बेशकीमती खजानों की नाग करते हैं सुरक्षा, महाभारत काल से जुड़ा है रत्न भंडार

बेशकीमती खजानों की नाग करते हैं सुरक्षा, महाभारत काल से जुड़ा है रत्न भंडार

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  • Publish Date - March 7, 2020 / 04:40 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 01:44 PM IST

हिमाचल। हिंदू शास्त्रों में नागों का विशेष महत्व और जिक्र किया गया है। वैसे तो इनके पूजनीय होने के कई कारण हैं परंतु सबसे बड़ा कारण है ये है कि देवों के देव महादेव ने इन्हे अपने कंठ में धारण किया हुआ है। कहा जाता है समुद्र मंथन के दौरान जब शिव ने विष निगल कर उसे अपने गल में इक्ट्ठा किया था तो उसको वहीं रोकने के लिए उन्होंने अपने गले में नागों को माला के रूप में डाल लिया था। जिसके बाद से हमेशा के लिए उनके गले में ही वास करते हैं। अब इस बात से आप जान गए होंगे कि नागों को हिंदू धर्म में कितना महत्व प्रदान है। यही कारण है कि नाग देवता के दुनिया के कई हिस्सो में अनोखे मंदिर तक स्थापित है। जिसमें से अधिकतर मंदिर व धार्मिक स्थल भारत में पाए जाते हैं। तो आज हम आपको इनके ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका इतिहास पुराना तो है ही बल्कि रोचक भी है।

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हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से करीब 70 कि.मी की दूर स्थित धार्मिक स्थल के बारे में। जिसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि यहां पानी के नीचे छिपा हुआ खज़ाना दिखता है। जी हां, आप सही सुन रहे हैं। यहां सालों पुराना खज़ाना पानी के नीचे छिपा हुआ है जो दिखाई तो देता है पर इसे छुआ नहीं जा सकता है। अब आप यकीनन से सोच रहे होंगे कि भला ये कैसा खज़ाना हुआ जिसे कोई ले नहीं पाया आज तक। तो बता दें इसके पीछे का कारण है कि इसकी रक्षा करने वाले नागराज। जी हां, कहां जाता है इस स्थान पर इस खज़ाने की देखभाल कोई इंसान नही बल्कि नाग करते हैं। यहां आसपास के निवासियों का कहना है कि जिस भी इंसान ने आज तक इस खज़ाने को छूना चाहा उसके साथ कुछ न कुछ अनर्थ ज़रूर हुआ है।

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मंडी जिले के कमराह नामक स्थान में मौज़द घने जंगलों से घिरी एक पहाड़ी है, जिसका नाम कमरूनाग है। कहा जाता है इस झील में नज़र आने वाला खज़ाना महाभारत काल का है जिसके किनारे के समीप कमरूनाग देवता का मंदिर भी स्थापित है। मान्यताओं की मानें तो इस खजाने की रक्षा मंदिर के नागराज ही करते हैं। बताया जाता है प्रत्येक वर्ष यहां यानि नागों के इस मंदिर में जुलाई के महीने में मेले का आयोजन किया जाता है। जिस दौरान विधि-वत नागों की पूजा भी की जाती है।

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लोग यहां दूर-दूर से मन्नतें मांगने आते हैं, जिनके पूरे होने के बाद वे सोने-चांदी का चढ़ावा भी चढ़ाकर जाते हैं। तो वहीं बुजुर्गों का कहना है कि कमरूनाग झील में सोना-चांदी और रुपए-पैसे चढ़ाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। बता दें कि समुद्रतल से 9,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस झील में अरबों का खज़ाना है जो कि पानी के बीचो-बीच बिल्कुल साफ़ नज़र आता है।

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पौराणिक मान्यता के अनुसार, महाभारत का युद्ध जीतने के बाद पांडव रत्नयक्ष (महाभारत युद्ध के दौरान श्रीकृष्ण ने अपनी रथ की पताका से टांग दिया था) को एक पिटारी में लेकर हिमालय की ओर जा रहे थे तब वे नलसर पहुंचे जहां उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी। जिसने उनसे उस पिटारी को एकांत स्थान पर ले जाने का निवेदन किया। जिसके बाद पांडव उस पिटारी को लेकर कमरूघाटी गए। वहां एक भेड़पालक को देखकर रत्नयक्ष इतना प्रभावित हुआ कि उसने वहीं रुकने का निवेदन किया। कहा जाता है कि त्रेतायुग में रत्नयक्ष का जन्म उसी क्षेत्र में हुआ था। उसने पांडवों और उस भेड़चालक को यह बताया कि उसका जन्म इसी स्थान पर हुआ था तथा उसे जन्म देने वाली नारी नागों की पूजा करती थी।

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उसने उसके गर्भ से 9 पुत्रों के साथ जन्म लिया था। आगे रत्नयक्ष ने बताया कि उनकी मां उन्हें एक पिटारे में रखती थीं। परंतु एक दिन उनके घर आई एक अतिथि महिला के हाथ से यह पिटारा गिर गया और सभी सांप के बच्चे आग में गिर गए। मगर रत्नयक्ष अपनी जान बचाने के प्रयास में झील के किनारे छिप गए। बाद में उनकी माता ने उन्हें ढू़ढ़ निकाला और उनका नाम कमरूनाग रख दिया।