श्रीराम ने ली थी सरयू में जल समाधि, अयोध्या के वैभव का प्रतीक है ये नदी | Shri Ram took water tomb in Sarayu This river symbolizes the splendor of Ayodhya

श्रीराम ने ली थी सरयू में जल समाधि, अयोध्या के वैभव का प्रतीक है ये नदी

श्रीराम ने ली थी सरयू में जल समाधि, अयोध्या के वैभव का प्रतीक है ये नदी

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Modified Date: November 29, 2022 / 09:00 PM IST
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Published Date: May 3, 2020 9:40 am IST

धर्म। अयोध्या हिंदुओं के सात प्राचीन और पवित्र तीर्थस्थलों यानी सप्तपुरियों में से एक है । अयोध्या को अथर्व वेद में ईशपुरी बताया गया है और इसके वैभव की तुलना स्वर्ग से की गई है । अयोध्या का ज़िक्र होते ही सरयू नदी की याद आ जाती है । राम के अवतरण,उनकी लीला और परमधाम-गमन की साक्षी रही है सरयू नदी ।

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अवधपुरी मम पुरी सुहावनि,दक्षिण दिश बह सरयू पावनि…तुलसी कृत मानस की इस चौपाई में सरयू नदी को अयोध्या की प्रमुख पहचान के रूप में चिन्हित किया गया है । राम को भी सरयू बहुत प्रिय रही है । राम की जन्मभूमि सरयू नदी के दायें तट पर स्थित है । राम की अयोध्या में सरयू को लेकर श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है । वो ये मानते हैं कि इस नदी के दर्शन मात्र से पापमुक्ति मिल जाती है । हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ रामायण के मुताबिक..भगवान राम ने इसी नदी में जल समाधि ली थी।

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मत्स्यपुराण के अध्याय 121 और वाल्मीकि रामायण के 24वें सर्ग में सरयू नदी का वर्णन है, कहा गया है कि कैलाश पर्वत से लोकपावन सरयू निकली है। ये अयोध्यापुरी से होकर बहती है, वामन पुराण के 13वें अध्याय, ब्रह्म पुराण के 19वें अध्याय और वायुपुराण के 45वें अध्याय में गंगा, यमुना, गोमती, सरयू और शारदा नदियों का हिमालय से प्रवाहित होना बताया गया है । सरयू का प्रवाह कैलास मानसरोवर से कब बंद हुआ, इसका विवरण तो नहीं मिलता, लेकिन सरस्वती और गोमती की तरह इस नदी में भी प्रवाह भौगोलिक कारणों से बंद होना माना जाता है।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार सरयू, घाघरा और शारदा नदियों का संगम तो हुआ ही है । सरयू और गंगा का संगम श्रीराम के पूर्वज भगीरथ ने करवाया था । पुराणों में वर्णित है कि सरयू भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रगट हुई हैं । आनंद रामायण के यात्रा कांड में उल्लेख है कि प्राचीन काल में शंकासुर दैत्य ने वेद को चुराकर समुद्र में डाल दिया और स्वयं वहां छिप गया था। तब भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध किया और ब्रह्मा को वेद सौंप कर अपना वास्तविक स्वरूप धारण किया। उस समय हर्ष के कारण भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपके थे। ब्रह्मा ने उस प्रेमाश्रु को मानसरोवर में डालकर उसे सुरक्षित कर लिया। इस जल को महापराक्रमी वैवस्वत महाराज ने बाण के प्रहार से मानसरोवर से बाहर निकाला, यही जलधारा सरयू नदी कहलाई। भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को पृथ्वी पर लेकर आए और उन्होंने ही गंगा और सरयू का संगम करवाया ।

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दियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व अब खतरे में है । सरयू नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले से हुआ है। बहराइच से निकलकर ये नदी गोंडा से होती हुई अयोध्या तक जाती है। पहले ये गोंडा के परसपुर तहसील में पसका नामक तीर्थ स्थान पर घाघरा नदी से मिलती थी,पर अब यहां बांध बन जाने से यह नदी पसका से क़रीब आठ किलोमीटर आगे चंदापुर नामक स्थान पर मिलती है। अयोध्या तक ये नदी सरयू के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी घाघरा के नाम से जानी जाती है । सरयू की कुल लंबाई करीब 160 किमी है । सरयू साक्षी है अयोध्या के उत्थान की, इसने अपनी आंखों से 1992 का बवंडर भी देखा। ये बह रही है..पर ठिठकी हुई भी है..और प्रतीक्षा कर रही है..लंबे विवाद के बाद लंबी शांति का..उसे अयोध्या के वैभव का लौटने का भी इंतजार हैं।

 
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