रायपुर: जगन्नाथ पुरी का रहस्य आगामी दिनों में पूरे देश में रथ यात्रा का पर्व मनाया जाएगा। इस अवसर पर ओडिशा के जगन्नाथ पुरी से लेकर गुजरात के अहमदाबाद तक धूम देखने को मिलता है। इस अवसर पर देशभर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जा रही है। रथ यात्रा के अवसर पर पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ के मंदिर से भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसके लिए कई महीने पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। वहीं, अनुमान लगाया जा रहा है कि इस साल जगन्नाथ रथ यत्रा में शामिल होने के लिए करीब 30 लाख से अधिक श्रद्धालु पुरी पहुंचेंगे। लेकिन क्या आपको पता है कि पुरी जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा हवा से विपरीत दिशा में लहराता है? क्यों दुनिया की सबसे बड़ी रसोई में सबसे पहले बनता है ऊपर वाले हंडी का प्रसाद? सिंह द्वार का क्या है रहस्य?
जगन्नाथ पुरी का रहस्य पुरानी कथाओं की मानें तो जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा उल्टी लहराने का सीधा संबंध हनुमान जी से है। बताया जाता है कि भगवान विष्णु को समुद्र की लहरों के तेज आवाज की वजह से सोने में दिक्कत हो रही थी। इस बात की जानकारी जब हनुमान जी को लगी तो उन्होंने समुद्र देवता से हवा दिशा उल्टी करने का निवेदन किया। लेकिन समुद्र देवता ने असमर्थता जताते हुए कहा कि ये मेरे बस में नहीं है, इसके लिए आपको अपने पिता पवन देव से निवेदन करना होगा। यह ध्वनि उतनी ही दूर तक जाएगी जितनी हवा की गति जाएगी। समुद्र देव से निवेदन के लिए हनुमान जी पवन देव के पास पहुंचे और आह्वान किया कि हवा मंदिर की दिशा में न बहे। पवनदेव ने कहा कि यह संभव नहीं है और इसके लिए उन्होंने हनुमान जी को एक उपाय बताया। अपने पिता के बताए उपाय के अनुसार हनुमान जी ने अपनी शक्ति से स्वयं को दो भागों में बांट लिया और फिर वे हवा से भी तेज गति से मंदिर की परिक्रमा करने लगे। इससे हवा का ऐसा चक्र बना कि समुद्र की आवाज मंदिर के अंदर न जाकर मंदिर के चारों ओर घूमती रहती है और श्री जगन्नाथ जी मंदिर में आराम से सो जाते हैं। इसी वजह से मंदिर की ध्वजा भी हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
जगन्नाथ पुरी मंदिर समंदर किनारे पर है। मंदिर में एक सिंहद्वार है। कहा जाता है कि जब तक सिंहद्वार में कदम अंदर नहीं जाता तब तक समंदर की लहरों की आवाज सुनाई देती है, लेकिन जैसे ही सिंहद्वार के अंदर कदम जाता है लहरों की आवाज गुम हो जाती है। इसी तरह सिंहद्वार से निकलते वक्त वापसी में जैसे ही पहला कदम बाहर निकलता है, समंदर की लहरों की आवाज फिर आने लगती है। ये भी कहा जाता है कि सिंहद्वार में कदम रखने से पहले आसपास जलाई जाने वाली चिताओं की गंध भी आती है, लेकिन जैसे ही कदम सिंहद्वार के अंदर जाता है ये गंध भी खत्म हो जाती है। सिंहद्वार के ये रहस्य भी अब तक रहस्य ही बने हैं।
आमतौर पर मंदिर, मस्जिद या किसी बड़ी इमारत पर पक्षियों को बैठे हुए देखा जाता है. लेकिन जगन्नाथ मंदिर पर कभी किसी पक्षी को उड़ते हुए नहीं देखा गया। कोई पक्षी मंदिर परिसर में बैठे हुए दिखाई नहीं दिया। यही वजह है कि मंदिर के ऊपर से हवाई जहाज, हेलिकॉप्टर के उड़ने पर भी मनाही है।
कहा जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है। इस रसोई में 500 रसोइये और 300 उनके सहयोगी काम करते हैं। इस रसोई से जुड़ा एक रहस्य ये है कि यहां चाहे लाखों भक्त आ जाएं कभी प्रसाद कम नहीं पड़ा, लेकिन जैसे ही मंदिर का गेट बंद होने का वक्त आता है प्रसाद अपने आप खत्म हो जाता है। यानी यहां प्रसाद कभी व्यर्थ नहीं होता है। इसके अलावा मंदिर में जो प्रसाद बनता है वो लकड़ी के चूल्हे पर बनाया जाता है। ये प्रसाद सात बर्तनों में बनाया जाता है, सातों बर्तन को एक-के ऊपर एक करके एक-साथ रखा जाता है। यानी सातों बर्तन चूल्हे पर एक सीढ़ी की तरह रखे होते हैं। सबसे हैरानी की बात ये है कि जो बर्तन सबसे ऊपर यानी सातवें नंबर का बर्तन होता है उसमें सबसे पहले प्रसाद बनकर तैयार होता है। इसके बाद छठे, पांचवे, चौथे, तीसरे, दूसरे और पहले यानी सबसे नीचे के बर्तन का प्रसाद तैयार होता है।