Narak Chaturdashi ki Katha : नरक चौदस के दिन यहाँ ज़रूर पढ़ें 3 पौराणिक कथाएं, दुर्भाग्य और संकट कभी नहीं आएगा निकट

On the day of Narak Chaturdashi, read these 3 mythological stories, misfortune and trouble will never come near you

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  • Publish Date - October 28, 2024 / 05:15 PM IST,
    Updated On - October 28, 2024 / 06:32 PM IST

Narak Chaturdashi ki Katha : यह त्यौहार नरक चौदस व नर्क चतुर्दशी के नाम से भी प्रसिद्ध है। नरक चतुर्दशी को छोटी दीपावली भी कहते हैं। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले, रात के समय उसी प्रकार दीए की जगमगाहट से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।
इस त्योहार को मनाने का मुख्य उद्देश्य घर में उजाला और घर के हर कोने को प्रकाशित करना है। कहा जाता है कि दीपावली के दिन भगवान श्री राम चन्द्र जी चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या आये थे तब अयोध्या वासियों ने अपने हर्ष के दीयें जलाकर उत्सव मनाया व भगवान श्री रामचन्द्र माता जानकी व लक्ष्मण का स्वागत किया।

Narak Chaturdashi ki Katha : आईये यहाँ पढ़ें नरक चतुर्दशी की रोचक कथा 

पहली कथा
नरकासुर को भौमासुर भी कहा जाता है। कृष्ण अपनी आठों पत्नियों के साथ सुखपूर्वक द्वारिका में रह रहे थे। एक दिन स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने आकर उनसे प्रार्थना की, ‘हे कृष्ण! प्रागज्योतिषपुर के दैत्यराज भौमासुर के अत्याचार से देवतागण त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। क्रूर भौमासुर ने वरुण का छत्र, अदिति के कुंडल और देवताओं की मणि छीन ली है और वह त्रिलोक विजयी हो गया है।’ इंद्र ने कहा, ‘भौमासुर ने पृथ्वी के कई राजाओं और आमजनों की अति सुन्दर कन्याओं का हरण कर उन्हें अपने यहां बंदीगृह में डाल रखा है। कृपया आप हमें बचाइए प्रभु।’
Narak Chaturdashi ki Katha
इंद्र की प्रार्थना स्वीकार कर के श्रीकृष्ण अपनी प्रिय पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर गरूड़ पर सवार हो प्रागज्योतिषपुर पहुंचे। वहां पहुंचकर भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से सबसे पहले मुर दैत्य सहित मुर के 6 पुत्रों- ताम्र, अंतरिक्ष, श्रवण, विभावसु, नभश्वान और अरुण का संहार किया।
मुर दैत्य का वध हो जाने का समाचार सुन भौमासुर अपने अनेक सेनापतियों और दैत्यों की सेना को साथ लेकर युद्ध के लिए निकला। भौमासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और घोर युद्ध के बाद अंत में कृष्ण ने सत्यभामा की सहायता से उसका वध कर डाला। इस प्रकार भौमासुर को मारकर श्रीकृष्ण ने उसके पुत्र भगदत्त को अभयदान देकर उसे प्रागज्योतिष का राजा बनाया। भगदत्त कौरवों की ओर से महाभारत युद्ध में लड़ता है।
जिस दिन श्रीकृष्ण ने भौमासुर का वध किया था उस दिन कार्तिक माह क चतुर्दशी थी इसलिए उसे नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है। इस दिन श्रीकृष्ण ने भौमासुर अर्थात नरकासुर का वध किया था और उसकी कैद से लगभग 16 हजार महिलाओं को मुक्त कराया था। इसी खुशी के कारण दीप जलाकर उत्सव मनाया जाता है।

दूसरी कथा
इस दिन दक्षिण भारत में वामन पूजा का भी प्रचलन है। कहते हैं कि इस दिन राजा बलि (महाबली) को भगवान विष्णु ने वामन अवतार में हर साल उनके यहां पहुंचने का आशीर्वाद दिया था। इसी कारण से वामन पूजा की जाती है। अनुसरराज बलि बोले, हे भगवन! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त दीपदान करेगा, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें। ऐसे वरदान दीजिए। यह प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! ऐसा ही होगा, तथास्तु। भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ।

तीसरी कथा
तीसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था फिर भी जब मृत्यु का समय आया तो यमदूत उन्हें नरक ले जाने के लिए आ धमके। राज ने कहा कि आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।
Narak Chaturdashi ki Katha
यह सुनकर यमदूत ने कहा कि- हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा लौट गया था, यह उसी पाप कर्म का फल है। यह सुनकर राजा ने यमदूत से एक वर्ष का समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी चिंता लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का उपाय पूछा।
Narak Chaturdashi ki Katha
तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है।

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