Shri Narsingh Chalisa : नरसिंह अथवा नृसिंह (मानव रूपी सिंह) को पुराणों में भगवान विष्णु का अवतार माना गया है। जो आधे मानव एवं आधे सिंह के रूप में प्रकट होते हैं, जिनका सिर एवं धड तो मानव का था । लेकिन चेहरा एवं पंजे सिंह की तरह थे वे भारत में, खासकर दक्षिण भारत में वैष्णव संप्रदाय के लोगों द्वारा एक देवता के रूप में पूजे जाते हैं जो विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होते हैं। श्री नरसिंह, भगवान विष्णु के चौथे अवतार हैं। नरसिंह का मतलब है ‘मानव-सिंह’. भगवान विष्णु ने राक्षस हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए नरसिंह का अवतार लिया था।
Shri Narsingh Chalisa : आईये जानतें हैं नरसिंह अवतार के बारे में कुछ और बातें:
– नरसिंह अवतार में भगवान का रूप आधा नर और आधा सिंह था।
– नरसिंह अवतार में भगवान का सिर और धड़ मानव का था, लेकिन चेहरा और पंजे सिंह के जैसे थे।
– भगवान नरसिंह को विपत्ति के समय अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रकट होने वाला देवता माना जाता है।
– नरसिंह जयंती हर साल वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है।
– मान्यता है कि भगवान नरसिंह की पूजा करने से जीवन के सभी तरह के दुख और संकट से छुटकारा मिलता है।
– नरसिंह कवच का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है और कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में जीत मिलती है।
Shri Narsingh Chalisa : आईये पढ़ें श्री नरसिंघ चालीसा
श्री नरसिंह चालीसा
मास वैशाख कृतिका युत, हरण मही को भार।
शुक्ल चतुर्दशी सोम दिन, लियो नरसिंह अवतार।।
धन्य तुम्हारो सिंह तनु, धन्य तुम्हारो नाम।
तुमरे सुमरन से प्रभु, पूरन हो सब काम।।
नरसिंह देव में सुमरों तोहि
धन बल विद्या दान दे मोहि।।1।।
जय-जय नरसिंह कृपाला
करो सदा भक्तन प्रतिपाला।।2।।
Shri Narsingh Chalisa
विष्णु के अवतार दयाला
महाकाल कालन को काला।।3।।
नाम अनेक तुम्हारो बखानो
अल्प बुद्धि में ना कछु जानो।।4।।
हिरणाकुश नृप अति अभिमानी
तेहि के भार मही अकुलानी।।5।।
हिरणाकुश कयाधू के जाये
नाम भक्त प्रहलाद कहाये।।6।।
Shri Narsingh Chalisa
भक्त बना बिष्णु को दासा
पिता कियो मारन परसाया।।7।।
अस्त्र-शस्त्र मारे भुज दण्डा
अग्निदाह कियो प्रचंडा।।8।।
भक्त हेतु तुम लियो अवतारा
दुष्ट-दलन हरण महिभारा।।9।।
तुम भक्तन के भक्त तुम्हारे
प्रह्लाद के प्राण पियारे।।10।।
Shri Narsingh Chalisa
प्रगट भये फाड़कर तुम खम्भा
देख दुष्ट-दल भये अचंभा।।11।।
खड्ग जिह्व तनु सुंदर साजा
ऊर्ध्व केश महादृष्ट विराजा।।12।।
तप्त स्वर्ण सम बदन तुम्हारा
को वरने तुम्हरो विस्तारा।।13।।
रूप चतुर्भुज बदन विशाला
नख जिह्वा है अति विकराला।।14।।
स्वर्ण मुकुट बदन अति भारी
कानन कुंडल की छवि न्यारी।।15।।
Shri Narsingh Chalisa
भक्त प्रहलाद को तुमने उबारा
हिरणा कुश खल क्षण मह मारा।।16।।
ब्रह्मा, बिष्णु तुम्हें नित ध्यावे
इंद्र-महेश सदा मन लावे।।17।।
वेद-पुराण तुम्हरो यश गावे
शेष शारदा पारन पावे।।18।।
जो नर धरो तुम्हरो ध्याना
ताको होय सदा कल्याना।।19।।
त्राहि-त्राहि प्रभु दु:ख निवारो
भव बंधन प्रभु आप ही टारो।।20।।
नित्य जपे जो नाम तिहारा
दु:ख-व्याधि हो निस्तारा।।21।।
संतानहीन जो जाप कराये
मन इच्छित सो नर सुत पावे।।22।।
Shri Narsingh Chalisa
बंध्या नारी सुसंतान को पावे
नर दरिद्र धनी होई जावे।।23।।
जो नरसिंह का जाप करावे
ताहि विपत्ति सपने नहीं आवे।।24।।
जो कामना करे मन माही
सब निश्चय सो सिद्ध हुई जाही।।25।।
जीवन मैं जो कछु संकट होई
निश्चय नरसिंह सुमरे सोई।।26।।
रोग ग्रसित जो ध्यावे कोई
ताकि काया कंचन होई।।27।।
डाकिनी-शाकिनी प्रेत-बेताला
ग्रह-व्याधि अरु यम विकराला।।28।।
प्रेत-पिशाच सबे भय खाए
यम के दूत निकट नहीं आवे।।29।।
सुमर नाम व्याधि सब भागे
रोग-शोक कबहूं नहीं लागे।।30।।
जाको नजर दोष हो भाई
सो नरसिंह चालीसा गाई।।31।।
हटे नजर होवे कल्याना
बचन सत्य साखी भगवाना।।32।।
Shri Narsingh Chalisa
जो नर ध्यान तुम्हारो लावे
सो नर मन वांछित फल पावे।।33।।
बनवाए जो मंदिर ज्ञानी
हो जावे वह नर जग मानी।।34।।
नित-प्रति पाठ करे इक बारा
सो नर रहे तुम्हारा प्यारा।।35।।
नरसिंह चालीसा जो जन गावे
दु:ख-दरिद्र ताके निकट न आवे।।36।।
चालीसा जो नर पढ़े-पढ़ावे
सो नर जग में सब कुछ पावे।।37।।
यह श्री नरसिंह चालीसा
पढ़े रंक होवे अवनीसा।।38।।
जो ध्यावे सो नर सुख पावे
तोही विमुख बहु दु:ख उठावे।।39।।
‘शिवस्वरूप है शरण तुम्हारी
हरो नाथ सब विपत्ति हमारी’।।40।।
Shri Narsingh Chalisa
चारों युग गायें तेरी महिमा अपरंपार।
निज भक्तनु के प्राण हित लियो जगत अवतार।।
नरसिंह चालीसा जो पढ़े प्रेम मगन शत बार।
उस घर आनंद रहे वैभव बढ़े अपार।।
(इति श्री नरसिंह चालीसा संपूर्णम्)
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