Aghoriyon Ka Nivas : कहां होता है अघोरियों का निवास? यहां जानें उनके जीवन से जुड़े कुछ रहस्यमयी तथ्य | Aghori Ki Jankari in Hindi

Aghoriyon Ka Nivas : अघोरी अक्सर आपको श्मशान के सन्नाटे में जाकर तंत्र क्रिया करते हुए देखे जा सकते हैं। Aghori Ki Jankari in Hindi

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  • Publish Date - July 24, 2024 / 11:23 PM IST,
    Updated On - July 25, 2024 / 03:37 PM IST

Aghoriyon Ka Nivas : भारत में अघोरियों का इतिहास और तथ्य पुराणों में भी निहित हैं। अघारियों का नाम सुनते ही अपने अंदर एक साधु बाबा वाली छवि बनती है। जिनकी लंबी-लंबी जटाएं हों, जिसका शरीर राख में लिपटा हो और जिन्होंने मुंड मालाएं गले में धारण की हों। माथे पर चंदन का लेप और उसके ऊपर उभरा हुआ तिलक। यह डरावना स्वरूप हर किसी के मन में भय पैदा कर सकता है परंतु इनके नाम का अर्थ विपरीत होता है। अघोरी नाम का अर्थ होता है, एक ऐसा व्यक्ति जो सरल है, डरावना नहीं है, जो किसी से भेदभाव नहीं करता। यह अक्सर आपको श्मशान के सन्नाटे में जाकर तंत्र क्रिया करते हुए देखे जा सकते हैं।

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कौन होते हैं अघोरी?

Aghoriyon Ka Nivas : वहीं अघोर का मतलब अ+घोर यानी जोकि घोर नहीं हो और सरल हो। हालांकि इनका स्वरूप वास्तव में डरावना होता है। लेकिन अध्यात्म की भाषा में अघोर बनने की पहली क्रिया मन से घृणा को निकालना होता है। मूलत: अघोरी शमशान जैसी जगहों पर सहजता से रहते हैं और तंत्र क्रियाएं सीखते हैं। सामन्यत: समाज जिन चीजों से घृणा करता है, अघोरी उसे अपनाते हैं।

कहां होता है अघारियों का निवास?

 

शिव और शव उपासक होते हैं अघोरी

शिव के पांच रूपों में एक ‘अघोर’ भी है। अघोरी भी शिव जी के उपासक होते हैं और शिव साधना में लीन होते हैं। इसके साथ ही ये शव के पास बैठकर भी साधना करते हैं। क्योंकि ये शव को शिव प्राप्ति का मार्ग कहते हैं। ये अपनी साधना में शव के मांस और मदिरा का भोग लगाते हैं। एक पैर पर खड़े होकर शिव जी की साधना करते हैं और शमशान में बैठकर हवन करते हैं।

बनारस का मणिकर्णिका घाट

बनारस के मणिकर्णिका घाट को महा-श्मशान कहा जाता है। यहां सुबह से लेकर रातभर अंतिम संस्कार का सिलसिला जारी रहता है। मणिकर्णिका घाट अघोरियों का विशेष स्थान माना जाता है और इसका मुख्य कारण यहां स्थित बाबा विश्वनाथ का मंदिर और और गंगा के 84 घाट हैं। यहां के घाट अघोरी-तांत्रिकों की गुप्त साधना के लिए विशेष स्थान माने जाते हैं।

बंगाल का तारापीठ

तंत्र-साधना के लिए बंगाल का जिक्र सबसे पहले आता है। बंगाल का तारापीठ अघोरी-तांत्रिकों का बड़ा ठिकाना माना जाता है। दरअसल यह स्थान तारा देवी के लिए प्रसिद्ध है और यहां मां काली की विशाल प्रतिमा स्थापित है। यह मंदिर श्मशान घाट के नजदीक स्थित है और कहा जाता है कि यहां कि मसान की अग्नी भी कभी शांत नहीं पड़ती। इसलिए यह श्मशान घाट अघोरियां की गुप्त साधना के लिए विशेष ठिकाना माना जाता है।

असम का कामाख्या देवी मंदिर

वहीं असम के गुवाहाटी शहर में स्थित भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक कामाख्या मंदिर अघोरियों की तंत्र-साधना का मुख्य स्थल माना जाता है। मान्यता के अनुसार यहां देवी सती के शरीर का एक अंग ‘योनी’ गिरा था। यहां स्थित श्मशान घाट में देश के विभिन्न जगहों से तांत्रिक गुप्त सिद्धियां प्राप्त करने के लिए पहुंचते हैं।

 

नासिक का त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग

महाराष्ट्र के नासिक स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में भी अघोरियों का भारी जमावड़ा लगता है। बता दें कि यह मंदिर भोलेनाथ को समर्पित है और जहां भगवान शिव विराजमान हों वो जगह भला अघोरियों से कैसे दूर रह सकती है। यहां कई खास मौके पर अघोरी तंत्र साधना करने पहुंचते हैं।

अघोरियों से जुड़े रहस्यमयी तथ्य

अघोरी एक धर्म से जुड़े होते है जो शैव धर्म के नाम से जाना जाता है। यह तीन तरह की साधनाएं करते है। शिवसाधना, शव साधना और श्मशान साधना।

ये तीनों साधनाएं बहुत ही भयानक होती है। शिव साधना में अधोरी शव के ऊपर पैर रखकर साधना करता है। वही श्मशान साधना ही एक ऐसी साधना होती है जहां पर आम इंसान जा सकते है। इसमें शव को जिस जगह जलाया जाता है। वहां पर पूजा की जाती है।

अघोरियों का एकमात्र उद्देश्य होता है। अपने उपासक शिव की साधना करना और उन्हे पानी। जिसके लिए वह कठिन से कठिन तपस्या भी करते है। यह अधिकतर एक ही जगह साधना करता है। वह है श्मशान। अमूमन ये क्रिया रात में ही करते हैं।

अघोरियों के लिए अघोर साधना के लिए काली चौदस की रात अधिक महत्वपूर्ण होती है। इस दिन अघोरी भटकती आत्माओं को अपने वश में करते हैं। इसके लिए अघोरी पांच खोपड़ी चार अलग-अलग दिशाओं में जबकि एक बीच में रख कर करते है।अघोरियों की साधना में इतना प्रभाव होता है कि यह मुर्दे से भी बात कर लेते है। माना जात है कि जब शिव साधना अपनी चरम में होता है तो मुर्दा बोल उठता है।

अगर कोई शव नदी में या फिर शमशान में कोई आधा जला मिल जाए तो यह उसे निकालकर बडे ही चाव से खाते है। कई तो ऐसे अघोरी होते है कि जब चिता में शव जल रहा हो वह उसकी खोपड़ी निकाल कर बहुत आराम से खा जाते है।

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