Holi ki Aarti : नरसिंह रूप भगवान विष्णु का रौद्र अवतार है। ये दस अवतारों में चौथा है। नरसिंह नाम के ही अनुसार इस अवतार में भगवान का रूप आधा नर यानी मनुष्य का है और आधा शरीर सिंह यानी शेर का है। भगवान विष्णु अपने भक्त प्रहलाद को दैत्य हिरण्यकश्यप से बचाने के लिए इस रूप में प्रकट हुए। भगवान विष्णु की कृपा से अचानक से ऐसी तेज हवा चलने लगी कि वह दुशाला उड़कर प्रहलाद को ढक लिया और होलिका उसी आग में जलकर भस्म हो गई। इस कथा को याद करके हर साल होलिका दहन का पर्व मनाया जाता है। होलिका दहन की अग्नि में हर चिंता खाक हो जाती है, दुखों का नाश हो जाता है और इच्छाओं को पूर्ण होने का वरदान मिलता है मान्यता हैं कि होलिका दहन की पूजा के पश्चात् श्री राधा जी और श्री कृष्णा जी की आरती के बिना पूजा अधूरी रहती है
Holi ki Aarti : Aarti of Lord Narsingh (नृसिंह भगवान की आरती)
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी।।
पहली आरती प्रह्लाद उबारे,
हिरणाकुश नख उदर विदारे।।
दूसरी आरती वामन सेवा,
बलि के द्वार पधारे हरि देवा।
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
तीसरी आरती ब्रह्म पधारे,
सहसबाहु के भुजा उखारे।
चौथी आरती असुर संहारे,
भक्त विभीषण लंक पधारे।
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की
पांचवीं आरती कंस पछारे,
गोपी ग्वाल सखा प्रतिपाले।
तुलसी को पत्र कंठ मणि हीरा,
हरषि-निरखि गावें दास कबीरा।
आरती कीजै नरसिंह कुंवर की।
वेद विमल यश गाऊं मेरे प्रभुजी।।
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Holi ki Aarti : Shri Radha Ji ki Aarti (श्री राधाजी की आरती)
आरती राधाजी की कीजै। टेक…
कृष्ण संग जो कर निवासा, कृष्ण करे जिन पर विश्वासा।
आरती वृषभानु लली की कीजै। आरती…
कृष्णचन्द्र की करी सहाई, मुंह में आनि रूप दिखाई।
उस शक्ति की आरती कीजै। आरती…
नंद पुत्र से प्रीति बढ़ाई, यमुना तट पर रास रचाई।
आरती रास रसाई की कीजै। आरती…
प्रेम राह जिनसे बतलाई, निर्गुण भक्ति नहीं अपनाई।
आरती राधाजी की कीजै। आरती…
दुनिया की जो रक्षा करती, भक्तजनों के दुख सब हरती।
आरती दु:ख हरणीजी की कीजै। आरती…
दुनिया की जो जननी कहावे, निज पुत्रों की धीर बंधावे।
आरती जगत माता की कीजै। आरती…
निज पुत्रों के काज संवारे, रनवीरा के कष्ट निवारे।
आरती विश्वमाता की कीजै। आरती राधाजी की कीजै…।
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Holi ki Aarti: Aarti kunj bihari ki (आरती कुंजबिहारी की)
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्न मुरारी की।।(टेक)
गले में बैजंतीमाला,
बजावै मुरलि मधुर बाला।
श्रवन में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला।
श्री गिरिधर कृष्न मुरारी की।।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी-
तिलक, चंद्र-सी झलक,
ललित छबि स्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्न मुरारी की।।
कनकमय मोर-मुकुट बिलसै,
देवता दरसनकों तरसै,
गगन सों सुमन रासि बरसै,
बजे मुरचंग, मधुर-
मिरदंग, ग्वालिनी संग,
अतुल रति गोपकुमारीकी।
श्री गिरिधर कृष्न मुरारी की।।
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल-मल-हारिणि श्रीगंगा।
स्मरन ते होत मोह-भंगा,
बसी सिव सीस, जटाके बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छबि श्रीबनवारी की।
Holi ki Aarti
श्री गिरिधर कृष्न मुरारी की।।
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही बृन्दावन बेनू।
चहूं दिसि गोपि ग्वाल धेनू,
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद,
कटत भव-फंद,
टेर सुनु दीन दुखारी की।
श्री गिरिधर कृष्न मुरारी की।।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्न मुरारी की।।
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
(समाप्त)
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