Shani Pradosh Vrat Katha: आज है शनि प्रदोष व्रत, शाम के समय पूजा के दौरान करें इस कथा का पाठ, प्रसन्न हो जाएंगे शनिदेव

Shani Pradosh Vrat Katha: आज है शनि प्रदोष व्रत, शाम के समय पूजा के दौरान करें इस कथा का पाठ, प्रसन्न हो जाएंगे शनिदेव

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  • Publish Date - August 17, 2024 / 05:50 PM IST,
    Updated On - August 17, 2024 / 05:50 PM IST

Shani Pradosh Vrat Katha: हिन्दू धर्म में हर दिन, तिथि, तीज-त्योहारों, ग्रहों की चाल, नक्षत्र परिवर्तन और प्रदोष व्रत इत्यादि का खास महत्व होता है। लोग दिनों के हिसाब से भगवान की आराधना करते हैं। आज शनिवार का दिन है। इस दिन न्याय के देवता शनि की आराधना की जाती है। शनिवार का दिन होने के साथ आज शनि प्रदोष व्रत का शुभ दिन भी है। मान्यता है कि प्रदोष काल में शनि देव को प्रसन्न करने से भक्तों के सारे दुख दूर हो जाते हैं और मांगी गई मनोकामनाएं पूरी होती है। अगर आपके भी जीवन में दुखों के काले बादल छाएं हुए हैं तो आज शाम पूजा के दौरान शनि प्रदोष व्रत कथा का पाढ़ जरूर करें।

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शनि प्रदोष व्रत मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 अगस्त की सुबह 8 बजकर 5 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन अगले दिन 18 अगस्त की सुबह 5 बजकर 50 मिनट पर होगा।

शनि प्रदोष व्रत कथा

पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन समय की बात है। एक नगर सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था। वह अत्यन्त दयालु था। उसके यहां से कभी कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता था। वह सभी को जी भरकर दान-दक्षिणा देता था। लेकिन दूसरों को सुखी देखने वाले सेठ और उसकी पत्‍नी स्वयं काफी दुखी थे। दुःख का कारण था उनकी संतान का न होना। एक दिन उन्होंने तीर्थयात्रा पर जाने का निश्‍चय किया और अपने काम-काज सेवकों को सोंप चल पड़े।

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अभी वे नगर के बाहर ही निकले थे कि उन्हें एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक तेजस्वी साधु दिखाई पड़े। दोनों ने सोचा कि साधु महाराज से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा शुरू की जाए। पति-पत्‍नी दोनों समाधिलीन साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनकी समाधि टूटने की प्रतीक्षा करने लगे। सुबह से शाम और फिर रात हो गई, लेकिन साधु की समाधि नही टूटी। मगर सेठ पति-पत्‍नी धैर्यपूर्वक हाथ जोड़े बैठे रहे। अंततः अगले दिन प्रातः काल साधु समाधि से उठे।

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सेठ पति-पत्‍नी को देख वह मन्द-मन्द मुस्कराए और आशीर्वाद स्वरूप हाथ उठाकर बोले मैं तुम्हारे अन्तर्मन की कथा भांप गया हूं वत्स! मैं तुम्हारे धैर्य और भक्तिभाव से अत्यन्त प्रसन्न हूं। साधु ने सन्तान प्राप्ति के लिए उन्हें शनि प्रदोष व्रत करने की विधि समझाई। तीर्थयात्रा के बाद दोनों वापस घर लौटे और नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करने लगे । कालान्तर में सेठ की पत्‍नी ने एक सुन्दर पुत्र जो जन्म दिया। शनि प्रदोष व्रत के प्रभाव से उनके यहां छाया अन्धकार लुप्त हो गया । दोनों आनन्दपूर्वक रहने लगे।

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