Narak Chaturdashi : नरक चतुर्दशी के दिन ज़रूर करें हनुमान चालीसा का पाठ एवं आरती,, संकटमोचन करेंगे हर संकट दूर

On the day of Narak Chaturdashi, do Hanuman Chalisa recitation and Aarti, Sankatmochan will remove every problem

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  • Publish Date - October 30, 2024 / 03:41 PM IST,
    Updated On - October 30, 2024 / 03:41 PM IST

Narak Chaturdashi :दिवाली को पंचपर्व के नाम से जाना जाता है। इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है और समापन भाई दूज पर होता है। पांच दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में एक छोटी दिवाली भी होती है। जिसे नरक चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है। जिससे व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति हो सकती हैं।

Narak Chaturdashi : आईये जानतें हैं एक पौराणिक कथा के माध्यम से की नरक चौदस के दिन क्यों विशेषकर की जाती हैं हनुमान जी की पूजा।

छोटी दिवाली पर हनुमान-पूजा की पौराणिक कथा।
पौराणिक कथा के अनुसार, रावण को हराने और अपना चौदह वर्ष का वनवास पूरा करने के बाद भगवान राम के अयोध्या लौटने का जश्न मनाने के लिए दिवाली मनाई जाती है। हनुमान जी की भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर भगवान श्री राम ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि हनुमान जी की पूजा उनसे पहले की जायेगी। इसीलिए लोग दिवाली से एक दिन पहले भगवान हनुमान की पूजा करते हैं।

वाल्मिकी रामायण के अनुसार कहा जाता है कि इसी दिन आधी रात को माता अंजनी की कोख से हनुमान जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर प्रकार की सुख-शांति और आनंद की प्राप्ति के लिए इस दिन नरक चतुर्दशी पर हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है। मान्यता है कि हनुमान जी की विशेष पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। नरक चौदस के दिन हनुमान चालीसा का पाठ और आरती करने से सभी प्रकार के भय और तनावों से मुक्ति मिलती है।

Narak Chaturdashi : आईये यहाँ पढ़ें और सुनें श्री हनुमान चालीसा का पाठ 

॥ दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज
निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु
जो दायकु फल चारि ॥

बुद्धिहीन तनु जानिके
सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं
हरहु कलेस बिकार ॥

Narak Chaturdashi

॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥

राम दूत अतुलित बल धामा ।
अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

महाबीर बिक्रम बजरंगी ।
कुमति निवार सुमति के संगी ॥

कंचन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४

हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥

Narak Chaturdashi

शंकर स्वयं/सुवन केसरी नंदन ।
तेज प्रताप महा जगवंदन ॥

बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥

भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥

Narak Chaturdashi

लाय सजीवन लखन जियाए ।
श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥

जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥

Narak Chaturdashi 2024

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६

तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना ।
लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥

जुग सहस्त्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥

दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०

Narak Chaturdashi

राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥

सब सुख लहै तुम्हारी सरना ।
तुम रक्षक काहू को डरना ॥

आपन तेज सम्हारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥

भूत पिशाच निकट नहिं आवै ।
महावीर जब नाम सुनावै ॥२४

नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥

Narak Chaturdashi

संकट तै हनुमान छुडावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥

सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिनके काज सकल तुम साजा ॥

और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८

चारों जुग परताप तुम्हारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥

साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकंदन राम दुलारे ॥

Narak Chaturdashi

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥

राम रसायन तुम्हरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२

तुम्हरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥

अंतकाल रघुवरपुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥

और देवता चित्त ना धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥

संकट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६

जै जै जै हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥

जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बंदि महा सुख होई ॥

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥

तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०

Narak Chaturdashi

॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन,
मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित,
हृदय बसहु सुर भूप ॥

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