नई दिल्लीः Lord Shiva and Sawan Month Relation भगवान शिव के उपासना का पर्व सावन को लेकर काउंटडाउन शुरू हो गया है। इस साल 22 जुलाई 2024 से सावन माह की शुरुआत होने वाली है। इसका समापन 19 अगस्त 2024 के दिन होगा। इस महीने में भगवान शिव की पूजा करने से मनचाहे परिणामों की प्राप्ति होती हैं। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि आखिर सावन के महीने में ही भगवान शिव की पूजा क्यों की जाती है। भगवान शिव और सावन का कनेक्शन क्या है? नहीं ना… तो चलिए हम आपको बताते हैं…
Lord Shiva and Sawan Month Relation दरअसल, माता सती अपने पिता राजा दक्ष के घर अपने शरीर को त्याग दिया था और हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया। कहा जाता है कि माता पार्वती ने सावन के महीने में भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की, जिसके चलते ही आगे जाकर उनका विवाह भगवान शिव के साथ हुआ। ऐसे में भगवान शिव को सावन का महीना बहुत पसंद होता है।
एक अन्य मान्यता के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु सोते हैं और चतुर्दशी के दिन भगवान शिव भी सो जाते हैं और जब भगवान शिव सोते हैं तो उस दिन को श्यनोत्सव कहा जाता है। इस दौरान भोलेनाथ अपने रुद्रावतार में होते है। माना जाता है कि भगवान शिव जब अपने रूद्र अवतार में होते हैं, तो बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन इस अवतार में वो रुष्ट भी जल्दी होते हैं। ऐसे में भगवान शिव का सावन के महीने में रुद्राभिषेक किया जाता है, ताकि इस पूजा से वो प्रसन्न हों और सभी को अपना आशीर्वाद दें।
इतना ही नहीं कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव ने समुद्र मंथन से निकले विष को पिया था और पहली बार भगवान शिव पृथ्वी लोक पर अपने ससुराल सावन के महीने में ही आए थे, जहां उनका जोरदार स्वागत हुआ था। ऐसे में कहा जाता है कि सावन के महीने में हर साल भगवान शिव पृथ्वी पर आते हैं और सभी को अपना आशीष देते हैं। कहा जाता है कि इस माह में मर कंडू ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय ने कठोर तपस्या कर शिव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
22 जुलाई 2024 सावन का पहला सोमवार
29 जुलाई 2024 सावन का दूसरा सोमवार
5 अगस्त 2024 सावन का तीसरा सोमवार
12 अगस्त 2024 सावन का चौथा सोमवार (संक्रांति के अनुसार, सावन का आखिरी सोमवार)
19 अगस्त 2024 सावन का पांचवा सोमवार
धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि सावन मास में ही देवता और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया था। जिसमें हलाहल विष विश भी निकला था। यह ऐसा विष था जिससे पूरे सृष्टि को सर्वनाश निश्चित था। इसलिए संसार के उत्थान के लिए भगवान शिव ने स्वयं उस विष को कंठ में धारण कर लिया था। इसलिए उन्हें नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। सभी देवताओं ने विष के वेग को कम करने के लिए शिवजी पर जल का अभिषेक किया था। यही कारण है कि सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक करने से, वह जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं भक्तों की सभी प्रार्थना सुनते हैं।
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। IBC24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।