Karwa Chauth Vrat History : कैसे हुई थी करवा चौथ की शुरूआत? सबसे पहले किसने और किसके लिए रखा था यह व्रत, जानें क्या है इसका इतिहास…

Karwa Chauth Vrat History : कैसे हुई थी करवा चौथ की शुरूआत? सबसे पहले किसने और किसके लिए रखा था यह व्रत, जानें क्या है इसका इतिहास...

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  • Publish Date - October 17, 2024 / 06:00 PM IST,
    Updated On - October 17, 2024 / 06:00 PM IST

Karwa Chauth Vrat History : हिंदू धर्म में पूजा-पाठ, तीज-त्योहारों का विशेष महत्व होता है जिसे बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। ऐसे में कुछ दिनों बाद करवा चौथ मनाया जाएगा। करवा चौथ का व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। महिलाएं करवा चौथ का व्रत अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती है। विवाहित महिलाएं अपने सुहाग की सलामती के लिए पूरे दिन निर्जला व्रत रखती हैं। फिर शाम में उगते हुए चांद को देखकर अर्घ्य देती हैं और पति का दर्शन एक छलनी के माध्यम से करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से करवा माता की कृपा से पति की आयु लंबी होती है। बता दें कि, इस बार करवा चौथ 20 अक्टूबर 2024, रविवार को सुबह 6 बजकर 46 मिनट के बाद प्रारंभ होगा और इसका समापन 21 अक्टूबर 2024 को सुबह 4 बजकर 16 मिनट पर होगा। लेकिन ये बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इसकी शुरूआत कैसे हुई थी। तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की कहानी।

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कैसे हुई करवा चौथ की शुरूआत

धार्मिक मान्यता के अनुसार सबसे पहले करवा चौथ का व्रत माता गौरी ने भगवान भोलेनाथ के लिए रखा था। देवी पार्वती ने नारद जी की सलाह पर भगवान शिव पति के रूप में पाने के लिए घनघोर तपस्या की थी। लेकिन शिवजी न तो प्रसन्न हो रहे थे और न ही दर्शन दे रहे थे। तब माता पार्वती ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि निर्जला उपवास रखकर शिव-साधना की थी। जिसके बाद उन्हें भगवान शिव प्राप्त हुए थे और उन्हें अखंड सौभाग्‍य की प्राप्ति हुई थी। तब से लेकर आज तक सभी सुहागन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत करती आ रही है।

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स्वर्ग की देवियों ब्रह्मदेव ने भी दी थी सलाह

Karwa Chauth Vrat History : वहीं शास्त्रो के अनुसार करवा चौथ की एक दूसरी मान्यता ये भी है कि, देवताओं और दानवों के बीच भीषण युद्ध छिड़ा था। सभी देवियां बेहद चिंतित थीं। सभी देवी ब्रह्मदेव के पास पहुंचे थे और उनसे अपनी पतियों की रक्षा के लिए सुझाव मांगा था तब उन्होंने सभी देवियों को कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को व्रत रखने की सलाह दी थी। बाद में यह तिथि करवा चौथ के रूप में प्रचलित हुई।

 

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