कलयुग में साक्षात हैं सूर्यदेव, इस प्रकार अर्घ्य देने से मिलता है मनवांछित फल

कलयुग में साक्षात हैं सूर्यदेव, इस प्रकार अर्घ्य देने से मिलता है मनवांछित फल

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  • Publish Date - April 12, 2020 / 08:04 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 07:47 PM IST

धर्म । सभी ग्रहों में सूर्य का स्थान सर्वोपरि है, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य को ब्रम्हांड का केंद्र बिंदु माना गया है। ग्रंथों के अनुसार रविवार को सूर्यदेव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। सूर्य को आदि पंचदेवों में से एक माना गया है। कलयुग में सूर्य को प्रत्यक्ष देव की उपाधि प्राप्त है। सूर्य के बिना हमारा जीवन नहीं चल सकता। सूर्य की किरणों से शारीरिक व मानसिक रोगों से निवारण मिलता है। मान्यताओं के अनुसार उगते हुए सूर्य का पूजन उन्नतिकारक होता हैं। इस समय निकलने वाली सूर्य किरणों में सकारात्मक प्रभाव बहुत अधिक होता है। जो कि शरीर को भी स्वास्थ्य लाभ पंहुचाती हैं। सूर्य आराधना से उत्तम स्वास्थ्य की भी प्राप्ति होती है।

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सूर्य की आराधना के लिए उसके उदय से पूर्व जागना चाहिए। इसके पश्चात स्नान आदि से निवृत्त होकर शुद्ध, स्वच्‍छ वस्त्र धारण कर ही सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। प्रात:काल सूर्य के सम्मुख खड़े होकर अर्घ्य देने से जल की धारा से होते जो प्रकाश शरीर पर पड़ता है उससे रोग के की‍टाणु नष्ट होते हैं। शरीर में ऊर्जा का संचार होने से सूर्य के तेज की किरणों से शरीर को शक्ति प्राप्त होती है। सूर्य को अर्घ्य दो प्रकार से दिया जाता है। संभव हो तो जलाशय अथवा नदी के जल में खड़े होकर अंजली अथवा तांबे के पात्र में जल भरकर अपने मस्तिष्क से ऊपर ले जाकर स्वयं के सामने की ओर उगते हुए सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए। दूसरी विधि में अर्घ्य कहीं से दिया जा सकता है। नदी या जलाशय हो, यह आवश्यक नहीं है।

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सूर्यदेव का ऐसे करें पूजन-
सूर्य की आराधना के समय तांबे के लोटे में जल लेकर उसमें चंदन, चावल तथा फूल लेकर प्रथम विधि में सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। सूर्य को जो अर्ध्य दिया जाता है,संभव होते नीचे थाली रख लें, अर्ध्य देने के बाद थाली में जो जल एकत्र हो, उसे माथे पर, हृदय पर एवं दोनों बाहों पर लगाएं। विशेष कष्ट होने पर सूर्य के सम्मुख बैठकर ‘आदित्य हृदय स्तोत्र’ या ‘सूर्याष्टक’ का पाठ करें। सूर्य के सम्मुख बैठना संभव न हो तो घर के अंदर ही पूर्व दिशा में मुख कर यह पाठ कर सकते हैं। सूर्य की विशेष स्तुति के लिए विशेषज्ञों की सहायता ले सकते हैं।

सूर्यदेव की पूजन करते समय उच्चारित किए जाने वाले मंत्र

‘ऊँ सूर्याय नम: मंत्र’

‘ऊँ सूर्याय नम: अर्घं समर्पयामि’

सृष्टि को संचालित करने में सूर्यदेव का स्थान सर्वोपरि है। सूर्य की आराधना से निरोग व्यक्ति भी रोगों के आक्रमण से बच सकता है।