स्वयं स्थापित हुई थी। कहते हैं इसी स्थान पर भगवान विष्णु से तपस्या की थी। बद्रीनाथ में शंख न बजाने के पीछे कथा प्रचलित है। जिसके अनुसार जब हिमालय में दानवों का बड़ा आतंक था तब ऋषि मुनि न मंदिरों में ना ही किसी और स्थान पर भगवान की पूजा अर्चना कर पाते थे।
राक्षसों के आतंक को देखकर ऋषि अगस्त्य ने मां भगवती को मदद के लिए पुकारा, जिसके बाद मां कुष्मांडा देवी के रूप में प्रकट हुईं और अपने त्रिशूल और कटार से राक्षसों को खत्म कर दिया। हालांकि मां कुष्मांडा के प्रकोप से बचने के लिए दो राक्षस आतापी और वातापी वहां से भाग निकले। इसमें से आतापी मंदाकिनी नदी में छुप गया और वातापी बद्रीनाथ धाम में जाकर शंख के अंदर घुसकर छुप गया। जिसके बाद से यहां शंख नहीं बजाया जाता।
यह भी पढ़ें : अमित शाह की हाईलेवल बैठक खत्म, भाजपा संगठन में हो सकता है बड़ा बदलाव…
Why Conch shell is not blown in Badrinath temple : बद्रीनाथ में शंख न बजाने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। जिसके अनुसार अगर यहां शंख बजाया जाए तो उसकी आवाज बर्फ से टकराकर ध्वनि पैदा कर करेगी जिससे बर्फ में दरार पड़ सकती है और हिमस्खलन का खतरा भी बढ़ सकते है. इसलिए यहां शंख नहीं बजाया जाता।