Ram Tandav Stotram : राम तांडव स्तोत्र संस्कृत के राम कथानक पर आधारित महाकाव्य श्रीराघवेंद्रचरितम् से उद्धृत है। इसमें प्रमाणिका छंद के बारह श्लोकों में राम रावण युद्ध एवं इंद्र आदि देवताओं के द्वारा की गई श्रीराम स्तुति का वर्णन है। मान्यता है की हर सोमवार श्री राम तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भगवान् प्रसन्न होकर साधक के तमाम कष्टों को दूर करते हैं और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं ।
Ram Tandav Stotram : आईये यहाँ प्रस्तुत हैं श्री राम तांडव स्तोत्र का पाठ (हिंदी अर्थ सहित)
॥ श्रीरामताण्डवस्तोत्रम् ॥
॥ इन्द्रादयो ऊचुः ॥
जटाकटाहयुक्तमुण्डप्रान्तविस्तृतं हरेः
अपाङ्गक्रुद्धदर्शनोपहार चूर्णकुन्तलः।
प्रचण्डवेगकारणेन पिञ्जलः प्रतिग्रहः
स क्रुद्धताण्डवस्वरूपधृग्विराजते हरिः॥1॥
अर्थ : जटासमूह से युक्त विशालमस्तक वाले श्रीहरि के क्रोधित हुए लाल आंखों की तिरछी नज़र से, विशाल जटाओं के बिखर जाने से रौद्र मुखाकृति एवं प्रचण्ड वेग से आक्रमण करने के कारण विचलित होती, इधर उधर भागती शत्रुसेना के मध्य तांडव (उद्धत विनाशक क्रियाकलाप) स्वरूप धारी भगवान् हरि शोभित हो रहे हैं।
अथेह व्यूहपार्ष्णिप्राग्वरूथिनी निषङ्गिनः
तथाञ्जनेयऋक्षभूपसौरबालिनन्दनाः।
प्रचण्डदानवानलं समुद्रतुल्यनाशकाः
नमोऽस्तुते सुरारिचक्रभक्षकाय मृत्यवे॥2॥
अर्थ : अब वो देखो !! महान् धनुष एवं तरकश धारण वाले प्रभु की अग्रेगामिनी, एवं पार्श्वरक्षिणी महान् सेना जिसमें हनुमान्, जाम्बवन्त, सुग्रीव, अंगद आदि वीर हैं, प्रचण्ड दानवसेना रूपी अग्नि के शमन के लिए समुद्रतुल्य जलराशि के समान नाशक हैं, ऐसे मृत्युरूपी दैत्यसेना के भक्षक के लिए मेरा प्रणाम है।
Ram Tandav Stotram
कलेवरे कषायवासहस्तकार्मुकं हरेः
उपासनोपसङ्गमार्थधृग्विशाखमण्डलम्।
हृदि स्मरन् दशाकृतेः कुचक्रचौर्यपातकं
विदार्यते प्रचण्डताण्डवाकृतिः स राघवः॥3॥
अर्थ : शरीर में मुनियों के समान वल्कल वस्त्र एवं हाथ मे विशाल धनुष धारण करते हुए, बाणों से शत्रु के शरीर को विदीर्ण करने की इच्छा से दोनों पैरों को फैलाकर एवं गोलाई बनाकर, हृदय में रावण के द्वारा किये गए सीता हरण के घोर अपराध का चिन्तन करते हुए प्रभु राघव प्रचण्ड तांडवीय स्वरूप धारण करके राक्षसगण को विदीर्ण कर रहे हैं।
प्रकाण्डकाण्डकाण्डकर्मदेहछिद्रकारणं
कुकूटकूटकूटकौणपात्मजाभिमर्दनम्।
तथागुणङ्गुणङ्गुणङ्गुणङ्गुणेन दर्शयन्
कृपीटकेशलङ्घ्यमीशमेकराघवं भजे॥4॥
अर्थ : अपने तीक्ष्ण बाणों से निंदित कर्म करने वाले असुरों के शरीर को वेध देने वाले, अधर्म की वृद्धि के लिए माया और असत्य का आश्रय लेने वाले प्रमत्त असुरों का मर्दन करने वाले, अपने पराक्रम एवं धनुष की डोर से, चातुर्य से एवं राक्षसों को प्रतिहत करने की इच्छा से प्रचण्ड संहारक, समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर जाने वाले राघव को मैं भजता हूँ।
Ram Tandav Stotram
सवानरान्वितः तथाप्लुतं शरीरमसृजा
विरोधिमेदसाग्रमांसगुल्मकालखण्डनैः।
महासिपाशशक्तिदण्डधारकैः निशाचरैः
परिप्लुतं कृतं शवैश्च येन भूमिमण्डलम्॥5॥
अर्थ : वानरों से घिरे, शरीर में रक्त की धार से नहाए हुए जिनके द्वारा बहुत बड़ी शक्ति, तलवार, दण्ड, पाश आदि धारण करने वाले राक्षसों के मांस, चर्बी, कलेजा, आंत, एवं टुकड़े टुकड़े हुए शवों के द्वारा सम्पूर्ण युद्धभूमि ढक दी गयी है..
विशालदंष्ट्रकुम्भकर्णमेघरावकारकैः
तथाहिरावणाद्यकम्पनातिकायजित्वरैः।
सुरक्षितां मनोरमां सुवर्णलङ्कनागरीं
निजास्त्रसङ्कुलैरभेद्यकोटमर्दनं कृतः॥6॥
अर्थ : जिनके द्वारा विशालदंष्ट्र, कुम्भकर्ण, मेघनाद, अहिरावण, आदि, अकम्पन, अतिकाय आदि अजेय वीरों के द्वारा सुरक्षित सुंदर सोने की लंका नगरी, जो अभेद्य दुर्ग थी, वह भी दिव्य अस्त्रों की मार से विदीर्ण कर दी गयी….
Ram Tandav Stotram
प्रबुद्धबुद्धयोगिभिः महर्षिसिद्धचारणैः
विदेहजाप्रियः सदानुतो स्तुतो च स्वस्तिभिः।
पुलस्त्यनन्दनात्मजस्य मुण्डरुण्डछेदनं
सुरारियूथभेदनं विलोकयामि साम्प्रतम्॥7॥
अर्थ : प्रबुद्ध प्रज्ञा वाले योगी, महर्षि, सिद्ध, चारण, आदि जिन सीतापति को सदा प्रणाम करते हैं, सुंदर मंगलायतन स्तुतियों के द्वारा प्रशंसा करते हैं, उनके द्वारा आज मैं पुलस्त्यनन्दन विश्रवा के पुत्र रावण के मस्तक और धड़ को अलग किया जाता एवं सेना का घोर संहार होता देख रहा हूँ।
करालकालरूपिणं महोग्रचापधारिणं
कुमोहग्रस्तमर्कटाच्छभल्लत्राणकारणम्।
विभीषणादिभिः सदाभिषेणनेऽभिचिन्तकं
भजामि जित्वरं तथोर्मिलापतेः प्रियाग्रजम्॥8॥
अर्थ : कराल मृत्युरूपी, महान् उग्र धनुष को धारण करने वाले, मोहग्रस्त बन्दर भालुओं को अपनी शरण में लेने वाले, शत्रु पक्ष को नष्ट करने के लिए नीति और योजनाओं पर विभीषण आदि के साथ विचार विमर्श करने में मग्न अजेय पराक्रमी उर्मिलापति लक्ष्मण के बड़े भाई श्रीरामचन्द्र का मैं भजन करता हूँ।
Ram Tandav Stotram
इतस्ततः मुहुर्मुहुः परिभ्रमन्ति कौन्तिकाः
अनुप्लवप्रवाहप्रासिकाश्च वैजयन्तिकाः।
मृधे प्रभाकरस्य वंशकीर्तिनोऽपदानतां
अभिक्रमेण राघवस्य ताण्डवाकृतेः गताः॥9॥
अर्थ : इधर उधर बार बार वेगपूर्वक भागती हुई शत्रुसेना के अनुचर गण जो पताका, भाले एवं तलवार धारण किये हुए हैं, युद्ध में सूर्यवंश की कीर्तिरूपी रौद्ररूपधारी रामचन्द्र जी के महान् असह्य प्रभाव के कारण व्याकुलता एवं विनाश को प्राप्त हो गए हैं।
निराकृतिं निरामयं तथादिसृष्टिकारणं
महोज्ज्वलं अजं विभुं पुराणपूरुषं हरिम्।
निरङ्कुशं निजात्मभक्तजन्ममृत्युनाशकं
अधर्ममार्गघातकं कपीशव्यूहनायकम्॥10॥
अर्थ : आकृति, परिवर्तन क्लेशादि विकारों से रहित, आदिकाल में सृष्टिसम्भूति के निमित्त, महान् प्रभा से युक्त, अनादि, सर्वपोषक, प्राचीन दिव्य चेतन, दुःखत्राता, स्वामीरहित, अपने भक्त के जन्ममरणादि दु:खों के नाशक, अधर्ममार्ग का संहार करने वाले, वानरों की सेना के स्वामी श्रीरामचंद्र जी के…
Ram Tandav Stotram
करालपालिचक्रशूलतीक्ष्णभिन्दिपालकैः
कुठारसर्वलासिधेनुकेलिशल्यमुद्गरैः।
सुपुष्करेण पुष्कराञ्च पुष्करास्त्रमारणैः
सदाप्लुतं निशाचरैः सुपुष्करञ्च पुष्करम्॥11॥
अर्थ : विकराल खड्ग, चक्र, शूल, भिन्दिपाल, फरसा, छोटी छुरिका, तीर, मुद्गर, तोमर और धनुष की प्रत्यंचा से निक्षेपित वारुणास्त्र आदि की मार से राक्षसों के शव आकाश और समुद्र आदि सर्वत्र व्याप्त हो गए हैं।
प्रपन्नभक्तरक्षकम् वसुन्धरात्मजाप्रियं
कपीशवृन्दसेवितं समस्तदूषणापहम्।
सुरासुराभिवन्दितं निशाचरान्तकं विभुं
जगत्प्रशस्तिकारणं भजेह राममीश्वरम्॥12॥
अर्थ: अपनी शरण में आये भक्त की रक्षा करने वाले सीतापति, वानर सम्राटों से सेवित, समस्त दुर्गुणों का नाश करने वाले, इन्द्रादि देवगण तथा प्रह्लादादि असुरों से द्वारा वन्दित, राक्षसों का संहार करने वाले विश्व पोषक एवं संरक्षक परमेश्वर श्रीराम जी को भजो।
इति श्रीभागवतानंद गुरुणा विरचिते श्रीराघवेंद्रचरिते इन्द्रादि देवगणै: कृतं श्रीराम तांडव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।l
——-
Read more : यहाँ पढ़ें और सुनें