उज्जैन। आज नागपंचमी है, इस मौके पर महाकाल की नगरी उज्जैन में औघड़दानी के अद्भुत स्वरूप का दर्शन कर आप अभिभूत हो जाएंगे। देह पर लिपटे भुजंग..दशामुखी सर्पशय्या..और उसमें विराजे भोले भंडारी…। अभिभूत करने वाला ये दृश्य, केवल नागचंद्रेश्वर मंदिर में देखने को मिलता है।
उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर परिसर में स्थित है नागचंद्रेश्वर मंदिर । हर साल नागपंचमी के दिन करीब 2 घंटे के त्रिकाल पूजन के बाद मंदिर के कपाट खुलते हैं। वो भी सिर्फ 24 घंटों के लिए। हालांकि कोरोना संक्रमण के चलते उज्जैन में इस बार श्रद्धालु नागचंद्रेश्वर मंदिर में दर्शन नहीं कर पाएंगे, मंदिर में सीमित लोगों को ही प्रवेश दिया जाएगा। मंदिर में मौजूद पुजारी ही आज नागचंद्रेश्वर मंदिर में पूजन-अर्चन करेंगे।
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ये मंदिर साल में केवल एक बार खुलता है…वो दिन है नागपंचमी का । इस ड्योड़ी पर कदम रखते ही सर्पदोष से मुक्ति मिल जाती है। यहां आने वालों के सारी विध्न बाधाएं हर लेते हैं शिव शंभू । देश के धार्मिक सप्तपुरियों में से एक उज्जैन का विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर तीन खंड़ों में बंटा हुआ है। मंदिर के प्रथम तल में महाकालेश्वर विराजमान है। दूसरे तल में ओंकारेश्वर का द्वार है तो तीसरे तल में सजा है नागचंद्रेश्वर का दरबार । जहां शिव शंभू की दुर्लभ प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा में महादेव अपने पूरे परिवार के साथ नाग सिंहासन पर आसीन नज़र आते हैं। आमतौर पर शेष शैय्या पर भगवान विष्णु को चित्रित किया जाता है लेकिन नागचंद्रेश्वर मंदिर में विष्णु भगवान की जगह भोलेनाथ सर्प शैय्या पर विराजे दिखाई देते हैं ।
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पौराणिक मान्यता है कि सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया था । जिसके बाद से तक्षक राजा ने शंकर भगवान के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया । तब से आज तक भुजंगों के आभूषणों से सुशोभित है त्रिपुरारी । यही वजह है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर नागशैय्या पर नज़र आते हैं देवादि देव ।