धर्म। देश के प्रसिद्ध देवी मंदिर ऊंचे-ऊंचे स्थानों पर एकांत में हैं। इसे लेकर क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इसके पीछे का रहस्य क्या है। ऊंचे-ऊंचे स्थानों पर होने के कारण ही देवी मां को पहाड़ों वाली माता कहा है। चैत्र नवरात्र शुरू होने वाली है। इस मौके पर आपको देवी माता से जुड़ी बातें आपको बता रहे हैं कि आखिर पहाड़ों पर देवी मंदिरों के होने का क्या रहस्य है।
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मौन, ध्यान और जप आदि कार्यों के लिए एकांत की जरूरत होती है और इसके लिए पहाड़ों से अच्छा कोई स्थान नहीं हो सकता। इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रों पर इंसानों का आना-जाना कम ही रहता है, जिससे वहां का प्राकृतिक सौन्दर्य अपने असली रुप में जीवित रह पाता है। वहीं पूर्व समय में पहाड़ों को साधना केंद्र के रूप में जाना जाता था। ऋषि-मुनि ऐसे स्थानों पर सालों तपस्या करके सिद्धि प्राप्त करते थे। इस दौरान देवी माताओं के चमत्कारी परिणाम भी देखने को मिले। जानकारों का कहना है कि एकांत ने ही देवी मंदिरों के लिए पहाड़ों को महत्व दिया है।
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पहाड़ों पर दैवीय स्थल होने की वजह यह भी है कि देवी उमा यानि पार्वती पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। जहां तक पहाड़ों वाली माता का संबंध है तो उसका मुख्य कारण ये है कि देवी का जन्म यहीं हुआ। इस स्थान को देव भूमि भी कहते हैं, इसका कारण यह भी है कि इसी स्थान को भगवान शिव के निवास स्थान के रूप में भी जाना जाता है।
वहीं देखा जाए तो देवी राक्षसों के नाश के लिए अवतरित हुईं थीं। ऐसे में यह भी माना जाता है कि राक्षस मैदानी इलाके से आते थे और देवी पहाड़ों से उनको देख उनका वध कर देती थीं। इसलिए भी देव स्थान ऊंचे पहाड़ों पर हैं।
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देखें देश के खास प्रसिद्ध देवी मंदिर
मैहर माता मंदिर- मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित मैहर माता मंदिर प्रसिद्ध देवी मंदिर है। यहां आने वाले हर भक्तों की मनोकाना पूरी होती है। माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं को 1,063 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं। यहां भगवान नृसिंह की प्राचीन मूर्ति विराजमान हैं, जिसे साल 502 में लगवाया गया था। साथ ही, दो महान योद्धाओं आल्हा तथा ऊदल का भी दर्शन कर उनकी वीरता और महानता की वंदना करते हैं। आल्हा व ऊदल मां के बहुत समर्पित भक्त थे। उन्होंने 1182 में पृथ्वीराज चैहान से युद्ध भी किया था। मंदिर के बारे में श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां रात 2 से 5 बजे के बीच रुकने से मौत हो सकती है? श्रद्धालुओं की मान्यता है कि जो हठपूर्वक यहां रुकने की कोशिश करता है, उसकी मौत हो सकती है।
मां बम्लेश्वरी मंदिर- छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी मंदिर स्थित है। इसे कामाख्या नगरी भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है। लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन था। वे नि:संतान थे। संतान की कामना के लिए उन्होंने भगवती दुर्गा और शिवजी की उपासना की। इसके फलस्वरूप उन्हें एक साल के अंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वीरसेन ने पुत्र का नाम मदनसेन रखा। मां भगवती और भगवान शिव के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए राजा ने मां बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया।
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माता वैष्णो देवी– वैष्णो देवी माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं। ये मंदिर जम्मू और कश्मीर के जम्मू जिले में कटरा नगर में त्रिकुटा पहाड़ियों पर है। ये मंदिर 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है। हर साल लाखों तीर्थयात्री मंदिर का दर्शन करते हैं। माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक प्रसिद्ध प्राचीन मान्यता के अनुसार, माता वैष्णो के भक्त श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उसकी लाज रखी और दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया।
सलकनपुर देवी मंदिर – मध्यप्रदेश के सीहोर सलकनपुर में विराजी मां विजयासन दर्शन देकर भक्तों का हर दुख हर लेती हैं। 14 सौ सीढ़ियों का सफर तय कर भक्त माता के दरबार पहुंचते हैं। सलकनपुर में विराजी सिद्धेश्वरी मां विजयासन की ये स्वयंभू प्रतिमा माता पार्वती की है जो वात्सल्य भाव से अपनी गोद में भगवान गणेश को लिए हुए बैठी हैं।
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पूर्णागिरी देवी मंदिर- यह मंदिर भारत के देवभूमि उत्तराखण्ड के टनकपुर में अन्नपूर्णा शिखर पर 5500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यह 108 सिद्ध पीठों में से एक है। यह स्थान महाकाली की पीठ माना जाता है। कहा जाता है कि दक्ष प्रजापति की कन्या और शिव की अर्धांगिनी सती की नाभि का भाग यहां पर विष्णु चक्र से कट कर गिरा था। प्रतिवर्ष इस शक्ति पीठ की यात्रा करने आस्थावान श्रद्धालु कष्ट सहकर भी यहां आते हैं। “मां वैष्णो देवी” जम्मू के दरबार की तरह पूर्णागिरी दरबार में हर साल लाखों की संख्या में लोग आते हैं।
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ज्वाला देवी मंदिर- हिमाचल प्रदेश की कांगडा घाटी से 30 दूर पहाड़ी पर ज्वाला देवी मंदिर है। यह मंदिर 51 शक्ति पीठों में शामिल है। उन्हें जोता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। ज्वालामुखी मंदिर को खोजने का श्रेय पांडवों को जाता है। उन्हीं के द्वारा इस पवित्र धार्मिक स्थल की खोज हुई थी। इस स्थान पर माता सती की जीभ गिरी थी।
मनसा देवी मंदिर- मनसा देवी का मंदिर हरिद्वार में हरकी पौड़ी के पास गंगा किनारे पहाड़ी पर है। दुर्गम पहाड़ियों और पवित्र गंगा के किनारे स्थित मनसा देवी का उल्लेख पुराणों में है। ‘मनसा’ शब्द का प्रचलित अर्थ इच्छा है। मान्यता है कि मनसा देवी का जन्म संत कश्यप के मस्तिष्क से हुआ है। उन्हें नाग राजा वासुकी की पत्नी भी माना जाता है।
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