Lingashtakam : लिंगाष्टकम आठ श्लोकों का ऐसा अभिवादन जो है भगवान शिव के निराकार स्वरुप की अद्भुत एवं सुन्दर स्तुति

Lingashtakam is a greeting of eight verses which is a wonderful and beautiful praise of the formless form of Lord Shiva

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  • Publish Date - December 21, 2024 / 03:54 PM IST,
    Updated On - December 21, 2024 / 03:54 PM IST

Lingashtakam : लिंगस्थकम स्तोत्रम एक प्रार्थना है जो आठ अभिवादन से बनी है जो सर्वोच्च देवता को लिंग के रूप में उनके पहलू में पेश किया जाता है। लिंग सृजन का सार्वभौमिक प्रतीक है और हर चीज का स्रोत है। यह प्रार्थना शिव लिंग की महिमा करती है और इसकी महानता का विवरण देती है। प्रत्येक छंद भगवान की महिमा और शिव लिंग की पूजा करने के लाभों को सूचीबद्ध करता है।लिंगाष्टकम में भगवान् सदाशिव (निराकार सुरूप ) के शिवलिंगो की स्तुति बहुत अद्बुध एवं सूंदर ढंग से की गयी है | विष्णु और ब्रह्मा द्वारा भी शिव लिंग की पूजा की जाती है। इसका पाठ करने वाला व्यक्ति हर समय शांति से परिपूर्ण रहता है और यह जन्म और पुनर्जन्म के चक्र के कारण होने वाले किसी भी दुख को भी नष्ट कर देता है।

Lingashtakam : लिंगाष्टकम स्तोत्र के पाठ से पाए जाने वाले लाभ

– लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा बरसाते हैं।
– इस स्तोत्र के पाठ से मन को शांति मिलती है और नकारात्मक विचारों से दूर रहने में मदद मिलती है।
– इस स्तोत्र के पाठ से जीवन की समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
– इस स्तोत्र के पाठ से पारिवारिक शांति आती है और क्लेश दूर होते हैं।
– इस स्तोत्र के पाठ से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
– इस स्तोत्र के पाठ से अच्छा स्वास्थ्य, समृद्धि, और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
– इस स्तोत्र के पाठ से सकारात्मकता, आत्मविश्वास, और इच्छाशक्ति आती है।

Lingashtakam : लिंगाष्टकम स्तोत्र के बारे में कुछ और बातें

– लिंगाष्टकम स्तोत्र आठ श्लोकों का होता है।
– शिवलिंग की पूजा के साथ लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
– शिवपुराण में शिवलिंग की उपासना के लिए लिंगाष्टकम के बारे में बताया गया है।
– महाशिवरात्रि के दिन लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
– लिंगाष्टकम स्तोत्र का पाठ हाथ में जल रखकर करना चाहिए।

Lingashtakam : आईये यहाँ प्रस्तुत है लिंगाष्टकम स्तोत्र 

ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिङ्गं निर्मलभासितशोभितलिङ्गम् ।
जन्मजदुःखविनाशकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥१॥

देवमुनिप्रवरार्चितलिङ्गं कामदहं करुणाकरलिङ्गम् ।
रावणदर्पविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥२॥

Lingashtakam

सर्वसुगन्धिसुलेपितलिङ्गं बुद्धिविवर्धनकारणलिङ्गम् ।
सिद्धसुरासुरवन्दितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥३॥

कनकमहामणिभूषितलिङ्गं फणिपतिवेष्टितशोभितलिङ्गम् ।
दक्षसुयज्ञविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥४॥

Lingashtakam

कुङ्कुमचन्दनलेपितलिङ्गं पङ्कजहारसुशोभितलिङ्गम् ।
सञ्चितपापविनाशनलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥५॥

देवगणार्चितसेवितलिङ्गं भावैर्भक्तिभिरेव च लिङ्गम् ।
दिनकरकोटिप्रभाकरलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥६॥

Lingashtakam

अष्टदलोपरिवेष्टितलिङ्गं सर्वसमुद्भवकारणलिङ्गम् ।
अष्टदरिद्रविनाशितलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥७॥

सुरगुरुसुरवरपूजितलिङ्गं सुरवनपुष्पसदार्चितलिङ्गम् ।
परात्परं परमात्मकलिङ्गं तत् प्रणमामि सदाशिवलिङ्गम् ॥८॥

Lingashtakam

लिङ्गाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेत् शिवसन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

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