Papmochani Ekadashi : कब है पापमोचनी एकादशी? जाने अनजाने हुए पापों से छुटकारा पाने के लिए ज़रूर करें ये व्रत और पढ़ें व्रत कथा

When is Papmochani Ekadashi? To get rid of sins committed unknowingly, do this fast and read the fasting story

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  • Publish Date - March 15, 2025 / 01:07 PM IST,
    Updated On - March 15, 2025 / 01:07 PM IST
Papmochani Ekadashi 2025

Papmochani Ekadashi 2025

Papmochani Ekadashi : हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है और साथ ही ये भी कहा गया है कि संसार में उत्पन्न होने वाला कोई भी ऐसा मनुष्य नहीं है जिससे जाने अनजाने पाप नहीं हुआ हो। पाप एक प्रकार की ग़लती है जिसके लिए हमें दंड भोगना होता है। ईश्वरीय विधान के अनुसार पाप के दंड से बचा जा सकता हैं अगर पापमोचिनी एकादशी का व्रत रखें। हिंदू शास्त्रों के अनुसार पापमोचनी एकादशी व्रत भगवान श्री विष्णु को समर्पित है। पापमोचनी एकादशी का अर्थ है समस्त पापों का नाश करने वाली एकादशी। पापमोचनी एकादशी का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत को करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इस दिन विष्णु पुराण का पाठ करना अत्यंत फलदायी रहता है।

Papmochani Ekadashi : आईये जानते हैं कब है पापमोचनी एकादशी?

वैदिक पंचांग के अनुसार, चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 25 मार्च को सुबह के 05 बजकर 05 मिनट शुरू हो रही है और तिथि का समापन 26 मार्च को सुबह में 03 बजकर 45 मिनट पर होने वाला है। अत: उदया तिथि के अनुसार पापमोचिनी एकादशी व्रत 25 मार्च को रखा जाएगा।

पापमोचनी एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और सभी पापों से मुक्ति पाने के लिए रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत से साधक को सहस्त्र गोदान के समान पुण्य फल मिलता है और सभी कष्टों और दु:खों का नाश होता है।

Papmochani Ekadashi : यहाँ जाने पापमोचनी एकादशी का महत्व

पाप मुक्ति: इस एकादशी को व्रत रखने से जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है.
मोक्ष प्राप्ति: यह व्रत साधक को मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है.
कष्टों का निवारण: इस एकादशी व्रत से सभी प्रकार के कष्ट और दु:ख दूर होते हैं.
पुण्य प्राप्ति: व्रत रखने से सहस्त्र गोदान के समान पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
मानसिक शांति: यह व्रत मानसिक समस्याओं को दूर करने में भी सहायक है.
संतान प्राप्ति: संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वालों के लिए भी यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है.
आरोग्य: इस व्रत से आरोग्य की प्राप्ति होती है.
भगवान विष्णु की कृपा: पापमोचनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से प्रभु की कृपा प्राप्त होती है

Papmochani Ekadashi : यहाँ प्रस्तुत है पापमोचनी व्रत कथा

पापमोचनी व्रत कथा
राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नज़र ऋषि पर पड़ी तो वह उनपर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी। कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नज़र अप्सरा पर गयी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे। अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गये।

Papmochani Ekadashi

काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे। कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरत हो चुके हैं उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को श्राप दे दिया कि तुम पिशाचिनी बन जाओ। श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय करने लगी।

मेधावी ऋषि ने तब उस अप्सरा को विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया। उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी।

Papmochani Ekadashi

इस व्रत के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है। इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर हरि में मन को लगाएं। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें। संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करें। पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करें। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें पश्चात स्वयं भोजन करें।

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