श्री कृष्ण के धाम मथुरा और वृंदावन को तो सभी जानते है । लेकिन दूर दराज़ के श्रद्धालु जब मध्यप्रदेश के सागर पहुंचते हैं, तो ये ज़रूर कहते हैं कि आपके शहर में भी एक वृंदावन मौजूद है ।
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मिनी वृंदावन के कण-कण में जैसे भगवान कृष्ण बसे हुए हैं । यहां के मंदिर ही कृष्ण जन्मभूमि की झलक नहीं दिखाते..बल्कि मंदिर के आसपास बनी गलियां और दुकानें भी श्रद्धालुओं को वृंदावन में होने का एहसास कराते हैं । इस क्षेत्र में एक बहुत पुराना सराफा बाज़ार है..तो मिठाइयों की कई प्रसिद्ध दुकानें भी हैं । भगवान के वस्त्र और श्रृंगार की कई दुकानें भी यहां पीढ़ी दर पीढ़ी संचालित की जा रही हैं । यहां का ये पारंपरिक बाज़ार अनूठे सामानों से भरा हुआ है । पूजा-पाठ से जुड़ी हर चीज यहां मिल जाती है । ख़ासकर कृष्णजी के श्रृंगार और पूजा से जुड़ी तमाम वस्तुएं यहां बड़े रेंज में उपलब्ध है । यहां का बाज़ार, बाज़ार की गलियों..गलियों की दुकानें और दुकानों की रौनक कमाल की है । एक बार जो यहां आ जाए..वो घंटों परंपरा के इस अजायबघर में घूमते ही रह जाता है । मंदिरों में कृष्णा लीला की छवि, बांके बिहारी का श्रृंगार, रूप और वेष भूषा देखते ही बनती है।
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श्रीकृष्ण के अनुयायिओं की अभिलाषाओं के अनुरूप इस मिनी वृंदावन के कृष्ण मंदिरों में अपने कई रूपों में विराजे भगवान कृष्ण की मनोहारी प्रतिमाएं अलौकिक है, द्वारकाधीश हो या गोपाल या फिर रसिक बिहारी ..सभी प्रतिमाओं का श्रृंगार यहां कृष्ण के दिखाए गए चरित्रों के अनुरूप ही होता है। मंदिरों की प्रतिमाओं के लिए श्रृंगार और पोशाक भी अलग-अलग होते हैं। समय समय पर भक्त अपने बांकें बिहारी को श्रृंगार और वस्त्र दान करते हैं। हर मंदिर में स्थापित कृष्णा प्रतिमाओं के अलग-अलग श्रृंगार और वस्त्र तय हैं, जो इस मिनी वृंदावन में मौजूद दुकानों पर ही मिलते हैं। जिस मंदिर की कृष्ण प्रतिमा के लिए श्रृंगार अर्पित करना है उस मंदिर का इन दुकानों पर नाम बताना होता है, कृष्ण श्रृंगार और वस्त्रों का व्यवसाय पीढ़ी दर पीढ़ी यहाँ चला आ रहा है।
मथुरा वृंदावन के समान ही सुन्दर और मोहक कृष्ण श्रृंगार यहाँ मिलता है, मंदिरों की संख्या और भक्तों द्वारा श्रृंगार,वस्त्र अर्पण की परंपरा और मंदिरों के नियम अनुसार एक वस्त्र किसी भी प्रतिमा को दोबारा नहीं अर्पित किया जाता,इस तरह इन कृष्ण मंदिरों से कई परिवारों को रोजगार भी मिला हुआ है।