धर्म। अनूपपुर स्थित शिवलहरा गुफाओं में प्रवेश करते ही इतिहास अपने पन्ने पलटने लगता है…..अंदर घुसते ही गुफा की दीवारें पुरातन कहानियां सुनाने लगती हैं……शिलाओं पर उकेरी गईं नक्काशियां खुद के बारे में बताने को बेचैन हो उठती हैं। ऐसा लगता है गुफा के अंदर मौजूद मूर्तियों बोल उठेंगी, वाकई गुफा के अंदर का दृश्य ही सबसे अलग होता है। इसका अहसास खास होता है….यही वजह है कि इस गुफा का एक बार जिसने दर्शन कर लिया….वो दोबारा यहां आने की तमन्ना जरूर रखता है।
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ये गुफाएं अनूपपुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित हैं, ये अनूपपुर जनपद पंचायत के दारसागर गांव में मौजूद हैं। केवई नदी के तट पर स्थित इन गुफाओं की सुंदरता उस वक्त काफी बढ़ जाती है जब पर्यटकों की नजर नदी के तेज बहाव पर पड़ती है। शिवलहरा की नागवंशी गुफाओं का प्राचीन समय से ही अपना महत्व है, इन गुफाओं में शिवनंदी नाग के शिलालेख मौजूद हैं जो ब्रम्ही कूट लिपि में लिखे हुए हैं, ये लेख अभी भी देखे जा सकते हैं। शिलालेख के मुताबिक मूलदेव वस्त्र गोत्री ब्राह्मण इनका मंत्री था, जो राजा को धर्म और शासन से संबंधित कार्यों में सलाह देता था। शिवलहरा का पुराना नाम सिहागाहा था जो शिलाग्रह का अपभ्रंश है, इसके अलावा शिलालेख में और कई बातों की भी जानकारी मिलती है। शिलालेख में नागकालीन चित्रकला का भी उल्लेख है।
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इन गुफाओं में बजरंग बली और शिवजी की मूर्ति की स्थापना की गई है, दोनों की हमेशा पूजा-अर्चना की जाती है, कहना गलत नहीं होगा कि पुरातत्व के महत्व की ये गुफाएं आस्था का बहुत बड़ा केंद्र भी हैं। यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। यहां सालों से मेले की परंपरा अभी भी यहां चली आ रही है। इस मेले में आसपास के जिलों के लोग शामिल होते थे। गुफा के समीप केवई नदी में पानी का तेज बहाव पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है, ये प्रकृति के सौंदर्य को चार गुना बढ़ा देता है। इस दृश्य को देखकर पर्यटक इसके कायल हो जाते हैं। पत्थरों में कटाव के चलते ये जगह सुंदर और रमणीय दिखाई पड़ता है। यहां दूरदराज से लोग घूमने और मन की शांति के लिए आते हैं। कुल मिलाकर शिवलहरा की गुफाओं तक पहुंचने वाले पर्यटक के लिए ये सफर यादगार बन जाता है।
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