देश में नदियों के तट पर विशेष अवसरों पर लाखों साधु-संतों की भीड़ उमड़ती है, हर साधु किसी-न-किसी अखाड़े से संबंधित जरूर होता है, और अखाड़े के संतों का अपना एक विशेष तिलक होता है। तिलक देखकर भी साधु के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है, हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके भी अपने अलग-अलग तिलक होते हैं, ललाट पर लगने वाले तिलक कितनी तरह के होते हैं।
हिंदू धर्म में अनेक परंपराएं प्रचलित हैं,उसमे से एक है तिलक लगाना, क्योंकि तिलक लगाना हिंदू धर्म परंपराओं का सबसे अभिन्न अंग है, रोज सुबह स्नान करने के बाद भगवान का विधि-विधान से पूजन करना और उसके बाद तिलक लगाना हिंदू परंपरा का हिस्सा है। तिलक भी अलग-अलग चीजों के लगाए जाते हैं, आमतौर पर चंदन, कुमकुम, मिट्टी, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लगाने का विधान है।
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तिलक में वैसे तो प्रमुख तौर से लालश्री, विष्णुस्वामी, रामानंद,श्यामश्री लगाए जाने वाले तिलक है। वहीं इसके अलावा अन्य प्रकार के तिलक में गणपति आराधक, सूर्य आराधक, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं, इनकी अपनी-अपनी उपशाखाएं भी हैं। जिनके अपने तरीके और परंपराएं हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक भी लगाते हैं। साधू महंतो के मुताबिक प्राचीन काल से ही मस्तक पर तिलक लगाने की परंपरा चली रही है, तिलक लगाने के पीछे आध्यात्मि क भावना के साथ-साथ इसके वैज्ञानिक कारण भी हैं।
चित्रकूट के घाट पर भय संतन की भीड़, तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करत रघुवीर
रामायण की ये चौपाई तो आपने सुनी होगी,जिसमें तुसली दास जी चंदन घिसते है और भगवान राम तिलक लगाते हैं। तिलक का महत्व बहुत होता है। वैसे तो तिलक कई प्रकार के होते हैं। लेकिन वेदों के अनुसार 2 प्रकार से तिलक लगाए जाते हैं। जिसमें उर्द पुंड और त्रिपुंड तिलक प्रमुख हैं। साधुओं की माने तो त्रिपुंड तिलक भगवान शिव के सिंगार का हिस्सा है।
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शैव (वैश्य) परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है। अमूमन अधिकतर शैव साधु संन्यासी त्रिपुंड ही लगाते हैं। इसी तरह उर्द पुंड तिलक वैष्णव सम्प्रदाय (ब्राह्मण) के साधू संत लगाते हैं। भले ही वैष्णव पंथ राम मार्गी और कृष्ण मार्गी परंपरा में बंटा हुआ हो, चाहे इनके अपने- अपने मत, मठ और गुरु हों, लेकिन तिलक एक ही होता है। वैष्णव सम्प्रदाय में लगाए जाने वाले उर्द पुंड तिलक की बात करें तो इस तिलक में माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है,यह तिलक संकरा होते हुए भौहों के बीच तक आता है। इसके बीच में कुमकुम की खड़ी रेखा बनी होती है ,इसे रामानंदी तिलक भी कहा जाता है।
दरअसल माथे पर लगा हुआ तिलक न केवल हिंदू संस्कृति में एक पहचान चिन्ह का काम करता है, बल्कि तिलक की धार्मिक मान्यता के साथ कई वैज्ञानिक कारण भी हैं, जिसका फायदा तिलक लगाने वाले व्यक्ति को किसी न किसी रूप में होता है,और यही वजह है कि हिंदू धर्म मे सम्प्रदाय अलग अलग होने बावजूद साधू संत से लेकर आम जन अलग – अलग चीजों का तिलक जरूर लगाते हैं।
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