हरिद्वारः उत्तराखंड के हरिद्वार में 12 साल बाद एक फिर से कुंभ मेला का आयोजन होने जा रहा है। महाकुंभ हिंदुओं की आस्था का प्रमुख उत्सव है, जो देश के चार प्रमुख स्थान प्रयाग इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक पर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। कुंभ मेला का आयोजन तब किया जाता है, जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है। कई दिनों तक चलने वाले महाकुंभ मेले में देश.विदेश से लाखों श्रद्धालु आकर यहां स्नान करते हैं। इसकी महत्ता को देखते हुए यूनेस्को कुंभ मेले को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ के तौर पर मान्यता दे चुका है। कुंभ का मतलब कलश होता है। इसीलिए इसे उत्सव का कलश भी कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसे अमृत का कलश भी कहा जाता है।
पुराणों में महाकुंभ का उल्लेख किया गया है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार समुद्रमंथन के दौरान निकला अमृतकलश 12 स्थानों पर रखा गया था जहां अमृत की बूंदें छलक गई थीं। इन 12 स्थानों में से आठ ब्रह्मांड में माने जाते हैं और चार धरती पर है। धरती पर जिन स्थानों पर कलश से अमृत की बूंदें गिरी थी उन्हीं स्थानों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।
इन तिथियों में होगा शाही स्नान
प्रथन शाही स्नान 11 मार्च 2021 महा शिवरात्रि पृथ्वी पर गंगा की उपस्थिति का श्रेय भगवान शिव को दिया जाता है, जिन्होंने स्वर्ग से एक विशाल बल के साथ उतरते हुए गंगा को अपने तांडव में बंद कर दिया था। इस दिन एक शादी स्नान को आध्यात्मिक रूप से अनूठा अनुभव माना जाता है।
दूसरा शाही स्नान 12 अप्रैल 2021 सोमवती अमावस्या सोमवती अमावस्या पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा जल का कारक है। अमावस्या के दिन शाही स्नान को अमृत के समान माना जाता है।
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तीसरा शाही स्नान 14 अप्रैल 2021 बैसाखी, मेष संक्रांति इस शुभ दिन पर, नदियों का पानी अमृत में बदल जाता है। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन पवित्र गंगा में शाही स्नान करने से सभी पाप खत्म हो जाते हैं।
चौथा शाही स्नान 27 अप्रैल 2021 चैत्र पूर्णिमा यह पवित्र गंगा में स्नान करने के सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से एक है और इसे लोकप्रिय रूप से अमृत योग के दिन के रूप में जाना जाता है।
शाही स्नान की मान्यता
सभी रस्मों में पवित्र स्नान काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि अमावस्या के दिन पवित्र जल में डुबकी लगाने से पापों से मुक्ति मिलती है और मनुष्य को जन्म.पुनर्जन्म तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाकुंभ की मान्यता
कहा जाता है कि एक बार देवों से उनकी शक्तियां छीन ली गई थी। अपनी ताकत फिर से हासिल करने के लिए वे असुरों के साथ सागर का मंथन कर अमृत निकालने के लिए सहमत हुए। देवों और असुरों में सहमति बनी कि दोनों आपस में अमृत की बराबर हिस्सेदारी करेंगे। दुर्भाग्यवश देवों और असुरों में सहमति नहीं बनी और दोनों 12 साल तक एक दूसरे से लड़े। इसी दौरान गरुण अमृत से भरे कलश को लेकर उड़ गया। माना जाता है कि कलश में से अमृत की बूंदें चार जगहों हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में गिर गई। इसीलिए इन चार स्थानों पर ही कुंभ मेला लगता आया है।
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ज्योतिषीय भविष्यवाणियां और धार्मिक विचार मेले की तारीखें तय करने में एक भूमिका निभाते हैं। कुंभ मेला हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक में हर 12 वर्षों में लगता है। यहां ये भी बता दें कि हर 6 वर्षों में अर्ध कुंभ मेला का भी आयोजन किया जाता है। इसके अलावा, प्रयागराज में संगम पर हर साल माघ मेला ;जनवरी से फरवरी के मध्य से हिंदू कैलेंडर के अनुसार में मनाया जाता है। इस माघ मेले को अर्द्ध कुंभ मेला और कुंभ मेला के रूप में भी जाना जाता है जब यह 6ठें और 12वें वर्ष में होता है।