Saphala Ekadashi 2024: इस दिन है साल की आखिरी एकादशी, जानिए क्या है इसकी कथा और पूजा विधि

Saphala Ekadashi 2024: इस दिन है साल की आखिरी एकादशी, जानिए क्या है इसकी कथा और पूजा विधि

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  • Publish Date - December 21, 2024 / 04:26 PM IST,
    Updated On - December 21, 2024 / 04:26 PM IST

Saphala Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में साल के 12 महीने में कई तरह के व्रत, त्योहार आते हैं। जिसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है और इन सबका अपना-अलग महत्व भी होता है। वर्ष में कुल 24 एकादशी तिथि होती हैं। ऐसे में कुछ दिनों बाद साल की आखिरी एकादशी सफला एकादशी का व्रत रखा जाएगा। सफला एकादशी का व्रत हर साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इसे पौष कृष्ण एकादशी भी कहते हैं।

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सही तिथि

कहा जाता है कि इस शुभ दिन व्रत रखने से घर में देवी लक्ष्मी का आगमन होता है। इस साल सफला एकादशी का व्रत 26 दिसंबर को रखा जाएगा। इस साल पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 दिसंबर बुधवार को रात 10 बजकर 29 मिनट से शुरू होगी। इस तिथि का समापन 26 दिसंबर को देर रात 12 बजकर 43 मिनट पर होगा। उदयातिथि के आधार पर इस साल की अंतिम एकादशी यानी सफला एकादशी 26 दिसंबर गुरुवार को होगी।

सफला एकादशी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राजा महिष्मान के 4 पुत्र थे। उनमें से एक पुत्र बेटा दुष्ट और पापी था। साथ ही बुरे काम करता था, जिसकी वजह से उसे राजा ने नगर से निकाल दिया। इसके बाद वह जंगल में रहकर मांस का सेवन करता था। वह एकादशी के दिन जंगल में संत की कुटिया पर पहुंच गया, तो उसे संत ने अपना शिष्य बना लिया, जिसके बाद उसके चरित्र में बदलाव आया। संत के कहने पर उसने एकादशी व्रत किया और फिर संत ने लुम्पक के पिता महिष्मान का वास्तविक रूप धारण किया। इसके बाद लुम्पक पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर सफला एकादशी का व्रत विधिपूर्वक करने लगा।

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लगाए इन चीजों का भोग

सफला एकादशी के दिन पूजा में भगवान विष्णु को धनिया की पंजीरी और पंचामृत भोग जरूर लगाना चाहिए। यह भोग भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी को भी बहुत प्रिय है। यह मान्यता है कि ऐसा करने से जगत के पालनहार प्रसन्न होते हैं।

पूजा विधि

Saphala Ekadashi 2024:  सफला एकादशी के दिन सुबह उठकर तुलसी के पौधे में जल चढ़ाएं और उन्हें फूल, माला और मिठाई आदि चीजें अर्पित करें। इसके बाद उनके समक्ष देसी घी का दीपक जलाएं, फिर तुलसी कवच का पाठ करें और आरती से पूजा को समाप्त करें।

 

 

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