rohini vrat in krishna paksha dwadashi: जैन धर्म के अनुयायियों के लिए रोहिणी व्रत का विशेष महत्व है। 27 नक्षत्रों में शामिल रोहिणी नक्षत्र के दिन यह व्रत किया जाता है, इसलिए इसे रोहिणी व्रत कहते हैं। सूर्योदय के बाद रोहिणी नक्षत्र प्रबल होता है, उस दिन रोहिणी व्रत किया जाता है। जैन धर्म के लोग इस दिन वासुपूज्य की उपासना करते हैं। कहते हैं कि महिलाएं ये व्रत सुहाग की दीर्धायु और उत्तम स्वास्थ के लिए करती है। वर्ष 2023 में रोहिणी व्रत 14 जुलाई 2023, शुक्रवार को श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को है। इस दिन का शुभ मुहूर्त 12:05 से 12:59 तक है।
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– रहिणी व्रत में सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद साफ वस्त्र धारण करें। जैन धर्म में पवित्रता और शुद्धता का खास खयाल रखा जाता है।
– अब पूजा के लिए वासुपूज्य भगवान की पांचरत्न, ताम्र या स्वर्ण प्रतिमा की स्थापना करें।
– जैन समुदाय के लोग इस दिन व्रत पूर्ण होने से पहले गरीबों में अन्न, धन, वस्त्र का दान करते हैं।
ज्योतिष शास्त्रों की मानें तो 27 नक्षत्र हैं। अश्विन, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद और रेवती नक्षत्र हैं। रोहिणी नक्षत्र हर महीने के 27 वें दिन पड़ता है। इस दिन रोहिणी व्रत मनाया जाता है। इस दिन परमपूज्य भगवान वासु स्वामी की पूजा-उपासना की जाती है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्यक्ति को सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
रोहिणी व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान करें। अब आचमन कर व्रत संकल्प लें और सूर्यदेव को जल का अर्घ्य दें। इसके पश्चात, भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा फल, फूल, दूर्वा आदि से करें। व्रत कथा संपन्न कर आरती करें। इस समय आराध्य देव से सुख, समृद्धि और खुशहाली की कामना करें। दिन भर उपवास रखें। शाम में सूर्यास्त से पहले आरती-आराधना कर फलाहार करें। अगले दिन सामान्य दिनों की तरह पूजा-पाठ संपन्न कर व्रत खोलें। इस समय गरीबों और जरूरतमंदों को दान अवश्य दें। आप अन्न और धन का दान कर सकते हैं।
इसकी कहानी है एक बदबूदार रानी की। असल में प्राचीन काल में एक राजा थे जिनका नाम था माधव अपनी पत्नी लक्ष्मीपति के साथ राज करता था। उनकी एक पुत्री थी रोहिणी जिसके विवाह की बड़ी चिंता थी। एक दिन उसने एक ज्योतिषी को बुलाकर बेटी रोहिणी के विवाह के बारे में पूछा, तब ज्योतिषी ने कहा इसका विवाह हस्तीनापुर के राजा अशोक से होना है। उनकी बात मानकर राजा ने अशोक से बेटी की शादी करा दी। इसके पश्चात दोनों हस्तीनापुर में राज करने लगे। एक दिन उनके वन में चारण मुनि आते हैं। राजा रानी उनके पास जाते हैं। तब राजा ने ऋषि से पूछा मुनि मेरी रानी इतनी शांत चुप चाप क्यों रहती हैं।
इस पर ऋषि मुनि ने रानी के पिछले जन्म की कथा सुनाई। हस्तीनापुर में ही एक वस्तुपाल नाम का एक राजा राज करता था। उसके प्रिय मित्र धनमित्र को दुर्गंधा नाम की एक कन्या हुई जिसके शरीर से इतनी गंदी बदबू आती थी कि उससे कोई विवाह करने को तैयार नहीं था। ऐसे में धनमित्र में पैसों का लालच देकर वस्तुपाल के बेटे से विवाह करा दिया। लेकिन वास्तुपाल का बेटा उसकी दुर्गंध बर्दाश नहीं कर सका और एक महीने में उसे छोड़कर चला गया। इसके बाद दुर्गंधा और उसके पिता को दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा था, तबी वहां पर अमृतसेन मुनि राज आए। तब उन्होंने अपनी सारी कहानी मुनि को बताई जिसके बाद ऋषि ने बताया, वह पिछले जन्म में गिरनार के राजा की रानी थीं।
rohini vrat in krishna paksha dwadashi: एक बार जब दोनों वन में विचरण कर रहे थे तो उनके सामने मुनिराज आए। तब मुनि ने रानी से उनके लिए भोजन बनाने के लिए कहा। लेकिन रानी ने गुस्से में खाना बहुत कड़वा बनाया, जिसे खाकर मुनि की मृत्यु हो गई। इस पाप के चलते रानी को राज्य से निकाल दिया गया। फिर रानी को कोढ़ हो गया और कष्ट सहने के बाद उसकी भी मृत्यु हो गई। इसके बाद वह पशु योनि में फिर दुर्गंधा के रूप में जन्म लिया। इस पर धनमित्र ने मुनि से पूछा, इस पाप से कैसे छुटकारा पाया जाए? तो मुनि ने उन्हें रोहिणी व्रत का महत्व बताया। इसके बाद दुर्गंधां ने इस व्रत को विधि विधान के साथ किया जिससे उनके सारे पाप दूर हो गए और वह स्वर्गसिधार गईं। इसके बाद वह रोहिणी के रूप में जन्म लेती हैं।