Som Pradosh Vrat Katha : आज सोम प्रदोष व्रत के दिन इस पौराणिक कथा बिना अधूरा है व्रत, इस कथा से दूर होगी आर्थिक तंगी व सभी प्रकार के रोग

Today on the day of Som Pradosh Vrat, the fast is incomplete without this mythological story, this story will remove financial crisis and all kinds of diseases

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  • Publish Date - January 27, 2025 / 01:22 PM IST,
    Updated On - January 27, 2025 / 01:22 PM IST

Som Pradosh Vrat Katha : इस व्रत को भगवान शिव और देवी पार्वती को समर्पित किया जाता है माह की त्रयोदशी तिथि का प्रदोष काल मे होना, प्रदोष व्रत होने का सही कारण है। प्रदोष काल सूर्यास्त से 45 मिनट पहिले प्रारम्भ होकर सूर्यास्त के बाद 45 मिनट होता है। प्रदोष का दिन जब साप्ताहिक दिवस सोमवार को होता है उसे सोम प्रदोष कहते हैं, मंगलवार को होने वाले प्रदोष को भौम प्रदोष तथा शनिवार के दिन प्रदोष को शनि प्रदोष कहते हैं। सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है अतः इस दिन प्रदोष व्रत होने से उसकी महत्ता और भी अधिक बढ जाती है। सोम प्रदोष व्रत की कथा इसलिए पढ़नी चाहिए क्योंकि ऐसा करने से व्रत पूरा माना जाता है। मान्यता है कि इस व्रत में कथा सुनने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं, आर्थिक तंगी और रोग दूर होते हैं साथ ही साथ महिलाओं को अखंड सौभाग्य और सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।

Som Pradosh Vrat Katha : आईये यहाँ प्रस्तुत है सोम प्रदोष व्रत कथा

एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था, इसलिए प्रातः होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी।

Som Pradosh Vrat Katha

एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था।

Som Pradosh Vrat Katha

राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया।

Som Pradosh Vrat Katha

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने अन्य सभी भक्तों के दिन भी फेरते हैं।
हर हर महादेव !

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