Sankat nashan Ganpati Stotra : श्री गणेश को विघ्नहर्ता माना गया है। संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने से जातक के सभी कष्टों का अंत हो जाता है। संकटनाशन स्तोत्र में गणपती के बारह नामों का उल्लेख है। जो जातक विघ्नहर्ता के इस स्तोत्र का पाठ करता है, उसके सारे कष्ट खत्म हो जाते हैं। किसी भी शुभ कार्य से पहला श्री गणेश का नाम स्मरण करने मात्र से ही किसी भी काम की सफलता तय है।
Sankat nashan Ganpati Stotra :
श्री गणेश संकटनाशन स्तोत्र के पाठ से कई फ़ायदे होते हैं, जैसे कि:
– संकटनाशन गणेश स्तोत्र का पाठ करने से सभी संकट दूर होते हैं।
– इस स्तोत्र का पाठ करने से बिगड़े काम बनने लगते हैं।
– इस स्तोत्र का पाठ करने से कुंडली में बुध की स्थिति मज़बूत होती है।
– इस स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को सभी परेशानियों से निजात मिलती है।
– इस स्तोत्र का पाठ करने से घर में सुख-समृद्धि और संपन्नता बनी रहती है।
– इस स्तोत्र का पाठ करने से विद्यार्थी को विद्या और धनार्थी को धन प्राप्त होता है।
Sankat nashan Ganpati Stotra :
इस स्तोत्र के बारे में कुछ और बातें:
– इस स्तोत्र का ज़िक्र नारद पुराण में मिलता है।
– कहा जाता है कि एक बार नारद जी संकट में फंस गए थे, तब भगवान शिव से प्रेरणा लेकर उन्होंने यह स्तोत्र लिखा था।
– इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले भगवान गणेश को सिंदूर, घी का दीपक, अक्षत, पुष्प, दूर्वा, और नैवेद्य अर्पित करना चाहिए।
– इस स्तोत्र का पाठ करने में सिर्फ़ पांच मिनट का समय लगता है।
Sankat nashan Ganpati Stotra : आईये पढ़ें संकटनाशन श्री गणेश स्तोत्र का पाठ
प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।
भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।
प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।
तृतीयं कृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम।।2।।
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्ण तथाष्टकम् ।।3।।
Sankat nashan Ganpati Stotra
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम।।4।।
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।6।।
Sankat nashan Ganpati Stotra
जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय: ।।7।।
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।
तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।8।।
॥ इति श्रीनारदपुराणे संकष्टनाशनं गणेशस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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