Sawan Special : बांदकपुर में विराजमान हैं 13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जागेश्वरनाथ, श्रावण मास में लगती हैं लंबी-लंबी कतारें, जानें मंदिर का रहस्य

Jageshwarnath is sitting in Bandakpur as the 13th Jyotirlinga: मध्यप्रदेश के जिला दमोह से 16 किमी दूर बांदकपुर में विरोजमान हैं जागेश्वर नाथ।

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  • Publish Date - July 3, 2023 / 03:14 PM IST,
    Updated On - July 4, 2023 / 02:57 PM IST

Jageshwarnath is sitting in Bandakpur as the 13th Jyotirlinga : दमोह। 4 जुलाई 2023 से शिवजी की आराधना का महापर्व शुरू हो रहा है। इस वर्ष सावन 58 दिनों का होगा यानी शिवजी की पूजा-पाठ और भक्ति के लिए सावन का महीना दो माह का होगा। 4 जुलाई से सावन का पवित्र महीना शुरू होकर 31 अगस्त तक चलेगा। इस दौरान 18 जुलाई से 16 अगस्त तक अधिक मास रहेगा। इसी कारण से इस वर्ष सावन का महीना 2 महीने का होगा। देश के सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में श्रावण माह के पावन महीने में श्रृद्धालुओं का तांता लगा रहता है। इसी बीच आज हम एक ऐसे मंदिर की कथा बताने जा रहे है जिसे देश के 13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में भी जाना जाता है। मध्यप्रदेश के जिला दमोह से 16 किमी दूर बांदकपुर में विरोजमान हैं जागेश्वर नाथ। बता दें कि बुंदेलखंड के प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र और देश में 13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाने वाले भगवान जागेश्वरनाथ बांदकपुर धाम का रोचक इतिहास रहा है।

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Jageshwarnath is sitting in Bandakpur as the 13th Jyotirlinga : आज से लगभग 325 वर्ष पूर्व मराठा राज्य के दीवान बालाजी राव चांदोरकर जिनका मुख्यालय दमोह था। एक दिन रथ यात्रा करते हुए बांदकपुर आए और बर्तमान इमरती कुंड में स्नान कर पूजन में मग्न थे कि भगवान शिव जी ने दर्शन दिए और कहा कि वटवृक्ष के पास जहां घोड़ा बंधा हुआ है। उसके नीचे उत्खनन करके मुझे भूमि से ऊपर लाने का प्रयास करो।

ध्यान समाप्त होने पर बालाजी राव ने उस स्थल की खुदाई कराई जहां काले भूरे पत्थर का शिवलिंग दृष्टिगत हुआ। कहा जाता है कि 30 फीट तक खुदाई करने पर भी शिवलिंग का अंत नहीं दिखाई दिया। तब खुदाई रोक दी गई। फिर आसपास 12 फीट की नींव देकर मंदिर का निर्माण कराया गया। गर्भ स्थल में प्रवेश करते ही यह स्पष्ट दिखता है कि इस मंदिर में मूर्ति का स्थान ठीक नीव के बाहर की भूमि की गहराई पर स्थित है।

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जागेश्वर मंदिर की सिद्धि से जुड़ी कुछ घटनाएं पूर्वज बताते हैं कि उनके अनुसार सवा लाख का कावरों का जल शिव पार्वती पर अर्पित होने पर दोनों मंदिर के स्वर्ण कलशों पर लगी पताकायें आपस में मिल जाती हैं। इसका उल्लेख दमोह गजेटीयर में भी है। कहा जाता है कि 18वीं सदी के अंत में एक दिन एक बालिका देव पूजन हेतु आई भक्तों की भीड़ में धक्कों के कारण फिसल कर पानी में गिर कर मौत हो गई। तब श्रद्धालु भक्तों ने महादेव की मूर्ति के समक्ष उसका शव रखकर उनकी स्तुति की और बालिका जीवित हो उठी। इसका विशद वर्णन जागेश्वर रहस्य में उलेखनीय है। इसी प्रकार 15 जनवरी 1938 को सोमवार के दिन दोपहर 2 बजे भूकंप के झटकों के पश्चात महादेव जी के मंदिर की विशाल स्वर्ण कलश से आधा इंच की जलधारा लगभग 15 मिनट तक निकलती रही।

 

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