Kali Mata ki Stuti : इस चमत्कारी स्तुति के पढ़ने मात्र से ही तंत्र-मंत्र हो जाते हैं बेअसर, भूत प्रेत आदि बाधाओं से मिलती हैं मुक्ति

Just by reciting this miraculous prayer, Tantra-Mantra become ineffective, one gets freedom from obstacles like ghosts and spirits

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  • Publish Date - August 30, 2024 / 05:37 PM IST,
    Updated On - August 30, 2024 / 05:37 PM IST

Kali Mata ki Stuti : काली को अंधकार के रूप में दर्शाया गया है, लेकिन वास्तव में वह ब्रह्मांडीय माता हैं, जो सितारों और प्रकाश, सूर्य और चंद्रमाओं से भरी हैं। काली, कालिका या महाकाली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वे मृत्यु, काल और परिवर्तन की देवी हैं। यह सुन्दरी रूप वाली आदिशक्ति दुर्गा माता का काला, विकराल और भयप्रद रूप है, जिसकी उत्पत्ति असुरों के संहार के लिये हुई थी। जिस प्रकार हिंदू धर्म में प्रत्येक दिन किसी-न-किसी देवी-देवता को समर्पित है। ठीक उसी प्रकार शुक्रवार का दिन भी माता काली की आराधना के लिए शुभ माना गया है ।

Kali Mata ki Stuti : यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं देवी मां काली के खास मंत्र-
1. मां काली का मंत्र :
– ॐ श्री कालिकायै नम:

2. महाकाली बीज मंत्र :
– ॐ क्रीं कालिकायै नमः

3. काली बीज मंत्र
– ॐ क्रीं काली

4. काली पूजा मंत्र :
‘कृन्ग कृन्ग कृन्ग हिन्ग कृन्ग दक्षिणे कलिके कृन्ग कृन्ग कृन्ग हरिनग हरिनग हुन्ग हुन्ग स्वा:’

5. काली मां का मंत्र :
– ॐ हरिं श्रीं कलिं अद्य कालिका परम् एष्वरी स्वा:

6. तीन अक्षरी काली मंत्र
– ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं

7. पांच अक्षरों वाला मंत्र :
– ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूं फट्

8. सात अक्षरों वाला मंत्र :
– ॐ हूं ह्रीं हूं फट् स्वाहा

9. मां भद्रकाली मंत्र
ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा॥

10. काली मंत्र
ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके क्लीं श्रीं ह्रीं ऐं॥

11. काली गायत्री मंत्र :
– ॐ महा काल्यै छ विद्यामहे स्स्मसन वासिन्यै छ धीमहि तन्नो काली प्रचोदयात

12. दक्षिण काली मंत्र :
– ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं।।
क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा।।
ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा।।
ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा।।

13. स्वप्न दर्शन का बुरा फल नष्ट करने वाला मंत्र :
– ॐ ऐं सर्वाप्रशमनं त्रैलोक्यस्या अखिलेश्वरी।

Kali Mata ki Stuti : आईये हम पढ़तें हैं माँ कलिका स्तुति (अयि गिरि नन्दिनी नन्दिती)

कालिका स्तुति
अयि गिरि नन्दिनी नन्दिती मेदिनि, विश्व विनोदिनी नन्दिनुते।
गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी, विष्णु विलासिनीजिष्णुनुते।।
भगवति हे शितिकण्ठ कुटुम्बिनी, भूरि कुटुम्बिनी भूत कृते।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

अयि जगदम्ब कदम्ब वन प्रिय, वासिनी वासिनी वासरते।
शिखर शिरोमणी तुंग हिमालय, श्रृंगनिजालय मध्यगते।।
मधुमधुरे मधुरे मधुरे, मधुकैटभ भंजनि रासरते।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

Kali Mata ki Stuti

सुर वर वर्षिणी दुर्धरधर्षिणी, दुर्मुखमर्षिणी घोषरते।
दनुजन रोषिणी दुर्मदशोषिणी, भवभयमोचिनी सिन्धुसुते।।
त्रिभुवन पोषिणी शंकर तोषिणी, किल्विषमोचिणी हर्षरते।
जय जय हे महिषासुर मर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्डवितुण्डित शुण्ड गजाधिपते।
रिपुगजदण्डविदारण खण्ड, पराक्रम चण्ड निपाति मुण्ड मठाधिपते।।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

Kali Mata ki Stuti

अयि सुमन: सुमन: सुमन: सुमन:, सुमनोरम कान्तियुते।
श्रुति रजनी रजनी रजनी, रजनी रजनीकर चारुयुते।।
सुनयन विभ्रमर भ्रमर भ्रमर, भ्रमराधिपते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

सुरललना प्रतिथे वितथे, वितथेनियमोत्तर नृत्यरते।
धुधुकुट धुंगड़ धुंगड़दायक, दानकूतूहल गानरते।।
धुंकट धुंकट धिद्धिमितिध्वनि, धीर मृदंग निनादरते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

Kali Mata ki Stuti

जय जय जाप्यजये जयशब्द परस्तुति तत्पर विश्वनुते।
झिणिझिणिझिणिझिणिझिंकृत नूपुर, झिंजिंत मोहित भूतरते।।
धुनटित नटार्द्धनटी नट नायक, नायक नाटितनुपुरुते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

महित महाहवमल्लिम तल्लिम, दल्लित वल्लज भल्लरते।
विरचित पल्लिक पुल्लिक मल्लिक, झल्लिकमल्लिक वर्गयुते।।
कृत कृत कुल्ल समुल्लस तारण, तल्लिज वल्लज साललते।
जय जय हे महिषासुरमर्दिनी, रम्य कपर्दिनी शैलसुते।।

Kali Mata ki Stuti

यामाता मधुकैटभ प्रमथिनी या महिषोन्मलूनी।
या धूम्रेक्षण चण्डमुण्ड मथिनी या रक्तबीजाशनी।।
शक्ति: शुम्भ निशुम्भ दैत्य दलिनी या सिद्धि लक्ष्मी परा।
सा चण्डी नवकोटि शक्ति सहिता मां पातु विश्वेश्वरी।।

।।इति श्रीकालिदास विरचित् कालिक स्तुति।।

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