जहां श्रीराम के पांव पड़े- वहां आज भी नहीं उगते कांटे, इस स्थान पर ही माता सती ने रखा था देवी सीता का रुप

जहां श्रीराम के पांव पड़े- वहां आज भी नहीं उगते कांटे, इस स्थान पर ही माता सती ने रखा था देवी सीता का रुप

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  • Publish Date - May 13, 2020 / 09:36 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:08 PM IST

धर्म । धमतरी ज़िले की सिहावा पहाड़ी में सप्तऋषियों का वास माना जाता है। यहीं रहते थे ऋंगी ऋषि, जिनके पुत्रयेष्ठि यज्ञ के बाद राम सहित राजा दशरथ के चारों पुत्रों का जन्म हुआ था। बाद में ऋंगी ऋषि के साथ श्रीराम की बहन शांता का विवाह हुआ। कहते हैं। आज भी सिहावा की एक गुफा में शांता देवी की प्रतिमा मौजूद है। कहा जाता है, वनवास के दौरान राम सिहावा भी आए थे, यहां उन्होंने ऋंगी ऋषि से मुलाकात की थी। सिहावा इलाके में राम से जुड़ी कई निशानियां बाकी हैं। यहां से होकर एक नदी गुज़रती है, जिसका नाम है सीता नदी। इसे भी राम की यादों के साथ जोड़कर देखा जा सकता है। इसके अलावा धमतरी ज़िले में लीलर, मधुवन, डोंगापथरा, रूद्री और नगरी में भी श्रीराम के चरण पड़े थे।

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श्रीराम महासमुंद ज़िले के सिरपुर भी पहुंचे थे। इसके अलावा सिरपुर के नजदीक में स्थित तुरतुरिया नाम की जगह में भी उनका आगमन हुआ था। यहां आज भी ऋषि वाल्मिकी का आश्रम मौजूद है। वहीं पास की पहाड़ी पर सीता माता का एक प्राचीन मंदिर भी है।

रायपुर ज़िले के गरियाबंद-देवभोग इलाके में पहले घनघोर जंगल हुआ करता था। सीता हरण के बाद श्रीराम इस इलाके में आए थे। यहां के ऋषि झरन नाम की जगहपर अगत्स्य ऋषि के आश्रम होने की बात कही जाती है। यहां आज एक जीवाश्वनुमा समाधि भी है। जिसे अगस्त्य ऋषि की समाधि के रूप में चिन्हित किया जाता है। आज भी यहां मौजूद तीन पहाड़ियों के नाम राम डोंगर, लक्ष्मण डोंगर और सीता डोंगर है। ऋषि झरन में श्रीराम और अगस्त्य ऋषि की मुलाकात हुई थी।

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ऋषि झरन की तरह ही यहां के कांदा डोंगर में भी राम की यादें बसी हुई हैं। ये पूरा इलाका आज भी राम की यादों में डूबा नज़र आताहै। कहते हैं, यहां की जोगी गुफा में श्रीराम ने सरभंग ऋषि से भेट की थी। कांदा डोंगर में एक और विशाल गुफा है, जिसे राम पगार के नाम से जाना जाता है। कहते हैं, यहां श्रीराम ने कुछ वक्त व्यतीत किया था।
कवर्धा और दुर्ग ज़िले में भी श्रीराम के चरण पड़े थे। जहां कवर्धा के दशरंगपुर और पचराही में उनके आने की बात कही जाती है, वहीं दुर्ग के सियादेवी में भी उनके आने की कथा प्रचलित है। कहते हैं, यही वो जगह है, जहां सती माता ने देवी सीता का रूप धरकर उनकी परीक्षा ली थी।

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उत्तर बस्तर का मुख्यालय कांकेर एक प्राचीन नगर है। कहते हैं, यहां कंक ऋषि का आश्रम था। यहां के केशकाल में श्रीराम के चरण पड़े थे। यहां उन्होंने प्राचीन गोबरहीन धाम में शिवजी की पूजा-अर्चना भी की थी। कहते हैं, कांकेर में जहां-जहां श्रीराम के पांव पड़े थे, वहां आज भी वहां कांटे नहीं उगते। आज भीउस रास्ते पर घास की नर्म चादर बिछी नज़र आती है। कांकेर के रामपुर और जुनवानी में भी उनके आने के प्रमाण मिलते हैं। इसके अलावा बस्तर ज़िले के बस्तर गांव, धनौरा, कोटमसर, नारायणपुर, राकसहाड़ा, नारायणपाल, चित्रकोट, बारसूर, तीरथगढ़, और ताडुकी में श्रीराम के पांव पड़े थे। वहीं दंतेवाड़ा ज़िले के गीदम, दंतेवाड़ा, सुकमा, इंजरम और कोंटा में भी उनके आने की निशानियां मिली हैं। इसी तरह बीजापुर ज़िले के रामाराम नाम की जगह में भी श्रीराम के आने की बात कही जाती है। यहीं से भगवान श्रीराम लक्ष्मणजी सहित दक्षिण प्रवेश कर गए थे।