Vastu Shastra: वास्तु शास्त्र में दिशाओं का विशेष महत्व माना गया है। हर दिशा का अपना एक अलग महत्व होता है और इसलिए जब दिशा की महत्ता को समझते हुए वहां पर सामान रखा जाता है तो इससे घर में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहती है। कई बार ऐसा होता है कि हम घर में सामान तो रखते हैं, लेकिन दिशा का ध्यान नहीं रखते हैं। जिससे बनते-बनते काम बिगड़ जाते हैं। इसलिए यह सलाह दी जाती है कि व्यक्ति को दिशाओं का खासतौर पर ख्याल रखना चाहिए।
वास्तु शास्त्र में इंसान की सुख-समृद्धि और खुशहाली के लिए दिशाओं के महत्व को बारीकी से समझाया है। अक्सर लोग पूछते हैं कि ईशान कोण घर के किस कोने को कहा जाता है अथवा ईशान दिशा का पता कैसे लगाया जाता है। सर्वप्रथम वास्तुशास्त्र में दिशाओं का ज्ञान कराया जाता है।
जिस दिशा में सूर्य उदय होता है, वह पूर्व दिशा, जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है, वह पश्चिम दिशा और पूर्व की तरफ मुंह करके खड़े होने पर दाहिनी तरफ दक्षिण दिशा तथा बायीं ओर उत्तर दिशा होती है। वास्तुशास्त्र में इन चार दिशाओं के अतिरिक्त चार उपदिशाऐं भी होती हैं जो परस्पर दो मुख्य दिशाओं के मध्य में होती हैं। ईशान, आग्नेय, नैऋत्य, वायव्य ये चार उपदशिाऐं/विदिशाऐं हैं।
ईशान – पूर्व एवं उत्तर के मध्य की दिशा
आग्नेय – पूर्व एवं दक्षिण के मध्य की दिशा
नैऋत्य – पश्चिम एवं दक्षिण के मध्य की दिशा
वायव्य – पश्चिम एवं उत्तर के मध्य की दिशा
चार मुख्य दिशाओं और चार उपदिशाओं को मिलाकर आठ दिशाओं का वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है। वास्तु शास्त्र में भवन, परिसर के मध्य को ब्रह्म स्थान कहा जाता है जिसका भी विशेष महत्व माना गया है। घर, कार्यालय पूर्ण रूप से वास्तु सम्मत हो, इसके लिए ब्रह्म स्थान का भ विशेष ध्यान रखना चाहिए।
Vastu Shastra: अगर किसी भवन का निर्माण करते हुए इन दिशाओं का ध्यान नहीं रखा जाता और अपनी आवश्यकता अनुसार भवन में कक्षों का निर्धारण एवं निर्माण बिना वास्तु को ध्यान में रखकर कर लिया जाता है तो उस भवन में रहने वाले सदस्यों को अनेक कष्टों, दुःखों का सामना करना पड़ता है।