धर्म। माता सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है। ऐसा मानाजाता है कि सृष्टि के शुरूआत में जब भगवान विष्णुजी ने अपने कमंडल के जल को धरती पर छिड़का तो हाथ में वीणा लिए देवी सरस्वती का जन्म हुआ। मां सरस्वती की कृपा से ही संसार के जीवों को वाणी की प्राप्ति हुई। पुराणों में लिखा है कि श्रीकृष्ण ने देवी सरस्वती को वरदान दिया था कि बसंत पंचमी के दिन पूरी दुनिया में विद्या के देवी के रूप में उनकी पूजा होगी। तभी से बसंत पंचमी के दिन देश भर में उनकी पूजा की जाती है। बसंत पंचमी पर पूरी प्रकृति अपने श्रृंगार में जुट जाती है।
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बसंत पंचमी के दिन देशभर में माता के मंदिरों में लोगों का तांता लगा रहता है। इसी कड़ी में धार के भोजशाला में आझ के दिन मां सरस्वती की विशेष पूजा की जाती है। वहीं सतना के मैहर में मां शारदा के मंदिर में भी श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं।
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त्रिकूट पर्वत पर स्थित इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां माता सती का हार गिरा था। आल्हा और उदल ने सबसे पहले घने जंगलों के बीच इस मंदिर की खोज की थी। आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था। तभी से ये मंदिर माता शारदा माई के नाम से मशहूर हो गया। कहा जाता है कि आज भी माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। देशभर के स्कूलों और कॉलेजों में भी हर्षोल्लास के साथ बसंत पंचमी मनाई जाती है।