Madhurashtakam :मधुराष्टकम को श्री वल्लभाचार्य ने लिखा था। पौराणिक कथा के मुताबिक, जब श्रावण शुक्ल एकादशी की आधी रात को कृष्ण वल्लभ के सामने प्रकट हुए, तब उन्होंने देवता की स्तुति में मधुराष्टकम की रचना की। जन्माष्टमी के अलावा, आप हर दिन मधुराष्टकम का पाठ कर सकते हैं। मधुराष्टकम का नियमित पाठ करने से अपार धन की वर्षा होती है, मोक्ष की प्राप्ति होती है, मन को शांति और एकाग्रता मिलती है तथा भगवान कृष्ण की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
Madhurashtakam : आईये यहाँ पढ़ें और सुनें श्री कृष्ण के मधुर रूपों का वर्णन (हिंदी अर्थ सहित)
॥ मधुराष्टकम् ॥
अधरं मधुरं वदनं मधुरंनयनं मधुरं हसितं मधुरम्।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥1॥
अर्थ : [वल्लभाचार्य श्री कृष्ण के बारे में कहते हैं- उनके] होंठ (अधर) मधुर हैं, चेहरा मधुर है, नयन मधुर हैं, मुस्कान मधुर है। [उनका] ह्रदय मधुर है, चाल मधुर है, मधुरत्व के स्वामी श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
वचनं मधुरं चरितं मधुरंवसनं मधुरं वलितं मधुरम्।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥2॥
अर्थ : [उनके] वचन मधुर है, चरित्र मधुर है, उनके वस्त्र मधुर हैं, उनका आसन मधुर है। उनकी गति मधुर है, उनका विचरण (घूमना) मधुर है, मधुरत्व के ईश्वर श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
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वेणुर्मधुरो रेणुर्मधुरःपाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥3॥
अर्थ : [उनकी] बांसुरी मधुर है, उनके पैरों की धूल मधुर है, उनके हाथ मधुर हैं, उनके पैर मधुर हैं। नृत्य मधुर है, उनके मित्र मधुर हैं, मधुरत्व के स्वामी श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
गीतं मधुरं पीतं मधुरंभुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥4॥
अर्थ : [उनके] गीत मधुर हैं, उनका पीना मधुर है, उनका भोजन करना मधुर है, शयन मधुर है, उनका सुन्दर रूप मधुर है, तिलक मधुर है, मधुरत्व के ईश्वर श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
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करणं मधुरं तरणं मधुरंहरणं मधुरं रमणं मधुरम्।
वमितं मधुरं शमितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥5॥
अर्थ : उनके कर्म मधुर हैं, तारना (मुक्ति देना) मधुर है, उनका चोरी करना मधुर है, उनका रास मधुर है, उनके नैवेद्य मधुर हैं, उनकी मुखाकृति मधुर है, मधुरत्व के स्वामी श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
गुञ्जा मधुरा माला मधुरायमुना मधुरा वीची मधुरा।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥6॥
अर्थ : [उनका] गुंजा-हार मधुर है, माला मधुर है, यमुना मधुर है और यमुना की कल-कल करती लहरें मधुर हैं, उसका पानी मधुर है, कमल मधुर हैं, मधुरत्व के स्वामी श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
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गोपी मधुरा लीला मधुरायुक्तं मधुरं मुक्तं मधुरम्।
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥7॥
अर्थ : [उनकी] गोपियाँ मधुर हैं, उनकी लीला मधुर है, [उनका और आपका] युगल मधुर है, [कृष्ण] उनके बिना भी मधुर हैं। [उनकी] तिरछी नजरें मधुर हैं, उनका शिष्टाचार भी मधुर है, मधुरत्व के स्वामी श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
गोपा मधुरा गावो मधुरायष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा।
दलितं मधुरं फलितं मधुरंमधुराधिपतेरखिलं मधुरम्॥8॥
अर्थ : गोप (ग्वाले) मधुर हैं, गायें मधुर हैं, [गायों को] हांकने की छड़ी मधुर है, [उनके द्वारा की गई] सृष्टि (निर्माण) मधुर है और विनाश मधुर है, उनका वर देना मधुर है, मधुरत्व के स्वामी श्री कृष्ण का सब कुछ मधुर है।।
॥ इति श्रीमद्वल्लभाचार्यकृतं मधुराष्टकं सम्पूर्णम् ॥
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